मुग़लों की दुश्मनी कभी राजपूतों से नहीं थी

मुग़लों की दुश्मनी कभी राजपूतों से नहीं थी
June 15 15:58 2022

मुग़ल बादशाहों से तो तमाम राजपूत राजों ने अपनी बेटियाँ ब्याहीं और मुग़लों को दामाद बनाया। राजपूत राजे मुग़लों के ससुर और साले बने,राजपूताने में तो मुग़लों का ननिहाल था। मुग़लों ने राजपूतों को अपनी हुक़ूमत में बड़े पद दिए।यूपी के मैदानों में आबाद तमाम राजपूत घराने मुग़ल काल में ही राजस्थान से यहाँ आकर तब बसे जब मुग़ल बादशाहों ने उन्हें जागीरें सौंपीं। ये राजपूत जागीरगार मुग़ल सल्तनत की मज़बूत कड़ी थे।

मुग़लों ने राजपूतों से हिंदोस्तान की सत्ता छीनी ही नहीं तो राजपूत मुग़लों के दुश्मन क्यों होते। हिंदोस्तान की सत्ता राजपूतों की थी ही नहीं जब मुग़ल आए। राजपूत तो वर्तमान के राजस्थान के छोटे छोटे रजवाड़ों में बसे थे जो एक दूसरे से लड़ते रहते,अपने छोटे राज्य को ही अपना देश समझते।

मुग़लों की दुश्मनी तो पठानों से थी। पठानों से मुग़लों ने सत्ता छीनी। लोदी सुल्तान पठान ही तो था,उसके पहले तमाम पठान सुल्तान रहे। खिलजी भी पठान थे,ग़ोरी भी पठान थे। हिंदोस्तान तब ऐसा नहीं था जैसा आज का क्षेत्रफल है।वर्तमान अफग़़ानिस्तान का हिस्सा तो हिंदोस्तान का प्रवेश द्वार था, हिंदोस्तान में था,श्वेत भारत कहा जाता। अशोक के काल में भी वो हिस्सा हिंदोस्तान का हिस्सा था,उसे तो अंग्रेज़ों ने हिंदोस्तान से अलग किया है। इतिहास से हटकर महाकाव्यों की बात करें,महाभारत काल की बात भी इसमें शामिल है,तो अफग़़ानिस्तान का गंधार हिंदोस्तान का बहुत मशहूर हिस्सा था।बुद्ध के दौर में भी ये हिस्सा हिंदोस्तान था,आर्य जब आए तो पहले हिंदोस्तान के उसी हिस्से में आए।

ऐसे में जैसे राजस्थान हिंद का हिस्सा था वैसे ही अफग़़ानिस्तान हिंद का हिस्सा था।ये ग़ोरी खिलजी वग़ैरह कोई विदेशी नहीं थे। जैसे पटना और सारनाथ और कन्नौज हिंद में थे वैसे ही काबुल कंधार ग़ोर ख़ल्ज समेत वो तमाम इलाक़े भी हिंद में थे जहाँ के ग़ोरी और खिलजी थे,लोदी थे। दिल्ली हिंदोस्तान की सल्तनत का मुख्य शहर था,वहाँ राजपूत भी क़ाबिज़ होना चाहते और पठान भी क़ाबिज़ होना चाहते,राजपूत और पठान दोनों एक देश के थे,राजधानी पर क़ब्ज़ा चाहते थे।राजपूतों को हराकर पठानों ने क़ब्ज़ा कर लिया।अब भले देश अलग हो,तब कहाँ देश अलग था कि ग़ोरी विदेशी हमलावर हो गया।ये सब देशी थे।हिंदोस्तान के बाहर के तो मुग़ल थे,बाबर बाहरी था लेकिन अकबर और अकबर के बाद सब मुग़ल हिंदोस्तानी ही थे,यहीं पैदा हुए,यहीं मरे,बाबर भी लुटेरा नहीं था,यहीं बस गया,यहीं मरा,कुछ लूटकर कहीं नहीं ले गया।फऱगऩा से बाबर आया,फऱगऩा हिंदोस्तान का हिस्सा नहीं था। तब राजपूतों ने चाहा कि विदेशी हमलावर बाबर की मदद से अपने देश के पठानों से दिल्ली की हुक़ूमत ले लेंगे और राज करेंगे। जबकि हो गया उल्टा,राजपूतों ने बाबर की मदद की और बाबर फिर यहाँ से गया ही नहीं।वही हुक़ूमत करने लगा।बाबर के मरने के बाद शेरशाह सूरी के सूरी क़बीले के पठानों ने फिर देश पर क़ब्ज़ा हासिल किया। शेरशाह सूरी मरा तो मुग़लों की मदद राजपूतों ने की और फिर पठान सल्तनत की समाप्ति हुई। मुग़ल फिर आ गए।बादशाह अकबर पठानों से ही होशियार रहता और पठानों का दमन उसने किया।वो पठानों का दुश्मन था और राजपूतों का दामाद था। राणा प्रताप की सेना की तरफ़ से सूरी क़बीले का पठान ही सेनानायक के तौर पर मुग़लों से लड़ रहा था।

