मज़दूर मोर्चा ब्यूरो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी पर देश के संसाधन गुजरातियों पर लुटाने का आरोप विपक्षी पार्टियां लगाती रहती हैं। अडाणी, अंबानी, नीरव मोदी के नाम तो सबने सुने हैं लेकिन एशियन गेम्स में एक नई हेराफेरी सामने आई है। एशियन गेम्स में गुजराती खिलाडिय़ों ने एक भी पद नहीं जीता, बावजूद उन पर सरकार ने 608 करोड़ रुपये लुटा दिए। इसके विपरीत हरियाणा के खिलाडिय़ों ने देश को सर्वाधिक 44 मेडल दिए, यहां खेल के नाम पर सरकार ने महज 89 करोड़ रुपये ही खर्च किए। जो गुजरात को खेल के लिए जारी की गई धनराशि के मुकाबले करीब सात गुना कम है।
जब महज 89 करोड़ खेल बजट वाला हरियाणा 44 मेडल जीत सकता है तो सवाल उठता है कि देश में खेल पर सर्वाधिक 608 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी गुजराती खिलाड़ी एक मेडल क्यों नहीं जीत सके। यह सब हमारे ‘यशस्वी’ प्रधानमंत्री मोदी के होने से ही मुमकिन हो सका है। गुजरात की अपेक्षा सभी राज्यों को खेल बजट में काफी कम धन मिला लेकिन लगभग सभी राज्यों के खिलाडिय़ों ने अच्छा प्रदर्शन किया यहां तक कि मिजोरम जैसे अनुसूचित राज्य के खिलाड़ी भी भारत को मेडल दिलाने में कामयाब रहे लेकिन मोदी-शाह के गृहराज्य के खिलाड़ी पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद एक कांस्य पदक तक हासिल नहीं कर सके। पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के खिलाड़ी भी एशियन गेम्स में 31 पदक ला सके। जनसंख्या के हिसाब देश के बड़े राज्यों में शुमार उत्तर प्रदेश भी मेडल जीतने में पंजाब जैसे छोटे राज्य का मुकाबला नहीं कर सके। पंजाब के खिलाडिय़ों ने 32 स्वर्ण या रजत या कांस्य पदक अपने नाम किए लेकिन यूपी के खिलाड़ी केवल 21 मेडल ही ला सके। राजस्थान के खिलाडिय़ों ने भी 13 मेडल जीते, बंगाल ने भी 13 मेडल हासिल किए जबकि दक्षिण के राज्य तामिलनाडु ने भी 17 मेडल जीतने का रिकॉर्ड बनाया लेकिन लगता है कि गुजराती खिलाड़ी एशियरन गेम्स में भाग लेने नहीं बल्कि मौज मस्ती करने के लिए भेजे गए थे तभी तो उन्होंने कोई पदक हासिल नहीं किया। एशियन गेम्स में गुजरात का खराब प्रदर्शन देख कर सरकार, खेल मंत्रालय पर सवाल उठ रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि 608 करोड़ रुपये कोई मजाक नहीं है, विश्वसनीयता और जवाबदेही तय होनी चाहिए।
अंधभक्त कहेंगे कि हमें मेडलों संख्याओं को राज्यवार विभाजित करके नहीं देखना चाहिए बल्कि पूरे भारत की जीत के रूप मे देखा जाना चाहिए। उनकी बात सही हो सकती है लेकिन जब उचित कारण हों तो विभाजन कर खर्च और उसके एवज में मेडल जीतने की परफॉर्मेंस का आकलन किया ही जाना चाहिए। 608 करोड़ रुपये कोई छोटी रकम नहीं है। यह मजाक नहीं है कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर दी गई और परिणाम शून्य रहा जबकि खेल में कहीं छोटी धनराशि आवंटित होने के बावजूद अन्य राज्यों ने कई कई मेडल हासिल किए। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले का ढोल पीटने वाले देख भक्तों को मोदी-शाह से भी सवाल कर हिसाब मांगना चाहिए।