फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) नगर निगम में नियम क़ानून ताक पर रख अयोग्य कर्मचारियों की पद संज्ञा बदल कर उन्हें धन वसूली के लिए कमाई वाले पद पर तैनाती दी जाती है। सफाईकर्मी के पद पर भर्ती हुए प्रेमचंद को नियम तोड़ कर पुस्तकालय अनुचर बनाया गया। अब पद तो उसका पुस्तकालय अनुचर यानी चपरासी का है लेकिन वह कथित तौर पर नगर निगमायुक्त का स्पेशल ‘पीए’ बन कर काम कर रहा है। बताया जाता है कि इस पद पर रहते हुए निगम में जेई, ठेकेदारों व अन्य कर्मचारियों से वसूली का काम करता है। जाहिर है वसूली गई रक़म में यह कथित ‘पीए’ अपने अधिकारियों को भी हिस्सा पहुंचाता है तभी तो अनुचर होने के बावजूद अहम ओहदे पर जमा हुआ है।
खुद को वर्तमान एनआईटी विधायक नीरज शर्मा के पारिवारिक सदस्य की तरह बताने वाले प्रेमचंद की नौकरी नगर निगम में वर्ष 1993 में सफाई कर्मी के पद पर लगी थी। हरियाणा नगर निगम कर्मचारी भर्ती एवं शर्तें सेवा नियम 1998 में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी भी कर्मचारी की पदसंज्ञा नहीं बदली जा सकती। बावजूद इसके नियमों को ताक पर रख कर उस पर मेहरबान 1997 में तत्कालीन निगमायुक्त ने उसकी पद संज्ञा पुस्तकालय अनुचर कर दी। यह जानते हुए भी कि नियमानुासर पद संज्ञा नहीं बदली जा सकती इसके बावजूद सितंबर 2000 में बाकायदा इसकी सूचना सरकार को भी भेज दी गई। तत्कालीन सरकार में बैठे शहरी स्थानीय निकाय के सचिव और आला अधिकारी भी नियम विरुद्ध हुए इस काम पर चुप्पी साधे रहे।
मेहरबान अधिकारियों ने जून 2011 के शासनादेश के आधार पर प्रेमचंद की नौकरी स्थायी कर दी। नियुक्ति, पद संज्ञा बदलाव से लेकर स्थायी किए जाने तक की गई गड़बडिय़ों को छिपाने के लिए प्रेमचंद के मूल दस्तावेजों की फाइल रिकॉर्ड में नहीं रखी गई, बल्कि कथित तौर पर निगमायुक्त ने अपने पास रखी हुई है। निगम के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार निगमायुक्त कार्यालय की सारा काम देखने वाले प्रेमचंद ने अपनी नौकरी की यह फाइल खुद ही गायब कर दी है। अकाउंट या एचआर डिपार्टमेंट के कर्मचारियों को बता दिया जाता है कि फाइल निगमायुक्त के पास है, इसके बाद वे फाइल मांगने की हिम्मत नहीं करते।
पुस्तकालय अनुचर होने के बावजूद प्रेमचंद निगमायुक्त कार्यालय में तैनात सभी कर्मचारियों, लिपिकों से ऊपर बताया जाता है। कहने को तो निगमायुक्त के पीए का कोई पद नहीं है लेकिन निगम के अधिकारी कर्मचारी ही नहीं निगमायुक्त से मिलने आने वाले ठेकेदार, अधिकारी भी प्रेमचंद को पीए ही जानते- मानते हैं। वजह यह है कि निगमायुक्त की मेज पर पहुंचने और वहां से निकलने वाली प्रत्येक फाइल प्रेमचंद की मेज से होकर ही गुजरती है। अधिकारियों से इतनी अच्छी सांठ-गांठ है कि चपरासी होने के बावजूद नगर निगम के आला अधिकारियों को सरकार की तरफ से मिलने वाले बंगले में रह रहा है।
बेताज बादशाह बने इस अनुचर की तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों में इतनी दहशत है कि उसके फरमान को निगमायुक्त का ही फरमान माना जाता है। निगम के भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि जेई आदि को मनपसंद स्थान पर पोस्टिंग दिलाने के लिए अधिकारियों को खुश करने का सुविधा शुल्क प्रेमचंद ही वसूल करता है। ठेका देने से लेकर विकास कार्यों की स्वीकृति, भुगतान आदि सभी फाइलें निगमायुक्त के बाद पहले प्रेमचंद तक ही पहुंचती हैं, इसलिए इनका कमीशन या सुविधा शुल्क वसूलने का काम भी वही करता है।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को इतना बड़ा ओहदा दिए जाने से निगमायुक्त कार्यालय के लिपिकों से लेकर वरिष्ठ कर्मचारियों में रोष है लेकिन साहब की चाहत होने के कारण कोई खुल कर शिकायत नहीं करता। खास बात यह है कि प्रेमचंद की पहुंच कांग्रेस से लेकर भाजपा सरकार मेें भी अच्छी है यही कारण है कि कांग्रेसी विधायक नीरज शर्मा का करीबी होने के बावजूद भाजपा सरकार के नौ साल के कार्यकाल में वह अनुचर रहते हुए भी निगमायुक्त के कथित निजी सहायक पद पर बना हुआ है। जीरो टालरेंस के दावे करने वाले मुख्यमंत्री खट्टर को जब निगम के बड़े घोटाले नहीं नजर आते तो एक अदना से कथित पीए का भ्रष्टाचार कहां दिखेगा। अब देखना है कि नव नियुक्त निगमायुक्त मोना ए श्रीनिवास उसे पुन: सफाई कर्मचारी पर वापस भेजेंगी।