मज़दूर मोर्चा ब्यूरो हरियाणा सरकार के तहत चलने वाले चार मेडिकल कॉलेजों—रोहतक, खानपुर, करनाल व नूह, में दाखिला लेने वाले छात्रों को अब पूरे कोर्स के लिये 40 लाख फीस देनी होगी जो पहले मात्र 2.75 लाख होती थी। इसके चलते ‘नीट’ द्वारा बनाई गई मैरिट के 300 छात्र जो उक्त कॉलेजों में दाखिला लेने के हकदार हैं, दाखिला नहीं ले पा रहे हैं। उनके पास, खट्टर सरकार को देने के लिये इतने पैसे नहीं हैं। जाहिर है जब ये लोग दाखिला नहीं लेंगे तो उनसे कमतर नम्बरों वाले वे छात्र दाखिला ले लेंगे जिनके पास देने को इतनी मोटी रकम है। इस फीस के अलावा रहने-खाने व अन्य खर्चे अलग से होते हैं।हरियाणा के इन चारों कॉलेजों में कुल 610 सीटें हैं। इनमें से 310 सीटों पर उन छात्रों ने दाखिला ले लिया है जो इतनी रकम का जुगाड़ करने में सक्षम हैं। जाहिर है ऐसे में 300 सीटें खाली रह गई हैं।
अनुसूचित व पिछड़ी जातियों को दिये गये संवैधानिक आरक्षण के ऊपर धनाढ्य एवं अगड़े लोग मैरिट की दुहाई देकर अब तक हल्ला मचाते आए हैं। उनका तर्क होता है कि जाति एवं अन्य किसी आधार पर मैरिट से समझौता नहीं किया जाना चाहिये। ऐसा करने से जहां योग्य छात्रों का हक मारा जाता है वहीं आरक्षण के आधार पर नियुक्त होने वाले अधिकारी अपने नियुक्ति के साथ न्याय नहीं कर पाते। अब जो खट्टर सरकार ने मैरिट को ताक पर रख कर धनाढ्य लोगों के लिये आरक्षण पैदा कर दिया है उस पर मैरिट की दुहाई देने वाले खामोश हैं।
इस फीस बढोत्तरी के पीछे सरकार का तर्क यह है कि सरकारी खर्चे पर डॉक्टरी पढ़ाई करने के बाद ये लोग सरकारी नौकरी की अपेक्षा प्राइवेट नौकरी अथवा अपना खुद का धंधा करने लगते हैं। इसके जवाब में छात्रों का तर्क है कि सरकार उन डॉक्टरों से 40 लाख की वसूली करे जो सरकारी नौकरी करने से इन्कार करें। लेकिन जिस सरकार के पास डॉक्टरों के लिये नौकरियां नहीं, और न ही जनता को देने के लिए स्वास्थ्य सुविधायें व मेडिकल शिक्षा, उसे ऐसे तर्कों से क्या लेना? उन्हें तो प्राइवेट कॉलेजों की तर्ज पर लूट मचानी है तो, मचायेंगे ही।इन बदले हालात में जो कम योग्य छात्र 60 लाख तक की फीस देकर प्राइवेट कॉलेजों में जाते थे, अब वे 40 लाख देकर सरकारी कॉलेजों में आने लगेंगे। कहने की जरूरत नहीं कि प्राइवेट कॉलेजों की अपेक्षा सरकारी कॉलेज काफी हद तक बेहतर होते हैं।
संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि सन 2004 में तत्कालीन चौटाला सरकार ने अपने इन कॉलेजों के लिये 15 सीटें एनआरआई कोटे में डाल दी थीं। इस कोटे का मतलब 75000 डॉलर प्रति सीट होता है। आज एक डॉलर 75 रुपये से ऊपर का है। यानी ये सीटें भी धनाढ्य लोगों के लिये आरक्षित हो गई। इस तरह के आरक्षण से, आरक्षण विरोधियों को कतई कोई तकलीफ नहीं।खट्टर सरकार की यह नीति मेडिकल शिक्षा को भी पूरी तरह से व्यापार बना कर धन कमाने की है। अब देखने वाली बात यह है कि जो छात्र इतने मोटे खर्चे करके डॉक्टर बनेगा तो वह समाज को क्या दे पायेगा? जाहिर है कि उसका पूरा ध्यान शिक्षा पर खर्च की गई रकम वसूलने पर ही रहेगा। ऐसे में समाज को चिकित्सा सेवायें कैसी व किन दामों पर मिल पायेंगी, समझना मुश्किल नहीं है।