खनन माफिया की लालच और प्रशासनिक अधिकारियों की लूट कमाई के कारण सूख गई बडख़ल झील को पर्यावरणविदों ने मुफ्त में भरने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इससे तो सरकार और उसके मंत्री-विधायक लूट खसोट नहीं कर पाते इसलिए यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया।
पर्यावरणविदों के अनुसार इसे बरसाती पानी से भरने के लिए होने वाले खर्च की भरपाई झील की मिट्टी को बेचने से होती, इसके चलते गहराई बढऩे के कारण अधिक मात्रा में जल संचय होता और इससे भूजल स्तर में भी सुधार होता। लेकिन इससे अफसरों, ठेकेदारों और नेताओं को कोई फायदा नहीं होता। सरकार को तो झील भरने के नाम पर लूट कमाई करनी थी और वाहवाही करानी थी। इसे भरने के लिए कभी 57 करोड़ तो कभी 100 करोड़ तो कभी इससे ज्यादा का खर्च बताया जाता रहा। आईटीआई रुडक़ी से आई टीम ने झील में पानी रोकने के लिए कृत्रिम तल बनाने की सलाह दी। इसके बाद झील को प्राकृतिक जल से नहीं बल्कि सीवरेज के तथाकथित शोधित पानी से भरने की योजना बनाई गई।
इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च कर सेक्टर 21 में एसटीपी लगाया गया। करीब पांच साल के बाद सितंबर 2023 में इसे चालू कर झील में पानी पहुंचाना शुरू किया जा सका। इस ‘शोधित’ जल में जलीय जीव जंतु पनप पाएंगे इस पर भी संशय है। यदि पानी रोकने के लिए झील का तल कृत्रिम बनाया गया है तो सीपेज नहीं होने के कारण इससे भूजल स्तर में कोई सुधार नहीं होगा। इसके विपरीत यदि सीपेज रोकने की व्यवस्था नहीं की गई है तो तथाकथित शोधित जल भूजल को दूषित करेगा। पर्यावरणविदों का मानना है कि इतने बड़ी झील को प्राकृतिक यानी बरसाती पानी से ही भरा जाना पर्यावरणीय और आर्थिक रूप से सही है।
संदर्भवश सुधी पाठक यह भी जान लें कि डीसी विक्रम सिंह ने यहां तैनाती के शुरुआती दिनों में बडख़ल झील के कैचमेंट एरिया का दौरा करने के पश्चात कुछ इंजीनियरों से बातचीत करने के बाद ये ऐलान कर दिया था कि झील को बरसाती पानी से ही भरा जाएगा। उन्हें शायद इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि झील को सीवरेज के शोधित पानी से भरने के पीछे राजनेताओं की असल मंशा झील भरने की न होकर लूट कमाई करने की रही है। ज़ाहिर है ऐसे में डीसी साहब ने चुप रहना ही बेतहर समझा होगा। खैर, खट्टर ने तो उद्घाटन कर दिया, अब चुनाव में इसका ढिंढोरा पीटा जाएगा, इसके बाद यह सूख भी जाए तो अगले चुनाव में ही इसकी सुध ली जाएगी।