नगर निगम की लूट कमाई का बडा स्रोत है तोड़-फोड़ का धंधा

नगर निगम की लूट कमाई का बडा स्रोत है तोड़-फोड़ का धंधा
October 21 13:27 2021

फरीदाबाद (म.मो.) बीते सप्ताह नम्बर एक के बाजार में नगर निगम के दस्ते ने बड़े पैमाने पर दुकानदारों द्वारा अपने सामने की सड़क पर किये गये अवैध कब्जों को धाराशाही किया था। दुकानों के बाहर रखे सामान व काऊंटर आदि उठा लिये गये या तोड़ दिये गये। इस दस्ते के मुखिया एसडीओ सुमेर सिंह से जब इस संवाददाता ने तोड़-फोड़ की कार्यवाही बाबत पूछा तो उनका कहना था कि वे अपने क्षेत्र के तमाम बाजारों में दुकानदारों द्वारा किये गये अवैध कब्जों को समाप्त कराकर रहेंगे ताकि पैदल चलने वालों को फुटपाथ नसीब हो सके और जाम से राहत मिल सके। यह सब वे अपने निगमायुक्त के आदेश पर कर रहे हैं।

कहीं यह तोडफ़ोड़ उगाही का साधन तो नहीं है जो एक दिन करन के बाद फिर से यथास्थिति में लौट आयेंगे? जवाब में उन्होंने कहा कि नहीं यह स्थाई है, दोबारा कब्जे नहीं होने देंगे। लेकिन हकीकत इसके विपरीत आज सामने है, कब्जे ज्यों के त्यों है, सड़कों पर सामान व काऊंटर ज्यों के त्यों फुटपाथ घेरे हुए हैं। समझा जा सकता है कि यह तोडफ़ोड़ केवल एक रस्म अदायगी से अधिक कुछ नहीं है जिसके द्वारा दुकानदारों को नगर निगम की विध्वंसकारी शक्तियों से अवगत कराया जाता है ताकि लेनदेन बना रहे। वरना निगम चाहे तो यह समस्या स्थायी तौर पर हल हो सकती है और वह भी बिना तोडफ़ोड़ दस्ते के। जी हां, बिना तोड़-फोड़ दस्ते के। निगम के पास अवैध कब्जों के चालान करने का अधिकार है जिसमें भारी जुर्माने का प्रावधान है। कोई भी दुकानदार लगातार हो सकने वाले इन जुर्मोनों को सही नहीं सकता।

बाजारों के अलावा असल लूटकमाई तो अवैध निर्माणों से है
कुछ समय पूर्व जब यशपाल यादव ने बतौर डीसी नगर निगम का अतिरिक्त चार्ज संभाला तो उन्होंने बीसियों अवैध कब्जों एवं निर्माणों की सूची जारी कर कार्यवाही का आदेश दिया था। मजदूर मोर्चा ने वह पूरी सूची ज्यों की त्यों प्रकाशित की थी। लेकिन आज जब उनके पास नगर निगम का पूरा एवं स्थायी चार्ज है तो यादव जी की उस सूची व जारी किये गये आदेशों का क्या हो रहा है? होना क्या था, वही हो रहा है, जो सदा से होता आ रहा है। सभी अवैध कब्जे न केवल कायम हैं बल्कि उन भवन निर्माण कार्य भी धड़ल्ले से चल रहे हैं। जाहिर है इसके लिये मोटा लेन-देन होता है। लाखों में नहीं यह रकम करोड़ों तक होती है। इसे निचले कर्मचारी अकेले हजम कर पाने की क्षमता नहीं रखते।

इस अवैध कारोबार का तरीका कुछ इस प्रकार होता है कि बिल्डर जैसे-तैसे नक्षा तो पास करवाता है, रिहायशी का और वह भी मात्र 25 प्रतिशत हिस्से का और निर्माण कार्य, योजनाबद्ध तरीके से पूरे प्लॉट पर कमर्शियल के हिसाब से करता है। नियमानुसार डीपीसी लेवल पर निर्माण कार्य की जांच होती है, यदि नक्शे के मुताबिक डीपीसी का निर्माण किया हो तो आगे का काम नहीं हो सकता। परन्तु निगम अफसरों की मिलीभगत से सारा फर्जीवाड़ा होता रहता है। उसके बाद जब अवैध निर्माण बन कर तैयार हो जाता है तो सील करने की नौटंकी की जाती है। कुछ दिन तक अवैध निर्माण सील रहता है, फिर सील तोड़ कर मालिक अपना कारोबार शुरू कर देता है। जाहिर है यह सब तमाम उच्चाधिकारियों की मिलीभगत के बिना कदापि संभव नहीं हो सकता।

बेशक आज के दिन सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से हो चुके एवं हो रहे तमाम निर्माण कार्यो का पूरा-पूरा लेखा-जोखा निगम अधिकारियों के पास मौजूद है। ऐसे हर निर्माण कार्य की तस्वीरें पूरे विवरण सहित मीडिया में प्रकाशित होती रहती हैं। अब इनकी संख्या इतनी अधिक हो चुकी है कि सभी तस्वीरों को छापने की जगह अखबार में नहीं है। फिर भी उदाहरण के लिये कुछ को छापा जा रहा है।

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Mazdoor Morcha
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