न्यायपालिका खेल रही नाटक मज़दूर मोर्चा ब्यूरो देश भर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाने के लिये 24 लाख बच्चों ने ‘नीट’ (राष्ट्रीय योग्यता एवं प्रवेश परीक्षा) में भाग लिया था। मई में हुई इस परीक्षा का परिणाम 14 जून को घोषित होने वाला था। परन्तु जनता का ध्यान भटकाने की नीयत से इसकी घोषणा चार जून को उस समय कर दी गई जब पूरे देश का ध्यान लोकसभा चुनाव परिणामों की ओर था।
परीक्षा शुरू होने से पहले ही पर्चा लीक होने के समाचार न केवल प्रकाशित हो चुके थे बल्कि बिहार पुलिस ने इस बाबत मुकदमे भी दर्ज कर लिये थे। उसके बावजूद भी एनटीए (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी) द्वारा परीक्षा का पूरा ड्रामा खेला गया। जैसा कि शुरू से ही नज़र आ रहा था, उसी के अनुरूप परीक्षा परिणाम भी सामने आए। कुल 720 अंकों की इस परीक्षा में 67 बच्चों ने पूरे 720 अंक प्राप्त करके प्रथम स्थान ग्रहण किया। इसके अलावा जिस तरह से बच्चों को अंक दिये गये हैं, वे किसी भी तरह परीक्षा नियमों के अनुकूल नहीं ठहरते। उदाहरणार्थ किसी बच्चे द्वारा एक सवाल न करने पर उसे 716 नम्बर और गलत जवाब लिखने पर 715 नम्बर दिये जा सकते थे। लेकिन इसी नियम के विरुद्ध बच्चों को 718 व 719 नम्बर दिये गये हैं। कुछ बच्चों को सुप्रीम कोर्ट के तथाकथित आदेश के हवाले से ग्रेस मार्क भी दिये गये हैं।
राष्ट्रीय स्तर के इस घोटाले को लेकर अनेकों छात्र विभिन्न हाईकोर्टों व सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अपनी आदत के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार तथा उसके द्वारा गठित एनटीए को नोटिस देते हुए चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है। मजे की बात तो यह है कि इस दौरान कॉउंसलिंग यानी कि मेडिकल कॉलेजों में होने वाली दाखिला प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई गई है। इससे बड़ा और क्या मजाक हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का नाटक भी चलता रहेगा और मेडिकल कॉलेजों में दाखिला भी होता रहेगा?
न्याय का तकाज़ा तो यह बनता है कि न्यायपालिका स्वत: इस घोटाले का संज्ञान लेकर एनटीए तथा इससे सम्बन्धित तमाम अधिकारियों को तुरन्त जेल भेजती, परीक्षा को रद्द करती तथा परीक्षा के नाम पर ठगे गए 24 लाख छात्रों को उचित मुआवज़ा देने के लिये दोषी अधिकारियों की जायदादों से वसूली करती। यदि न्यायपालिका ऐसा करने लगे तो आए दिन होने वाले इस तरह के अपराध तो होने ही बंद हो जाएंगे, फिर ऐसे में न्यायालयों के मंच पर बैठकर नाटक करने वाले जज बेचारे क्या करेंगे? उनके पास तो करने को कोई काम ही नहीं बचेगा।