फरीदाबाद (म.मो.) हरियाणा सरकार ने कुछ सुविधाजनक स्थिति समझते हुए अगले माह यानी अप्रैल में निगम के चुनाव कराने की घोषणा की है। वैसे निगम का कार्यकाल जनवरी में ही समाप्त हो चुका है। कायदे से यह चुनाव मियाद पूरी होने से पहले कराने चाहिये थे, जैसे कि विधानसभा व लोकसभा के लिये कराये जाते हैं। परन्तु स्थानीय निकायों के चुनाव सरकारें अपनी सुविधा यानी अपने राजनीतिक नफे-नुक्सान का गणित लगा कर कराती हैं। भाजपा की दिन ब दिन गिरती साख के मद्देरनज़र, शायद खट्टर को अब बेहतरीन अवसर दिखाई दे रहा है।
दूसरी ओर स्थानीय सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर अपने बेटे देवेन्द्र के राजनीतिक भविष्य को लेकर काफी चिंतित एवं उतावले हैं। विधायक बनने के लिये टिकट न मिलने के चलते निगम का पार्षद एवं सीनियर डिप्टी बना कर ही अब तक तो काम चला दिया परन्तु वे इतने भर से सन्तुष्ट कैसे हो सकते हैं, वे उसे शीघ्रातिशीघ्र मेयर बनाने के चक्कर में हैं। इसी प्रयास में उन्होंने आसपास के दर्जनों गांवों को नगर निगम में मिलवा दिया है। इस से जहां ग्राम पंचायतों की सैंकड़ों करोड़ की एफडी निगम की कंगाली दूर करेगी वहीं सैंकड़ों एकड़ पंचायती ज़मीनें भी निगम को मिलेंगे, जिन्हें वह धीरे-धीरे बेच खायेगी। इसके अलावा मंत्री गूजर को ग्रामीण क्षत्रों में, अपने बेटे के लिये बड़ा वोट बैंक भी नजर आ रहा है। बेटेे के मेयर बनने की पक्की उम्मीद के चलते मंत्री गूजर ने, अपने प्रभाव से आगामी मेयर के लिये जो चकाचक दफ्तर बनवाया है उस पर कंगाल निगम का 85 लाख खर्च हो चुका है। इतना ही नहीं, इस से कई गुणा अधिक खर्च करके मेयर आवास भी बनाया जा रहा है। विदित है कि अब तक चार से अधिक मेयर जिस दफ्तर व आवास से काम चला कर जा चुके हैं वह मंत्री पुत्र मेयर की शान के अनुरूप नहीं समझा गया।
कठपुतली मेयर की जगह आयेगा असली मेयर अभी तक, कहने को तो पार्षद अपने बहुमत के आधार पर मेयर चुनते थे, परन्तु यह सब एक ढकोसला होता था, मेयर वही होता था जिसे मुख्यमंत्री चाहता था और मुख्यमंत्री उसे चाहता था जिसे उनके स्थानीय सांसद, विधायक एवं मंत्री चाहते थे। इस तरह से बनाये गये मेयरों की कभी कोई औकात नहीं रही। जब मेयर की ही कोई औकात न हो तो पार्षदों की कौन परवाह करता है। ऐसे में निगमायुक्त एवं तमाम नौकरशाही जनप्रतिनिधियों पर हावी रहती आई है। उन्होंने विकास कार्यों के नाम पर जी भर कर जनता के धन को लूटा है। बेखौफ एवं निरंकुश अफसरशाही ने पूरे शहर की ऐसी-तैसी कर छोड़ी है। ऐसे में कुछ पार्षदों ने भी ‘मौके’ का लाभ उठाते हुए बहती गंगा में हाथ धोना बेहतर समझा। लेकिन इस बार से मेयर का चुनाव सीधे तौर पर जनता ही करेगी। विपक्षी दल का मेयर चुने जाने पर सरकार पंगेबाज़ी तो जरूर करेगी लेकिन बहुत ज्यादा कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं होगी। ऐसे में यदि कोई ईमानदार एवं दक्ष मेयर हो तो शहर में कुछ सुधार की आशा की जा सकेगी।