पलवल (मज़दूर मोर्चा)। विकास की झूठी-कागज़ी इमारतें बनाकर जनता को वरग़लाने वाली खट्टर सरकार एक और मेडिकल कॉलेज खोलने का भरोसा देकर क्षेत्र के लोगों को साधने का प्रयास कर रही है। पहले से स्थापित मेडिकल कॉलेजों को आवश्यक मानव संसाधन और आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने में नाकाम खट्टर सरकार घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने की तर्ज पर पेलक गांव में मेडिकल कॉलेज-ट्रामा सेंटर खोलने का ढोल पीट रही है। मेडिकल कॉलेज के नाम पर जेवर एयरपोर्ट मार्ग से लगते पलवल-अलीगढ़ मार्ग की बेशकीमती 46 एकड़ जमीन ग्रामीणों से छीनी जाएगी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पलवल में मेडिकल कॉलेज के लिए जमीन तलाशने वाली टीम में शामिल डीडीपीओ उपमा अरोड़ा ने बताया कि मेडिकल कॉलेज के लिए पेलक गांव में जमीन चिह्नित कर हेल्थ एजुकेशन डिपार्टमेंट चंडीगढ़ को रिपोर्ट भेजी गई है। मंजूरी मिलने के बाद यहां काम शुरू कराए जाने का झुनझुना बजाया गया है। खट्टर सरकार आज तक अपनी घोषणा का कोई मेडिकल कॉलेज पूरी तरह बनवा ही नहीं पाई है उनमें इलाज किया जाना तो दूर की बात है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि चुनावी वर्ष है ऐसे में जनता को वरग़लाने के लिए मेडिकल कॉलेज खोलने की कवायद का पाखंड किया जा रहा है। अभी केवल जमीन का चिह्नांकन ही हुआ है न तो मंजूरी मिली है और न ही जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई है, बावजूद इसके हो सकता है कि खट्टर यहां मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा कर दें और चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले शिलान्यास कर डालें।
पेलक गांव में मेडिकल कॉलेज धरातल पर उतरेगा या नहीं इसका अंदाजा खट्टर द्वारा पिछले वर्षों में बनाए गए मेडिकल कॉलेजों से लगाया जा सकता है। उनके शिलान्यास किए जींद, भिवानी, सिरसा, नारनौल और रेवाड़ी के मेडिकल कॉलेज भवन आज तक बन कर तैयार ही नहीं हो सके हैं। कहीं भी उनकी रखी गई नींव की ईंट पर छोटी सी इमारत भी नहीं बन सकी है। इन जगहों पर ग्राम पंचायतों की जमीन घेर कर छोड़ दी गई है।
उन्हें छोडि़ए जो बने हुए हैं वह भी खट्टर सरकार से नहीं चलाए जा पा रहे हैं। नूंह, गोहाना, रोहतक, करनाल के मेडिकल कॉलेजों की हालत किसी से छिपी नहीं हैं। दूर जाने की जरूरत क्या है, पलवल से लगते छांयसा में ही देखा जा सकता है कि बने बनाए और चले चलाए अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज की बीते चार साल में खट्टर सरकार ने क्या दुर्दशा कर रखी है। खट्टर की चरण चाकरी कर डायरेक्टर का पद हासिल करने वाले नाकाबिल गौतम गोला ने मेडिकल कॉलेज को गर्त में पहुंचा दिया। यहां मेडिकल एजुकेशन स्टाफ, मेडिकल, पैरामेडिकल स्टाफ की घोर कमी होने के कारण ओपीडी-आईपीडी में मरीज ही नहीं आते थे। यहां दवा, ऑपरेशन थियेटर, फैकल्टी के लिए कमरे जैसी आधारभूत सुविधाएं नहीं होने के कारण नेशनल मेडिकल कमीशन एनएमसी ने इसकी मान्यता रद्द कर दी थी।
मान्यता बचाने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने के बजाय खट्टर ने सत्ता का दुरुपयोग करतेे हुए जनवरी 2024 तक की मोहलत ले ली थी। इज्जत बचाने के लिए गोला को हटा कर डॉ. ब्रज मोहन वशिष्ठ को डायरेक्टर तो बना दिया गया लेकिन कम समय में वह भी मेडिकल कॉलेज में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं कर सके हैं। एनएमसी की तलवार अभी तक लटक रही है। चुनावी मौसम में मेडिकल कॉलेज की मान्यता रद्द होने से बदनामी के डर से बेचैन खट्टर डबल इंजन सरकारों के चलते एक बार फिर केंद्र सरकार का सहयोग ले ही लेंगे। मेडिकल कॉलेज तो बहुत बड़ा इदारा होता है जिसमें प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर सहित लंबा चौड़ा स्टाफ होता है, खट्टर तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं चला पा रहे। मेवला महराजपुर का अर्बन हेल्थ सेंटर बनाने में करोड़ों रुपये खर्च कर दिए लेकिन करीब आठ महीने बीतने के बावजूद वहां डॉक्टर व अन्य स्टाफ की तैनाती नहीं की जा सकी है, बातें मेडिकल कॉलेज की की जाती हैं।
पेलक गांव में मेडिकल कॉलेज की कवायद चुनावी जुमला ही नजर आ रही है, क्योंकि खट्टर सरकार मेडिकल कॉलेज के नाम पर केवल ग्रामीणों की जमीन का अधिग्रहण करने के अलावा कुछ नहीं कर सकी है। पलवल में जो जमीन मेडिकल कॉलेज के लिए चिह्नित की गई है वो जेवर एयरपोर्ट हाईवे के नज़दीक होने के कारण बेशकीमती मानी जा रही है। मेडिकल कॉलेज के लिए सरकार इसे कब्जे में ले लेगी। वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश गोयल कहते हैं कि जिस तरह सरकार हर क्षेत्र को निजी हाथों में सौप रही है, इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि मेडिकल कॉलेज बनाने और चलाने में नाकाम मोदी-खट्टर सरकार इस बेशकीमती जमीन को पीपीपी मॉडल के नाम पर पूंजीपति मित्रों को कौडिय़ों केे दाम पर सौंप दें। सरकार के ये पूंजीपति मित्र छात्रों से मोटा शिक्षा शुल्क तो वसूलेंगे ही मरीजों के लिए भी महंगे साबित होंगे।
खट्टर के शिलान्यास किए हुए मेडिकल कॉलेजों की हालत देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव पेलक में मेडिकल कॉलेज फिलहाल जनता के लिए जुमला ही है, यदि स्वीकृत भी हो गया तो उसे बनने में कितने साल लगेंगे और अगर बन भी गया तो उसे स्टाफ व उपकरण कब मिलेंगे, मरीजों का इलाज कब शुरू होगा कोई नहीं जानता।