नगर निगम ने सील की बीसियों इमारतें, पर किसकी कमाई के लिए?

नगर निगम ने सील की बीसियों इमारतें, पर किसकी कमाई के लिए?
August 16 21:48 2022

फरीदाबाद (म.मो.) बीते रविवार को, छुट्टी का दिन होते हुए भी नगर निगम द्वारा चलाये गये विशेष अभियान के तहत एनआईटी नम्बर 1,3 व 5 मेंं 20 से अधिक बहुमंजिला इमारतें सील कर दी गयी।

सवाल ये पैदा होता है कि यह सीलिंग है क्या चीज़? क्या इसके बाद इमारत गिरा दी जायेगी? या फिर  यह भवन निर्माता को दबाव में लेकर सौदेबाज़ी करने का एक बेहतर हथियार है? बीते वर्षों में शहर भर में जो सैकड़ों इमारतें सील हुई हैं उनका क्या हुआ? वे सब सही सलामत इस्तेमाल में आ रही हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सेक्टर 7-10 की मार्केट कई बार सील हो चुकी, कई बार उन दुकानों के सामने रुकावटें भी खड़ी की गई उसके बावजूद आज भी वे तमाम दुकानें सुचारु ढंग से अपना कारोबार कर रही हैं। इसी तरह एनआईटी के तमाम बाजारों में अनेकों दुकानें सील की गई थीं जो आज खुली हुई हैं।

इमारतों को सील करने का प्रचार तो पूरे ढोल-धमाके के साथ किया जाता है, परन्तु उनकी सील लोगों ने कब स्वयं हटा ली या नगर निगम ने किस आधार पर उन सीलों को हटाया, इस बाबत नगर निगम हमेशा खमोश रहता है। अवैध बता कर जिस इमारत को सील किया जाता है वह कोई एक-दो दिन में तो बन कर खड़ी हो नहीं जाती, उसके बनने में महीनों व साल लग जाते हैं। निर्माण के दौरान नगर निगम कौन सी अफीम खा कर सो रहा होता है? क्यों नहीं पहली ईंट लगते ही निगम हरकत में आता? यह बात मानने को कोई तैयार नहीं कि निर्माण शुरू होने का निगम को पता ही नहीं चलता। दरअसल हर निर्माण शुरू ही निगम अधिकारियों की मिलीभगत एवं हिस्सेदारी में होता है।

बहुत गरजने-बरसने के बाद निगमायुक्त यशपाल यादव ने जो उक्त इमारतें सील की हैं वे बहुत जल्दी ही खुल जायेंगी। इनके नक्शे भी पास हो जायेंगे, निर्माण में किये गये उल्लंघनों को कम्पाऊंड करके अवैध निर्माण को वैध कर दिया जायेगा। जाहिर है यह सब काम मुफ्त में तो होता नहीं, इसके लिये अच्छी-खासी सौदेबाज़ी एवं लेन-देन होता है। यदि यही सब काम इमारत के निर्माण से पहले हो जाये तो निगम में बैठे मगरमच्छ क्या खायेंगे? इन मगमच्छों के पालन-पोषण के लिये हल्की-फुल्की तोड़-फोड़ व सीलिंग का नाटक करना जरूरी होता है।

एनएच 3 में बनी कुछ अवैध इमारतों की तोड़-फोड़ का नाटक करने जब निगमकर्मी पहुंचे तो क्षेत्र का पूर्व पार्षद मनोज नासवा अड़ कर खड़ा हो गया और तोड़-फोड़ नहीं करने दी। एक नासवा ही नहीं लगभग सभी पार्षदों का यही धंधा है। और तो और क्षेत्र की विधायक सीमा त्रिखा भी प्राय: अवैध बिल्डरों के पक्ष में खड़ी नजर आती हैं।

यहां समझने वाली बात यह है कि जब पार्षदों व विधायक को तोड़-फोड़ के विरोध में खड़े होना पड़ता है तो ये सब लोग मिलकर निगम द्वारा नक्शा पास करने की प्रक्रिया को सरल क्यों नहीं बनाते? यही तो समझने की बात है, यदि सब काम स्वत: एवं सुचारु रूप से होने लगें तो इन नेताओं की दुकानदारी फिर  कैसे चल पायेगी? इसलिये मौजूदा व्यवस्था इन सभी नेताओं को माफिक  आ रही है।

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Mazdoor Morcha
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