फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) बसेलवा कॉलोनी गली नंबर दस निवासी साहिल के घर रविवार सुबह दो बदमाश घुस गए, कोई बाहर से अंदर न आ पाए इसलिए बदमाशों का एक साथी दरवाजे पर पहरा देने रुक गया।
अंदर इन बदमाशों ने साहिल से हाथापाई शुरू की, बीचबचाव करने आई साहिल की मां को इतने थप्पड़ मारे कि वह बेहोश हो गईं। गोद में दो माह की बच्ची लिए उसकी पत्नी से भी अभद्रता की और मोबाइल छीन लिया। परिवार वालों ने शोर मचाया तो मोहल्ले वाले इक_ा हो गए। घिरा हुआ देख हमलावरों ने बताया कि वे पुलिस वाले हैं। लोगों ने सवाल किया कि यदि पुलिसकर्मी हैं तो वर्दी मेें आते और घर में घुसने का सर्च वारंट भी लाते। कोई जवाब नहीं सूझा तो तीनों पुलिसिया धमकियां देते हुए वहां से खिसक लिए।
साहिल के अनुसार सादे कपड़ों में आए इन तीन पुलिसकर्मियों में एक उम्मेद और दूसरा महावीर था, तीसरे का नाम नहीं पता है। लोगों का कहना है कि कोई यदि किसी के घर में बिना इजाजत घुस कर मारपीट करे जान से मारने की धमकी दे और छीनझपट करे तो पुलिस उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 452, 323, 506 और 379ए जैसी धाराओं में केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार करने में जुट जाती है। कानून की पालना कराने वाले इन पुलिसकर्मियों ने न केवल इन धाराओं के तहत अपराध किया सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लंघन किया। बनाम राज्य केस में सु्प्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा है तो गिरफ्तार करने वाले सभी पुलिसकर्मी पूरी वर्दी में होंगे उनकी वर्दी पर स्पष्ट नाम दर्शाने वाली पट्टी होनी चाहिए। पकड़े गए व्यक्ति से मारपीट मानवाधिकारों का उल्लंघन है। बिना वर्दी साहिल के घर में घुसे उम्मेद और महावीर ने तो वर्दी ही नहीं पहनी थी। उनके पास कोई वारंट या सम्मन भी नहीं था ऐसे में कैसे माना जा सकता है कि वे ड्यूटी पर थे।
दरअसल ये पुलिस वाले साहिल को 3 जून को सेक्टर 16 में हुई मारपीट के मामले में पकडऩे आए थे जिसमें शिकायतकर्ता ने उसका नाम तक नहीं दिया था। साहिल का दावा है कि पीडि़त पुष्कर ने खुद पुलिस और अदालत में शपथपत्र दिया है कि मारपीट में वह शामिल नहीं था। आरोप है कि पुलिस वाले उस नाम को हटाने के लिए जो है ही नहीं उससे रुपये ऐंठने के लिए दबाव बना रहे थे। बताते चलें कि अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि सात साल से कम सजा वाले मामलों में आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा बल्कि नोटिस देकर बुलाया जाएगा। ऐसे में पुलिस वालों का बिना वर्दी साहिल के घर में घुसना भी नाजायज था। साहिल का दावा है कि इस केस में वह था ही नहीं पुलिस वाले उसे जबरन फंसा रहे हैं। यदि साहिल की बात सच है तो पुलिस कर्मी आईपीसी की धारा 116 ए (बी) के तहत भी दोषी हैं। यह धारा के अनुसार कोई पुलिसकर्मी गलत व दूषित अनुसंधान कर किसी निर्दोष को गलत मामले में नहीं फंसा सकता। यदि वह ऐसा करने का दोषी पाया गया तो छह माह के कठोर कारावास से लेकर अधिकतम दो वर्ष कैद की सजा हो सकती है।
प्रदेश से संगठित अपराध समाप्त करने का दावा कर रहे डीजीपी शत्रुजीत कपूर जी अपने संगठन में इस तरह के अपराधियों पर भी अंकुश लगाओ। बदमाशों की तरह घर में घुस कर महिलाओं को पीटने वाले यह पुलिसकर्मी भी कानून के अधीन हैं, तो उन पर भी संगत धाराओं में केस दर्ज कराओ साथ ही विभागीय जांच करा इन्हें सजा दिलवाओ तब ही महकमे के भ्रष्ट कर्मचारियों में सुधार आने की कोई संभावना हो सकती है, वरना जैसे चलता आ रहा है वैसे ही चलता रहेगा।