चंडीगढ़ (म.मो.) राज्य भर की शिक्षा का बेड़ा गर्क करने में जुटे शिक्षा निदेशालय की वर्ष के आखिरी महीने के आखिरी सप्ताह में नींद खुली तो उसने तमाम शिक्षकों की आकस्मिक छुट्टियों पर पाबंदी लगा दी है। तमाम शिक्षक छात्रों की शैक्षणिक गुणवत्ता का आकलन करेंगे, विद्यार्थियों की होमवर्क कॉपियां जांचेंगे, अपनेआप को अपडेट करेंगे, रजिस्टर व फीस का लेखा-जोखा तैयार करेंगे, मिड-डे- मील की गुणवत्ता जांचेंगे आदि-आदि। कोई पूछे इस निदेशालय से कि साल के अंतिम महीने के अंतिम सप्ताह में ये सब बातें यकायक उसके दिमाग में कहा से आ टपकी?
सर्वविदित है कि आकस्मिक छुट्टियां आकस्मिक काम के लिये ही होती हैं। जैसे कि कोई बीमार हो जाये, पहले से ही तयशुदा कोई विवाह अथवा कोई सामाजिक एवं पारिवारिक काम निकल आये तो उसके लिये आकस्मिक अवकाश लेना जरूरी होता है। इसे निदेशालय रोक नहीं सकता। निदेशालय ने जो उक्त शैक्षिक काम गिनवाये हैं उन सभी कामों के लिये एक नियमित एवं योजनाबद्ध प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
शिक्षा कोई अचानक पैदा हो जाने वाला काम नहीं है। यह एक स्थाई काम है इसके लिये यकायक नींद से उठ कर कार्यक्रम बनाना किसी नौटंकी से कम नहीं लगता। काम के नाम पर निदेशालय द्वारा समय-समय पर की जाने वाली किसी तरह की नौटंकियों के चलते सरकार का पैसा तो जरूर व्यर्थ जाता है, परिणाम निल बटा सन्नाटा ही रहता है।
निदेशालय ने पहली जनवरी से स्कूलों में सर्दी की छुट्टियां भी घोषित कर दी हैं। राज्य भर के सरकारी स्कूलों में अब छुट्टियों की कोई नियमित व्यवस्था नहीं रह गई है। अधिक गर्मी पड़े तो स्कूल बंद, बरसात हो जाय तो स्कूल बंद, सर्दी बढ़ जाय तो स्कूल बंद, और कोई आफत आ जाय तो स्कूल बंद। इसके विपरीत तमाम निजी स्कूल एक तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार चलते हैं। उनके काम करने का साल भर के लिये स्थाई कैलेंडर बना रहता है। उनके पास पर्याप्त कमरे व अन्य सुविधाओं के चलते सर्दी, गर्मी, बरसात की वजह से शैक्षणिक कार्यों में कोई बाधा नहीं आती जबकि सरकारी स्कूलों के बच्चों को खुले मैदान अथवा खंडरनुमां इमारतों में बैठना पड़ता है। इसी के चलते हर मौसम में छुट्टियों की बहार लगी रहती है।