केन्द्रीय श्रम मंत्री होने के नाते ईएसआई कार्पोरेशन का नेतृत्व एवं नियंत्रण पूर्णतया भूपेन्द्र सिंह यादव उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिये चिकित्सा की दृष्टि से मज़दूरों के लिये अति महत्वपूर्ण इस कार्पोरेशन की ओर मंत्री महोदय अपना ध्यान करें, केवल अफसरों के भरोसे न रहेंं। उनके आधीन आने वाले श्रम सचिव तथा कार्पोरेशन के डीजी तो आते-जाते रहते हैं। पिछले दिनों इस स्तर के आये अधिकारियों ने कार्पोरेशन की चिकित्सा सेवाओं में सुधार करने के सराहनीय प्रयास किये हैं। लेकिन असली जरूरत मुख्यालय में स्थाई रूप से जमे बैठे उच्चाधिकारियों को दुरुस्त करने की अधिक है।
डिस्पेंसरी स्तर के डॉक्टर जो दफ्तरों में बैठकर डॉक्टरी भूलकर पूरी तरह से बाबू बन चुके हैं, वे इस लायक नहीं हैं कि कारर्पोरेशन की उन्नत होती चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकताओं को समझ सकें। ये लोग आईसीयू, डायलेसिस तथा रेडियोलॉजी इत्यादि को पीपीपी मोड द्वारा ही चलाने में अक्लमंदी समझते हैं। चार कर्मचारियों का काम एक से और प्रशिक्षित स्टाफ की जगह अर्ध प्रशिक्षित स्टाफ से काम लेकर पैसा बचाने को प्राथमिकता देते हैं। इसके अलावा आवश्यक चिकित्सीय उपकरण खरीदते समय ये लोग सस्ते के चक्कर में घटिया से घटिया एवं पुरानी तकनीक के उपकरण खरीदने की कोशिश करते हैं। दुनिया भर की फिजूलखर्चियां करने में इन्हें कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन चिकित्सा सेवाओं में सुधार पर खर्च करने पर इनकी जान निकलती है।
मंत्री महोदय को कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, दिल्ली में ही स्थित एम्स संस्थान को देख लें कि उसे कौन लोग चला रहे हैं। वहां का डायरेक्टर कोई डिस्पेंसरी स्तर का नालायक न होकर उच्च शिक्षित, प्रशिक्षित एवं अनुभवी विशेषज्ञ डॉक्टर ही हो सकता है। इसके विपरीत कार्पोरेशन के तमाम मेडिकल कॉलेजों के सिर पर जहां पहले कटारिया जैसा नालायक बैठा रखा था वहीं अब उससे भी बड़ा नालायक दीपक शर्मा बैठा दिया गया है। अपने मन में पनपती हीन भावनाओं के चलते ऐसे उच्चाधिकारी उच्च चिकित्सीय मानकों वाले प्रोफेसरों को भला कैसे पसंद कर सकते हैं?
उसी के चलते फेकल्टी को भर्ती करने, उन्हें पदोन्नतियां व वेतनभत्ते देने में अनावश्यक अड़ंगेबाजी करते हैं। ये नालायक अधिकारी इतना तक भी देखने की कोशिश नहीं करते कि बगल में ही स्थित एम्स जैसे संस्थानों में फेकल्टी को क्या-क्या सुविधायें उपलब्ध हैं। इसी के चलते कार्पोरेशन के संस्थानों से फेकल्टी वाले एम्स जैसे संस्थानों की ओर अधिक आकर्षित होते हैं।
कार्पोरेशन के उच्च चिकित्सीय संस्थानों को न केवल बनाये रखने बल्कि उन्हें और उन्नत करने के लिये श्रम मंत्री महोदय को विशेष ध्यान देने की आवशयकता है।