इसलिए सबको ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ़ यूपी बिहार ही हिंदोस्तान नहीं था जहाँ आर्य क़बीले मूल निवासियों को हराकर बसे। बल्कि वर्तमान अफग़़ानिस्तान भी हिंदोस्तान था और जितने भी क़बीलों ने मुग़लों से पहले सल्तनत काल में दिल्ली पर क़ब्ज़ा किया सब हिंदोस्तानी थे। विदेशी आक्रमणकारी खिलजी और ग़ोरी नहीं थे। जब उनका इलाक़ा हिंदोस्तान का हिस्सा था तो वो विदेशी कैसे हो गए।वो तो हिंदोस्तानी ही थे जिनसे राजपूत राजे दिल्ली नहीं ले पाए।इसलिए विदेशी हमलावर बाबर की मदद से अपने ही देशभाईयों से दिल्ली छीनना चाहते थे जिसमें असफल हुए। इतिहास गोबर का छोत नहीं है कि उपला बनाकर जला दिया जाए। इतिहास बीता कल है जो बीत गया और समकालीनों द्वारा लिख दिया गया है,जो इतिहास में लिख गया हो उस इतिहास में संशोधन नहीं हो सकता।ये नहीं कि जबरन इतिहास में हेरफेर कर या नचनियों भंड़ैतों के काल्पनिक नाटक से किसी को बहादुर साबित कर लिया जाएगा,ऐसी अंधी नहीं लगी है। कौन कितना बहादुर था और किसके गट्टे में कितना दम था सब इतिहास में है जो बदला नहीं जा सकता,क्योंकि हिंद का इतिहास पूरी दुनिया में है।इसलिए वर्तमान और आने वाला कल संवारने की सबको चिंता करनी चाहिए।इतिहास में किसका कितना वजऩ था ये इतिहास बताता है।

किसी फिल्म के द्वारा इतिहास में छेड़छाड़ कर इतिहास में जबरन वीर बनना संभव नहीं है। फिल्म काल्पनिक है, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है,ऐसा फ़िल्म में लिखा जाता है,पर्दे पर आता है,लेकिन कम ही लोग उसके ऊपर ध्यान देते हैं,अनपढ़ भी फिल्म देखते हैं,कम अक्ल के लोग भी फिल्म देखते हैं,वो फ़िल्म को सच समझ लेते हैं,उसे ही इतिहास मान बैठते हैं,कुछ लोग ऐसी फिल्मों से राजनीतिक हित साधने लगते हैं। सम्राट पृथ्वीराज जैसी फ़िल्में इतिहास से हटकर कोरी गप्प परोस रही हैं,झूठा इतिहास दिखा रही हैं। काल्पनिक के नाम पर ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करने की छूट नहीं होनी चाहिए। अभी देश में अनपढ़ बहुत हैं,समाज इतनी प्रगति नहीं कर गया कि काल्पनिक और ऐतिहासिक के भेद को समझ सके,लेकिन ऐसी फ़िल्में जो मर्म परोसने का प्रयास करती हैं उसे समझ जाता है।
– डॉ. शारिक़ अहमद ख़ान

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Mazdoor Morcha
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