खुद को आरटीआई एक्ट से ऊपर मानते हैं निगम के भ्रष्ट अधिकारी जानकारी मांगने वाले को कर दिया ब्लैक लिस्ट, आरटीआई एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं

खुद को आरटीआई एक्ट से ऊपर मानते हैं निगम के भ्रष्ट अधिकारी जानकारी मांगने वाले को कर दिया ब्लैक लिस्ट, आरटीआई एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं
August 15 14:50 2023

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) अवैध विज्ञापन माफिया से गठजोड़ कर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये हजम कर रहे निगम के भ्रष्ट अधिकारी खुद को जन सूचना अधिकार कानून से भी ऊपर समझते हैं। विज्ञापन के नाम पर हो रहे घोटाले की सच्चाई जानने के लिए जानकारी मांगी गई तो इन अधिकारियों ने आरटीआई मांगने वाले दीपक गोदारा को ही ब्लैक लिस्ट करने का लिखित फरमान जारी कर दिया, जबकि आरटीआई एक्ट में ब्लैक लिस्ट या प्रतिबंधित करने का कोई प्रावधान है ही नहीं। भ्रष्ट अधिकारियों ने उन्हें सीएम विंडो पर भी ब्लैक लिस्ट कर दिया।

गढ़ी मोहल्ला निवासी दीपक गोदारा नगर निगम के विज्ञापन विभाग में संविदा पर कार्यरत थे। पद पर रहते उन्होंने विज्ञापन विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई तो दो साल पहले अचानक उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। दीपक के अनुसार अवैध विज्ञापन माफिया से गठजोड़ कर अधिकारी निगम को प्रतिवर्ष करोड़ों के राजस्व का नुकसान पहुंचा रहे हैं, यह धन विज्ञापन माफिया और अधिकारी मिल-बांट कर हजम कर रहे हैं।

इस घोटाले को उजागर करने के लिए उन्होंने सितंबर 2021 में आरटीआई लगाकर विज्ञापन के लिए टेंडर प्रक्रिया, होने वाली आय, ठेकेदार आदि की जानकारी मांगी थी। उन्होंने सीएम विंडो पर तत्कालीन ईएक्सईएन पदमभूषण की डिग्री फर्जी होने की शिकायत कर जांच कराने की भी मांग की थी। इन दोनों ही मामलों में उन्हें जवाब नहीं दिया गया। मामला राज्य सूचना आयोग पहुंचा तो निगम अधिकारियों ने जवाब दिया कि दीपक गोदारा ने बहुत ही विस्तृत जानकारी मांगी है जो फिलहाल तैयार नहीं है, लेकिन वह किसी भी दिन कार्यालय आकर दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं। वहां अधिकारियों ने सूचना उपलब्ध कराने का भी संकल्प जताया। दीपक जब भी कार्यालय जाते बहाने बना कर उन्हें सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती।

दीपक ने जब ज्यादा दबाव बनाया और निगमायुक्त से शिकायत की तो पदमभूषण ने अधीक्षक अभियंता ओमबीर को पत्र लिखा। पत्र के अनुसार दीपक गोदारा बार बार इसलिए आरटीआई लगा रहा है क्योंकि उसे निगम से निकाल दिया गया था। इसके लिए वह उन्हें यानी पदमभूषण को दोषी मानता है और बदले की भावना से आरटीआई व सीएम विंडो पर शिकायत कर रहा है। ऐसे में दीपक गोदारा को आरटीआई और सीएम विंडो पर ब्लैकलिस्ट कर दिया जाए।

बताते चलें कि एसई ओमबीर ने भी उसी दुकान से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है जिससे पदमभूषण ने। यानी यदि जांच में पदमभूषण की डिग्री फर्जी घोषित हुई तो ओमबीर भी फंसेंगे। ऐसे में एसई ओमबीर ने भी तुरंत ही दीपक को आरटीआई और सीएम विंडो से ब्लैक लिस्ट करने की संस्तुति निगमायुक्त जीतेंद्र दहिया से कर दी। लूट में हिस्सेदार ‘क़ाबिल और शासन के वफादार’ व संस्तुति करने के लिए तैयार बैठे निगमायुक्त ने फरवरी 2023 में दीपक को ब्लैक लिस्ट करने का आदेश जारी कर दिया। हालाकि दीपक को इसकी जानकारी पत्र के जरिए तीन अगस्त 2023 को दी गई।

सारे अधिकारी जानते हैं कि सीएम विंडो केवल सरकार का झुनझुना है ऐसे में सरकार विरोधी शिकायत करने वाले किसी भी व्यक्ति को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है, कारण यह बताना होता है कि शिकायतकर्ता की मंशा और नीयत अच्छी नहीं है। इसके विपरीत आरटीआई एक्ट में जानकारी मांगने वाले को ब्लैकलिस्ट करने का कोई प्रावधान नहीं है। सूचना यदि राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा से जुड़ी है तो देने से इनकार किया जा सकता है, अन्यथा सार्वजनिक हित के किसी भी मामले की सूचना देनी ही होगी।

करोड़ों रुपये घोटाले के लिए बदनाम नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारी या तो खुद को आरटीआई एक्ट से ऊपर मानते हैं या उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। दीपक गोदारा इस आदेश के खिलाफ राज्य सूचना आयोग और न्यायालय का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं।

एडीसी तो जवाब मांगकर हारीं
निगम के भ्रष्ट अधिकारी लूट में हिस्सेदार सत्ताधारियों के संरक्षण में इतने बेखौफ हैं कि अतिरिक्त जिला उपायुक्त को जवाब देना अपनी तौहीन समझते हैं। एडीसी की टिप्पणी के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं होती। दीपक गोदारा की विज्ञापन घोटाले की सीएम विंडो पर की गई एक अन्य शिकायत की रिपोर्ट जिला उपायुक्त से मांगी गई थी। डीसी ने यह जांच एडीसी अपराजिता को सौंपी। अपराजिता ने 9 मई 2022 में नगर निगम के अधिकारियों को तलब कर जवाब मांगा लेकिन किसी ने हाजिर तो क्या होना था, जवाब देने तक की जरूरत नहीं समझी। जाहिर है उन्हें लूट कमाई में हिस्सेदार अपने बड़े-बड़े आक़ाओं पर पूरा भरोसा है। एडीसी ने 16 जून, 23 जून और फिर 13 जुलाई 2022 को नोटिस भेजे लेकिन न तो निगम से कोई अधिकारी उनके समक्ष उपस्थित हुआ और न ही उन्हें कोई सूचना भिजवाई गई। नाराज एडीसी ने सीएम विंडो पर अधिकारियों द्वारा जवाब नहीं दिए जाने और उनके खिलाफ कार्रवाई किए जाने की संस्तुति करते हुए रिपोर्ट भेज दी। एक साल से अधिक बीत चुका है लेकिन उनकी रिपोर्ट भी सीएम विंडो की शिकायतों की तरह ठंडे बस्ते में चली गई। लगता है जहां रिपोर्ट भेजी गई है वो ख़ुद भी उसी हमाम में नंगे हैं।

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