खट्टर ने खुद माना कि बीते छह-सात साल में नगर निगम फरीदाबाद लूट भी रहा है और इसकी लुटाई भी हो रही है फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) नगर निगम में खुली लूट मची है, सार्वजनिक रूप से कुबूल करने वाले मुख्यमंत्री खट्टर इस लूट पर अंकुश नहीं लगा पाएंगे। वजह, इस लूट में उनके नेता और अधिकारी ही तो शामिल हैं। विकास कार्यों के नाम पर लूट कमाई का बंटवारा कराने के लिए निगम में सत्तापक्ष के चहेते ठेकेदार और अधिकारी ही तो लगाए गए। जिस अधिकारी ने निगम और सरकारी खजाने की हिफाजत करनी चाही उसे इन्हीं नेताओं के इशारे पर दूध की मक्खी की तरह निकाल कर मलाई खाने वाले को तैनात कर दिया गया। विज्ञापन विभाग का चार्ज ईमानदार निगम सचिव जयदीप से लेकर भ्रष्ट अधीक्षण अभियंता ओमबीर को दिया जाना इसका हालिया उदाहरण है।
दो सितंबर को हुई ग्रीवेंस कमेटी की बैठक में सेक्टर 62-63 के लोगों ने जलभराव की समस्या का रोना रोया तो खट्टर ने उनकी समस्या का समाधान करने के बजाय नगर निगम में भ्रष्टाचार का अपना रोना शुरू कर दिया मानो कि इसके लिए वे शिकायतकर्ता ही जिम्मेदार हों। उन्होंने कहा कि बीते साठ-आठ सालों में नगर निगम में जितना भ्रष्टाचार हुआ है प्रदेश के अन्य निगमों में नहीं हुआ, यहां लूट हो रही है और लुटवाई भी हो रही है। सीएम ने सार्वजनिक मंच पर भ्रष्टाचार तो कुबूल कर लिया लेकिन जांच करा भ्रष्टों को पकड़वाने के बजाय सिर्फ ये कह कर पल्ला झाड़ लिया कि जो गलत थे उनके खिलाफ कार्रवाई की गई, लेकिन उन्होंने आज तक नहीं बताया कि किसके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई और क्या वसूली हुई। निगम के भ्रष्टाचार के प्रति गंभीर होने का दावा करना जुमले से ज्यादा कुछ नहीं था।
बैठक में उन्हें जानकारी दी गई कि नगर निगम में अवैध विज्ञापन का चार्ज उसी एसई ओमबीर को दे दिया गया है जिस पर पहले ही विज्ञापन घोटाले में लिप्त होने का आरोप है, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया, इससे ही पता चलता है कि वह भ्रष्टाचार के प्रति असल में कितने गंभीर हैं और निगम को कौन लुटवा रहा है। एसई ओमबीर पर विज्ञापन घोटाले के अलावा अन्य घोटालों के भी आरोप हैं। तारीफ की बात तो यह है कि ओमबीर पर घोटालों के आरोप भी लगते रहते हैं और लगातार पदोन्नतियां भी मिलती रहती हैं।
जाहिर है कि घोटालों का आरोप लगाना और उन्हें हटाना खट्टर के राज में ये एक अच्छा खासा व्यापार बन चुका है। निगम सचिव जयदीप ने विज्ञापन माफिया के जिन अवैध विज्ञापनों को हटवाया था, एसई ओमबीर को चार्ज मिलते ही रातों रात उन जगहों पर नए विज्ञापन लगा दिए गए। मुख्यमंत्री के आने से पहले ही ओमबीर की शह पर विज्ञापन माफिया ने फिर से शहर को रंग डाला, मुख्यमंत्री इन्हें हटवाने तक का आदेश नहीं जारी कर सके। करते भी कैसे, सरकार ने ही तो निगम में भ्रष्ट अफसरों को लूट कमाई करने की खुली छूट जो दे रखी है। निगम के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक दो सौ करोड़ रुपयों का घोटाला मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे एक अधिकारी के इशारे पर हुआ था। कैग ने भी 184 करोड़ रुपये के एक अन्य घोटाले का खुलासा किया इसमें खट्टर के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा के चहेते ठेकेदार सतबीर सिंह को फायदा पहुंचाने के लिए 4 लाख की फाइलों का बजट बढक़र 99 लाख कर दिया गया। बड़ी बात यह रही कि कई जगह बजट तो बढ़ाया गया, लेकिन काम हुआ ही नहीं।
