फरीदाबाद (म.मो.) पिछले कुछ माह से नगर निगम में हुए 200 करोड़ के एक घोटाले की चर्चा काफी जोरों से चल रही है। कहा जा रहा है कि 200 करोड़ रुपये ऐसे कामों पर खर्च कर दिये गये हैं जो धरती पर हुए ही नहीं। यानी कि काम को केवल फाइलों में हुआ दिखा कर बिल पास कर दिये गये और बाद में दफ्तर में लगी आग में सब फाइलें जल गईं।
आपराधिक कहानीकार की दृष्टि से कहानी तो परफेक्ट क्राइम की बनाई गई थी। लेकिन कुछ पार्षदों ने कहीं-कहीं से उन फर्जी कामों के कुछ सबूत जुटा कर मामले को उछाल दिया। माल हड़पने वालों ने मामले को दबाने का प्रयास तो भरसक किया लेकिन मामला इतना भारी था कि वह कहीं न कहीं से तो बाहर झांकने लगता था। होते-होते मामला इतना बाहर निकल आया कि खट्टर सरकार को मजबूरन आपराधिक मुकदमा दर्ज करके इसकी जांच विजिलेंस को देनी पड़ी।
अब विजिलेंस कोई ऐसी पुलिस तो है नहीं जो खट्टर के इशारों को न समझ पाती हो। जाहिर है कि विजिलेंस के हाथ भी उसी के गले तक पहुंच पायेंगे जिसकी अनुमति खट्टर जी देंगे। अभी तक मिली अनुमति के अनुसार विजिलेंस के हाथ केवल एक ठेकेदार सतवीर, दो चीफ इंजीनियरों दौलतराम भास्कर, रमण शर्मा व एक जेई दीपक को इस मामले में अभी तक गिरफ्तार किया गया है। मजे की बात तो यह है कि उक्त दोनों चीफ इंजीनियर ऐसे हैं जिन्होंने कभी इंजीनियरिंग कॉलेज की शक्ल तक नहीं देखी, वहां पढक़र डिग्री लेने की बात तो छोड़ ही दीजिये। ऐसे अनपढ़ व जाहिल चीफ इंजीनियरों को मैट्रो रेल वाले अथवा लार्सन एन्ड टूब्रो जैसे संस्थान अपने यहां जेई तो क्या बेलदार तक न लगाएं। जबकि नगर निगम में तो दीपक बेलदार होते हुए जेई का धंधा कर रहा था।
उक्त घोटाला कोई एक दिन में अथवा किसी एक निगमायुक्त के कार्यकाल में तो हो नहीं गया था। यह कई वर्षों में हुआ है। इतनी बड़ी रकम दीपक जैसा जेई, सतवीर जैसा ठेकेदार तो अपने बूते हड़प नहीं सकता। इसके लिये ऊपर तक लगी इंजीनियरों की लाइन का शामिल होना जरूरी है। निगमायुक्त की मर्जी एवं साझेदारी के बिना ये तमाम इंजीनियर भी कुछ कर पाने की हैसियत नहीं रखते।
जाहिर है इस तरह के घोटालों में निगमायुक्त का शामिल होना निहायत जरूरी है। इतने भले तो यहां के विधायक, सांसद व मंत्री भी नहीं हैं कि जो चुपचाप औरों को मोटा माल डकारते हुए देखते रह जायें। इनकी मर्जी के बिना निगमायुक्त एक दिन भी अपनी कुर्सी पर नहीं रह सकता। कुल मिलाकर लब्बो-लुआब यह है कि सबने मिल बांट कर जनता का धन डकारा है। अब देखना यह है कि खट्टर का हाथ कितनी गर्दनों को नापने की हैसियत रखता है?