रोहतक (म.मो.) राज्य के मेडिकल छात्रों व जनता के हितों को ताक पर रखते हुए खट्टर अपनी बॉन्ड नीति पर पूरी बेशर्मी से डटे हुए हैं। उन्हें इस बात की कोई चिन्ता नहीं कि डॉक्टर एक माह से हड़ताल पर हैं और जनता त्रस्त।
छात्रों को छलने के लिये करीब दो सप्ताह पूर्व खट्टर ने अपनी बॉन्ड नीति में कुछ दिखावटी से परिवर्तन करके आन्दोलन को तोडऩे का प्रयास किया। छात्रों ने बेशक उसे अस्वीकार कर दिया लेकिन इसके बावजूद खट्टर ने अपनी इस योजना को दिनांक 21 दिसम्बर को अधिसूचित करके राजपत्र में प्रकाशित कर दिया कि संशोधित बॉन्ड पॉलिसी लागू हो गई है। लागू कैसे हो गई? सरकार द्वारा अपनी किताब (राजपत्र) में छापने मात्र से कोई चीज़ थोड़े ही लागू हो जाती है। यदि ऐसे ही लागू हो जाती तो यह काम खट्टर जी ने बहुत पहले ही कर लिया होता।
संशोधित नीति के अनुसार एमबीबीएस छात्रों से पढाई के दौरान पहले प्रस्तावित 40 लाख की बजाय 30 लाख लिये जायेंगे। महिला छात्राओं को 10 प्रतिशत की छूट देते हुए 27 लाख लिये जायेंगे। तथाकथित बॉन्ड अवधि सात साल से घटा कर पांच साल कर दी गई है। सबसे बड़ी बात खट्टर सरकार अपने तमाम मेडिकल कॉलेजों से पासआउट होने वाले करीब 900 डॉक्टरों को एक साल के भीतर नौकरी देगी।
हरियाणा सरकार की नौकरी में आने वाले तमाम डॉक्टरों का बॉन्डमनी सरकार उनके वेतन से न काटकर अपने खजाने से बैंक में ब्याज समेत भरेगी। बैंक को यह अदायगी सरकार पांच साल में पूरी कर देगी। बस यहीं पर पेंच है। छात्रों का कहना है कि जब सरकार ने ही बैंक को पैसा भरना है तो उनके नाम पर बैंकों से कर्जा क्यों निकलवाया जा रहा है? इसकी अपेक्षा उन डॉक्टरों से बॉन्डमनी की वसूली की जानी चाहिये जो सरकार की नौकरी करने से इन्कार करे।
ईएसआई कॉर्पोरेशन में इसी पॉलिसी के तहत उसकी नौकरी न करने वालों से पांच लाख की वसूली की जाती है। इसी तरह गुजरात में भी सरकारी नौकरी से इन्कार करने वालों से ही बॉन्डमनी वसूला जाता है।
खट्टर की इस पॉलिसी में सबसे बड़ा सवाल इनकी विश्वसनीयता पर भी है। खट्टर जी तो कल को चलते बनेंगे और आने वाली सरकार अपनी पॉलिसी बदल दे, धनाभाव में डॉक्टरों को नौकरी ही न दे तो बैंक तो बतौर कर्जदार डॉक्टरों को ही पकड़ेगा। यदि खट्टर सरकार की नीयत सा$फ है तो वह बैंक को बीच में क्यों लपेट रही है? क्या सरकार का बिल्कुल दिवाला निकल गया है जो सारी भरपाई छात्रों से ही करना चाहती है?
संशोधित पॉलिसी में पीजी छात्रों से जो सात लाख की वसूली योजना थी उसे तो रद्द कर ही दिया है, साथ में उनकी पढ़ाई के तीन वर्षों को भी सेवाकाल में शामिल करते हुए पांच साल का बॉन्ड पूरा कराया जायेगा।
दरअसल लड़कियों को 10 प्रतिशत की छुट तथा पीजी छात्रों को तथाकथित रियायत देकर उनमें फूट डालने का प्रयास किया जा रहा है।
‘फूट डालो राज करो’ की नीति पर चलते हुए जिस प्रकार भाजपा अपनी राजनीति देश भर में खेल रही है, उसी तर्ज पर खट्टर महाशय भी डॉक्टरों में फूट डालकर आन्दोलन को तोडऩा चाह रहे हैं। लेकिन लगता नहीं कि डॉक्टर इतनेे मूर्ख साबित होकर उनके जाल में फस जायेंगे।