इस साल की शुरूआत में एंटी करप्शन ब्यूरो ने नगर निगम में 50 करोड़ रुपये का एक अन्य घोटाला उजागर किया था। इसमेें दस वार्डों में बिना ईंट लगाए ही एक ही ठेकेदार की तीन फर्मों को 32 करोड़ का भुगतान किया गया था। यह ठेकेदार भाजपा से जुड़ा है। 2018 में आरटीआई कार्यकर्ता वरुण श्योकंद ने विज्ञापन विभाग में करोड़ों रुपये के घोटाले का पर्दाफाश किया था। तब भी निगम अधिकारी अवैध विज्ञापन माफिया की मिलीभगत से प्रति माह करोड़ों रुपये डकार रहे थे, ये खेल आज तक जारी है।
नगर निगम डिवीजन तीन में अधीक्षण अभियंता ओमबीर ने अक्तूबर 2019 में विज्ञापन एजेंसी श्याम इंटर प्राइजेज से यूनीपोल, गैंट्री लगाने का अनुबंध किया। नियमों के खिलाफ जाते हुए चालाकी से यह अनुबंध नगर निगम के बजाय अधीक्षण अभियंता के नाम कराया गया। यदि यह अनुबंध नगर निगम से होता तो उसके उपबंधों में आसानी से बदलाव नहीं किया जा सकता था, ऐसा करने से ओमबीर के हाथों में यह अधिकार चला गया। अनुबंध के अतिरिक्त ओमबीर ने अवैध विज्ञापन माफिया को यूनीपोल, गैंट्री और बैनर-पोस्टर, होर्डिंग लगाने की खुली छूट दे दी। यह अवैध विज्ञापन माफिया सांसद-मंत्री-विधायक के करीबी हैं। इसी कारण उन्हें मोटी कमाई वाले विभाग में जगह दी गई। नतीजा करोड़ों रुपये के विज्ञापन घोटाले के रूप में सामने आया।
जीरो टॉलरेंस का जुमला फेकने वाले मुख्यमंत्री नगर निगम में भ्रष्टाचार पर चिंता तो जता रहे हैं लेकिन दागी चाल-चरित्र वाले अधिकािरयों को हटाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं, कर भी कैसे पाएंगे, इन अधिकारियों को उनकी सरकार ने ही तो अपनी पार्टी के नेता, जनप्रतिनिधियों की सिफारिश पर ये पद सौंपे हैं। यदि भ्रष्टाचार समाप्त करने की सच्ची नीयत है तो सबसे पहले अपनी पार्टी के नेता और जन प्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाइए फिर निगम में इनकी चाटुकारिता करने वाले अधिकारियों पर, लेकिन इसके लिए जुमला नहीं दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है।
नगर निगम हो या ‘हूडा’ इनमें तैनात होने वाले अफसरों को ऐेसे लगाया जाता है मानो कि वे नीलामी में यहां की पोस्टिंग खरीद कर लाए हों। बीते आठ-नौ साल का इतिहास देखने से पता लगता है कि कोई भी अधिकारी साल छह महीने से अधिक इन पदों पर तैनात नहीं रह पाता, क्योंकि बोली देने वाले अन्य अधिकारी ऊंची बोली लगाकर मैदान में आ जाते हैं। इसी लूट कमाई के बदौलत सेक्टर 15 में भाजपा का चार मंजिला भव्य कार्यालय बन पाया है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री किशन पाल गूजर व अन्य नेताओं की जायदादों में जो दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है वह भी इसी लूट कमाई के चलते हो रही है।
लूट कमाई में बाधक जयदीप जैसे अफसर नहीं चाहिए 2004 बैच के एचसीएस अधिकारी जयदीप ने बतौर निगम सचिव अवैध विज्ञापन माफिया पर अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी का वार किया, विज्ञापन माफिया की कमर तोड़ते वक्त उन्होंने मंत्री किशनपाल गूजर को भी नहीं बख्शा तो खट्टर सरकार की ‘ईमानदारी’ न जाने कहां काफूर हो गई। चंद घंंटों बाद ही उनसे विज्ञापन संबंधित अधिकार वापस ले लिए गए। इस मामले से जहां खट्टर सरकार एवं स्थानीय नेताओं की पोल चौड़े में खुल गई है वहीं जयदीप ने यह साबित कर दिया है कि रीढ़ की हड्डी वाले अफसर अभी मौजूद हैं, सभी अफसर नेताओं के तलवे चाट कर उनके पैरों में रेंगने वाले नहीं होते। इस मामले ने यह भी साफ कर दिया है कि इन तमाम राजनेताओं को बिना रीढ़ की हड्डी वाले चाटुकार एवं रेगने वाले वे अफसर ही पसंद आते हैं जो खुद भी लूटें और इन्हें भी लूट का माल खिलाएं।