फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक तीन जनवरी को निगमायुक्त यशपाल यादव ने फेसबुक के माध्यम से नगरवासियों को नव-वर्ष की बधाई देने के साथ सम्बोधित करते हुए शहर को स्वच्छ एवं अतिक्रमण मुक्त करने में सहयोग की अपील की। अपने सम्बोधन में उन्होंने बीते दिनों इस दिशा में किये गये अपने कार्यों एवं प्रयासों का ब्योरा भी दिया। सुन कर अच्छा लगा।
लेकिन समस्या तब खड़ी हो जाती है जब करनी और कथनी में अंतर नज़र आने लगे। पिछले अंकों में ‘मज़दूर मोर्चा’ ने बड़ा स्पष्ट लिखा था कि शहरवासी नगर निगम के कायदे-कानूनों का पालन करते हुए सभ्य नागरिकों की तरह रहना चाहते हैं। ये तो नगर निगम के भ्रष्ट एवं कामचोर अधिकारी ही होते हैं जो नागरिकों को कायदे-कानूनों का उल्लंघन करके अवैध कब्जे व निर्माण कार्य करने के लिये उतप्रेरित करते हें। करीब दो सप्ताह पूर्व जब निगमायुक्त ने शहर की गलियों-बाजारो में घरों व दुकानों के आगे लगे शेड व ग्रिल हटाने का आदेश दिया तो अधिकांश लोगों ने उसका पालन किया।
इस के लिये नगर निगम को न तो कोई तोड़-फोड़ दस्ता भेजना पड़ा और न ही पुलिस बल की आवश्यकता पड़ी। लेकिन निगमायुक्त के आदेश का ईमानदारी से पालन करने वाले नागरिकों को तब भयंकर तकलीफ होती है जब अन्य प्रभावशाली लोग उनके आदेशों की अवहेलना कर, न केवल कब्जे कायम किये रहते हैं बल्कि नये-नये अवैध कब्ज़े एवं निमार्ण कार्य करने में जुटे रहते हैं। इस तरह के अनेकों स्थलों की सचित्र सूची ‘मोर्चा’ द्वारा समय-समय पर प्रकाशित की जाती रही है।
प्राय:, प्रति दिन निगमायुक्त को सडक़ों पर खुद घूम-घूम कर इस अभियान का संचालन करना पड़ रहा है। अकेले एक अधिकारी के लिये यह कदाचित सम्भव नहीं हो सकता कि वह इतने बड़े शहर के हर क्षेत्र में घूम-घूम कर निगम के नियमों का पालन कराये। इसी बात के मद्दे नज़र निगमायुक्त को भारी-भरकम अमला दिया गया है। उन्हें चाहिये कि बजाय खुद सडक़ों पर भटकने में अपनी ऊर्जा एवं समय बर्बाद करने की अपेक्षा, क्षेत्र वार अधिकारियों को काम पर भेजें और शाम को उनसे प्रगति रिपोर्ट हासिल करें। कोताही करने वाले अधिकारियों के साथ बिना किसी रूह-रियायत सख्ती से निपटें। वरना जिस गति से यह अभियान चलाया जा रहा है यह कभी भी पूरा होने वाला नहीं है, क्योंकि निगमायुक्त महोदय सफाई कराते हुए आगे को बढ़ते हैं तो पीछे से फिर वही अवैध काम शुरू होने लगता है।
गौरतलब है कि इस तरह का अभियान कुछ दिन चला कर निगम प्रशासन को अपनी आंखे नहीं मूंद लेनी चाहिये। इसके लिये आवश्यक है अभियान को सतत जारी रखा जाय। छोटी से छोटी उल्लंघना का भी, बिना किसी भेदभाव के संज्ञान लिया जाना चाहिये। इसके लिये क्षेत्र के सम्बन्धित अधिकारियों की जिम्मेदारियां तय की जानी चाहियें जिनकी नियमित रूप से निगरानी की जानी चाहिये।
नगर की स्वच्छता के लिए केवल अवैध कब्जे व निर्माण हटाना ही पर्याप्त नहीं है। हर गली मौहल्ले, यहां तक कि पॉश सैक्टरों तक में सीवर ओवलफ्लो कर रहे हैं। जिनका सड़ा हुआ पानी सडक़ों पर फैल रहा है। ओल्ड फरीदाबाद रेलवे स्टेशन के बाहर बीते कई महीनों से जो सीवर का पानी, एक और जहां अंडरपास तक पहुंच गया था वहीं दूसरी और थाना एनआईटी के पिछवाड़े तक भर गया था, उसे निकाल तो दिया लेकिन दस दिन के बाद ही स्थिति वापस उसी हाल में लौट रही है। क्या निगम प्रशासन फिर से इस सडक़ पर वैसा ही जलभराव होने की प्रतीक्षा कर रहा है?
निगमायुक्त गौर फरमायें कि उक्त चित्र 5 एम 21 पर बन रहे मकान का है। इस प्लॉट पर बने पहले मकान को निगमायुक्त के आदेश पर सील किया गया था। मकान मालिक ने उसे बेच दिया। नये खरीदार ने उसे तोडक़र आवासीय नक्शा पास करवाया। लेकिन नक्शे के विपरीत निर्माण कार्य व्यवसायिक के तौर पर किया जा रहा है। दिनांक 5 जनवरी को निगम के आठ कर्मचारी हथौड़े लेकर इस दो मंजिला मकान को तोडऩे का नाटक करने आये और अपनी जेब गर्म करके चले गये। इस तरह का नाटक महीने में दो-तीन बार होता रहता है।
इसी प्लॉट के सामने भी एक मकान में निर्माण कार्य चल रहा है; लगे हाथ वहां से भी निगम के इस गिरोह ने वसूली कर ली। यहीं पर एक दुकानदार ने अपने सामने सडक़ पर ही बाकायदा लिफ्ट लगा कर सर्विस स्टेशन चला रखा है। जानकार बताते हैं कि इस अवैध सर्विस स्टेशन से निगमकर्मी नियमित वसूली करते रहते हैं। हांडी के चावल के समान, यह केस तो मात्र एक उदाहरण है। इस तरह के सैंकड़ों केस शहर की गली-गली में देखे जा सकते हैं। निगमायुक्त के लिये यह सम्भव नहीं हो सकता कि वह गली-गली में जाकर ऐसे मामलों को देखें। इसके लिये उन्हें अपने सम्पर्क सूत्रों को मजबूत करना होगा तथा सूचना मिलने पर, क्षेत्र के सम्बन्धित अधिकारी को ऐसा इबरतनाक सबक सिखायें जो बाकी अधिकारियों की भी अक्ल ठिकाने आ जाये।