फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सडक़, पानी-बिजली जैसी आधारभूत जरूरतों की कमी से जनता जूझती रहे एफएमडीए या नगर निगम के मोटे पेट वाले अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये तो तब ही काम कराते हैं जब उनकी जेब में विकास कार्य का हिस्सा पहुंचने का जुगाड़ हो जाता है। नीलम-अजरौंदा पुल की मरम्मत भी कई महीनों तक टलती रही क्योंकि बजट काफी कम था। अब सौ मीटर पुल की मरम्मत का दो करोड़ रुपये का बजट बना तो ही काम शुरू कराया गया। यही कुछ बाटा रेलवे ओवर ब्रिज की मरम्मत में भी देखने को मिल सकता है।
बाटा आरओबी पर हार्डवेयर से हाइवे और हाइवे से हार्डवेयर की ओर के ट्रैक पर छोटे मोटे गड्ढे हैं, पिलर के छोर पर बियरिंगों के जोड़ों पर भी गड्ढे हो गए हैं। यदि इन गड्ढों की अभी मरम्मत और पैचिंग करा दी जाए तो पांच से आठ लाख रुपये खर्च होंगे और ट्रैफिक बिना रोके एक से दो रात में दोनों ओर के ट्रैक दुरुस्त हो जाएंगे। लेकिन इस तरह मरम्मत कराने से तो न तो मोटा कमीशन बनेगा और जनता को भी तकलीफ नहीं होगी।
यही वजह है कि एफएमडीए के निकम्मे और कमीशनखोरी में माहिर अधिकारी इस पुल की मरम्मत नहीं करा रहे है। जब तक इस पुल की हालत बडख़ल और नीलम-अजरौंदा पुलों जैसी नहीं हो जाएगी तब तक इसे टूटते फूटते रहने दिया जाएगा। भले ही पिलर के जोड़ पर टूट रही सडक़ में फंस कर वाहन खराब होते रहें और पुल पर वाहन खराब होने के कारण जाम लगता रहे, एफएमडीए के अधिकारी कोई काम नहीं कराएंगे। ऐसा नहीं है कि बाटा पुल की सडक़ पर गड्ढे होने की जानकारी इन अधिकारियों को नहीं है, पीडि़त वाहन चालक और जागरूक नागरिक आए दिन पुल मरम्मत कराने की मांग प्रशासन से करते रहते हैं। मीडिया में भी बाटा पुल के गड्ढों के कारण लोगों को होने वाली परेशानी पर खबर आती रहती है लेकिन मजाल है कि अधिकारी इसका संज्ञान लेकर कुछ काम कराएं।
जब तक मरम्मत का बजट कई करोड़ न पहुंच जाए और टेंडर प्रक्रिया के नाम पर सत्ता में बैठे साहब के चहेते को काम सौंपने की जमीन नहीं बने मरम्मत नहीं कराई जाती। एफएमडीए में भर्ती किए गए सेवानिवृत्त और नकारा अधिकारी भी अपनी नौकरी बचाने के लिए अपने सत्ताधारी आकाओं को ही खुश कर कमीशन की मलाई खा रहे हैं। यही कारण है कि बाटा आरओबी की मरम्मत नहीं कराई जा रही। जब इसके गड्ढे इतने बड़े हो जाएंगे कि वाहनों का चलना दूभर हो जाए और खराब सडक़ के कारण लंबा जाम लगने लगे, जाम के कारण आम जनता और वाहन चालक परेशान होने लगें तब इसकी मरम्मत के बारे में सोचा जाएगा।
एक कमेटी जांच करके मरम्मत पर करोड़ों रुपये और दो से तीन महीने पुल बंद रहने की रिपोर्ट तैयार करेगी। ठेकेदार, कमीशन आदि तय होने के बाद काम शुरू कराया जाएगा। क्योंकि ठेकेदार साहब का खास होता है और अपनी सुविधा के अनुसार काम करता है, तो मरम्मत के लिए तय समय सीमा से दोगुना ढाईगुना या तीन गुना समय लेकर भी उसे पूरा न कराए। बडख़ल पुल की मरम्मत का उदाहरण सामने है। ठेकेदार ने पुल की कारपेटिंग तो कर दी लेकिन फुटपाथ और रेलिंग का काम अधूरा छोड़ दिया। एफएमडीए के ‘होनहार’ अधिकारियों ने दो तीन महीने बाद तक फुटपाथ और रेलिंग की मरम्मत करवाई।
इस बीच आम जनता धक्के खाएगी, पुल बंद होने के कारण हार्डवेयर चौक आने-जाने के लिए नीलम अजरौंदा का चक्कर काटेगी, सोहना पुल का रास्ता चुनना तो और घाटे का सौदा होगा क्योंकि इस पुल की हालत तो सबसे ज्यादा खराब है और यहां दिन भर जाम की स्थिति ही रहती है।
जनता परेशान हो, उसका ईंधन और समय बर्बाद हो एफएमडीए के निकम्मे अधिकारियों को इससे कोई सरोकार नहीं, वो तो तभी काम करवाएंगे जब उनको कमाई करवाने वाले आका चाहेंगे।