फरीदाबाद (म.मो.) नगर निगम में चल रही खुली लूट के लिये अब भ्रष्टाचार जैसा शब्द बहुत ही हल्का पडऩे लगा है। इसे लाइसेंसी लूट एवं डकैती कहना ज्यादा न्यायसंगत होगा। एसडीओ सुमेर, एसडीओ अमित, ज्वाइंट कमिश्नर की पीए प्रवीण कालड़ा व बेलदार अमरपाल सहित आठ कर्मचारियों के विरुद्ध रिश्वतखोरी का मुकदमा दर्ज करा कर खट्टर शासन-प्रशासन जता रहा है कि उसने रिश्वतखोरी के विरुद्ध बहुत बड़ा तीर मार दिया है।
सुधी पाठक भली-भांति समझ लें कि यह कवायद केवल जनता का ध्यान भटकाने मात्र को है। इसके द्वारा सरकार बताना चाहती है कि वह तो पूरी तरह से पाक-साफ है और सारे काम बिना पर्ची-खर्ची के किये जाते हैं। लेकिन वास्तविकता एकदम इसके विपरीत है। यदि सरकार एवं उसके उच्च अफसरशाह पाक-साफ होते तो मातहत कर्मचारियों की हिम्मत नहीं जो इस प्रकार की लूट-खसूट एवं रिश्वखोरी कर सकें। दरअसल छोटे कर्मचारी तो लूट कमाई अपने उच्चाधिकारियों एवं राजनेताओं के लिये ही करते हैं। इसी के चलते पकड़े जाने एवं मुकदमा दर्ज होने की इन्हें कोई परवाह नहीं होती। उन्हें अपने आकाओं पर पूरा भरोसा रहता है कि वे उन्हें हर मुसीबत से निकाल लेंगे। इसी का सबूत है कि आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी को न तो कैद हुई है और न ही उनसे कोई रिकवरी।
पूरे शहर भर में चाहे कोई ‘हूडा’ के सेक्टरों में मकान बनाये या नगर निगम के क्षेत्र में, नक्शा पास करवाने से लेकर कम्पलीशन सर्टिफिकेट लेने तक हर व्यक्ति को लाखों रुपये बतौर रिश्वत के देने पड़ते हैं। रिश्वत की यह वसूली प्राय: जेई तथा कुछ मामलों में एसडीओ द्वारा की जाती है। शहर का बच्चा-बच्चा इस ‘रहस्य’ से परिचित है। रिश्वत से बचने के लिये जिस किसी ने भी उच्चाधिकारियों अथवा राजनेताओं से शिकायत की भी तो उन्हें सदैव टका सा जवाब यही मिला कि सिस्टम ही ऐसा है, ले-दे कर काम निकाल लो।
यदि कोई ईमानदार एवं कडक़ अधिकारी रिश्वतखोर जेई एवं एसडीओ की नकेल कसना भी चाहे तो तुरन्त उसके ऊपर राजनेताओं का दबाव डलवा दिया जाता है। इन हालात में कोई भी अफसर लफड़े-झपड़े में पडऩे की बजाय चुप करके लूट में से अपना हिस्सा वसूलने लगता है। प्राय: देखने में आया है कि मोटी लूट कमाई वाली तैनातियों के लिये राजनेताओं की सिफारिशें लगवाई जाती हैं। जाहिर है कि ये सिफारिशें मुफ्त में तो नहीं ही लगती। इसके एवज में बाकायदा लूट कमाई से हिस्सा वसूली का लेन-देन होता है। इसी के चलते कोई शिकायत आने पर इसे प्रचलित सिस्टम कह कर रफा-दफा कर दिया जाता है।
गौरतलब है कि 21 डी की इन्दिरा इन्कलेव निवासी सेठी नामक बिल्डर की शिकायत पर उक्त एफआईआर दर्ज की गयी है। मजे की बात तो यह है कि इस एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी सेठी को हाईकोर्ट तक जाना पड़ा। हाईकोर्ट के निर्देश पर ही पुलिस को मजबूरन यह मुकदमा इन चोरों के खिलाफ दर्ज करना पड़ा। इसी एफआईआर में सेठी ने यह भी लिखवाया है कि उन्हीं के मौहल्ले में वर्ष 2018 में एक टयूबवैल लगाने के नाम पर लाखों रुपया हड़प लिया गया और टयूबवैल आज तक भी नहीं लगा है।
हैरान करने की बात तो यह भी है कि जो टयूबवैल लगा ही नहीं उसका 6 लाख रूपए का बिल भी आ चुका है। इस बिल में से 1 लाख की पेमेन्ट भी हो चुकी है। है ना घोटाले में गजब का घोटाला। इस टयूबवैल का फर्जीवाड़ा करने वाले तत्कालीन एक्सईएन आज नगर निगम के चीफ इंजीनियर बने हुए हैं इनका नाम है बीके कर्दम।