मोदी जी द्वारका में/ विजय सिंह ठकुराय

मोदी जी द्वारका में/ विजय सिंह ठकुराय
March 04 06:56 2024

हमारे मुख्य-सेवक जी समुद्र में डूबी द्वारका जी के दर्शन करने गये। बाहर निकले तो बड़े प्रसन्न थे। बताये कि जब समुद्र में थे तो उनके कान में कृष्ण जी की मुरली गूँज रही थी, बहुत दिव्य अनुभव था, वगैरह-वगैरह।

.अब आपने अगर वो विडियो देखा हो तो क्या अपने मन में सोचा कि जब द्वारका जी की इतनी भव्य तस्वीरें इन्टरनेट पर घूमती रहती हैं, जिन तस्वीरों में – द्वार पर रखी शेर की मूर्ति, भव्य सीढियां एवं भवन अवशेष, बड़े-बड़े खम्बे दिखाए जाते हैं तो हमारे मुखिया जी प्राचीनकाल में जहाजों द्वारा समुद्र के किनारे लंगर डालने के लिए प्रयोग किये जाने वाले “एंकर” पर बैठ कर पूजा कर के क्यों आ गये? द्वारका की कोई खिडक़ी, दरवाजे, चबूतरे या खम्बे आदि का फोटो तो डाले ही नहीं? अब आप आगे तभी पढ़ें, जब यह जानना चाहें कि मिथ्या प्रचार से कैसे एक पूरी पीढ़ी को मूर्ख बनाया जाता है। और अगर सत्य की खोज से आपकी भावना आहत हो जाती हो, तो क्षमा चाहूँगा, यह आपके लिए नहीं है।

तो हुआ यूँ कि पिछली शताब्दी में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा सिन्धु घाटी सभ्यता के विभिन्न केन्द्रों की सफल खोज के बाद ब्रिटिश पुरातात्विक लोग बुद्धिस्ट ग्रंथों में वर्णित “द्वारवती” को ढूंढ रहे थे, जो प्राचीन समय का एक प्रमुख बंदरगाह बताया जाता था। यही द्वारवती आगे चल कर द्वारका के नाम से बुलाया जाने लगा। एक ब्रिटिश स्कॉलर “फेड्रिक पर्गीटर” ने 1930’ह्य के दशक में द्वारवती के गुजरात में होने की संभावना जताई। 1963 में समुद्र में डूबे इस ढाँचे का पता चला और अगले कुछ दशकों में इस ढांचे को समझने के लिए कई समुद्री खोज अभियान चलाये गये।

मैंने इस सम्बन्ध में निष्पक्ष पड़ताल के लिए भारतीय सामुद्रिक संस्थान के तीन परंपरावादी दृष्टिकोण रखने वाले वैज्ञानिकों As Gaur Sundresh Sila Tripathi) के ही शोधपत्र को पढने का फैसला किया। उससे मुझे यह पता चला कि इस साईट पर औसतन 3 से 10 मीटर की गहराई पर लंगर के लिए प्रयोग होने वाले सैकड़ों एंकर मिले हैं। गोल, त्रिभुजाकार अथवा आयताकार शेप्स में मौजूद पत्थर के बने इन लंगरों का औसत आकार एक से डेढ़ मीटर और औसत वजन 100-150 किलो है। सबसे बड़े एंकर का वजन 500 किलो है, जो किसी बड़ी नौका के लिए इस्तेमाल होता होगा। साइट्स से अन्य खम्बों के अवशेष भी मिले हैं, जो नावों की रस्सी बाँधने के लिए इस्तेमाल किये जाते थे। पत्थरों की बनावट आदि का ऐतिहासिक अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने उनकी आयु 500 से 1000 साल तय की है। और तो और, कुछ पत्थरों पर गुजराती लिपि में कुछ विवरण दर्ज हैं, वही गुजराती, जो 12वीं शताब्दी में अस्तित्व में आई है। अब ये तो कोई मंदबुद्धि ही होगा, जो कहे कि कृष्ण जी 5000 साल पहले गुजराती बोलते थे।

बस ऐसे ही विवरण हैं, जिनके आधार पर वैज्ञानिकों ने इस ढांचे को एक मध्यकालीन बंदरगाह माना है। तो इस पूरे विवरण में श्रीकृष्ण-महाभारत-द्वारका कहाँ हैं? उत्तर है – कहीं भी नहीं!! ऐसी खोजों में चलन यह होता है कि पहले किसी स्थान का पौराणिक इतिहास अथवा किवदंतियों में प्रचलित विवरण बताया जाता है, फिर उसका ऐतिहासिक विवरण, फिर वैज्ञानिक पक्ष की बात की जाती है। यूनेस्को की साईट से लेकर ऐसे सभी शोधपत्रों में इसी परिपाटी का पालन किया जाता है। भगत लोग पूरा रिसर्च पढ़ते नहीं, बस शुरू में दिए गये “ऐसा माना जाता है” विवरण को पढकर हर्षोउल्लासित हो जाते हैं, और फर्जी खबर तैयार करने में जुट जाते हैं।

………….. द्वारका के नाम पर घूम रही जिन भव्य तस्वीरों को आप देखते हैं, वे भी वास्तव में अमेरिका के फ्लोरिडा में मौजूद अंडरवाटर “नेपच्यून मेमोरियल रीफ” की हैं, जो किसी फुरसतिये ने वायरल कर दी, और सभी उसी को साझा कर “द्वारका मिल गयी” का शिगूफा फैलाने में लगे हैं। मैं सोचता हूँ कि भारत में इतने पढे-लिखे लोग हैं, किसी ने मुख्य-सेवक जी को बताया नहीं होगा कि जहाँ आप जा रहे हैं, वहां ऐसा कुछ मिला ही नहीं है। खैर, बताया भी हो तो क्या… जब एक पूरी पीढ़ी सामूहिक भ्रम की पुडिया चाट कर छद्मगौरव से आनंदित है, तो देश के सर्वेसर्वाओं को सयानापन दिखाने की आवश्यकता ही क्या शेष रह जाती है। बहरहाल…
उपसंहार-
1. समुद्र में जो ढांचा मिला है, वो द्वारका वास्तव में एक मध्ययुगीन बंदरगाह है। महाभारत वाली द्वारका की खोज अभी बाकी है।
2. इस उम्र में समुद्र में 4-5 मीटर उतर कर स्कूबा डाइविंग करना कोई मजाक है क्या? हमारे मुख्य-सेवक जी सच्चे अर्थों में महामानव हैं। उनको शतशत नमन!

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles