फरीदाबाद (म.मो.) नगर निगम कंगाल क्यों न हो जब अफसरों से लेकर नेता तक इसे कंगाल करने में जुटे हों। निगम के कर्मचारी रेवेन्यू एकत्र करते हैं और वे उसमें सेंधमारी करके आधे से ज्यादा रेवन्यू खुद ही डकार जाते हैं तो विकास के नाम पर खर्च करने वाले, खास कर इंजीनियरिंग ब्रांच के लोग तो आधे से भी काम नहीं चलाते। अनेकों मामलों में काम के बिना ही भुगतान करके फाइलें तक जला दी जाती हैं।
फ़िलहाल निगम में चल रहे विज्ञापन घोटाले का कुछ लेखा-जोखा प्रस्तुत है। वर्ष 2020-21 में सदन की बैठक के दौरान एक पार्षद द्वारा विज्ञापन घोटाले पर सवाल उठाये जाने पर, मजबूरन, निगमायुक्त को जांच कमेटी बैठानी पड़ी थी। इत्तफाक से इस कमेटी के मुखिया तत्कालीन संयुक्त आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में घोटाले के 6 करोड़ की रिकवरी विज्ञापन माफिया पर डाल दी। माफिया भला किसको रिकवरी देने वाले थे क्योंकि घोटाला तो अफ़सरों व राजनेताओं की मिलीभगत व हिस्सेदारी में हुआ था। लिहाजा, रिकवरी खत्म करने के लिये एक और जांच कमेटी बैठा दी गयी जिसकी रिपोर्ट आज तक नहीं आई और न ही कभी आने की उम्मीद है; लेकिन जब तक रिपोर्ट लम्बित रहेगी रिकवरी भी लम्बित ही रहेगी। लम्बा समय बीतने के बाद बात आई-गई हो जायेगी।
नगर निगम कुछ बड़ी शर्तों के साथ कितने करोड़ वार्षिक पर विज्ञापन लगाने का ठेका छोड़ता है। यह किसी को नहीं पता कई बार तो यह ठेका छोड़ा ही नहीं जाता और ठेकेदार निगम को बिना कुछ दिये ही मोटी कमाई करने में जुटे रहते हैं, जाहिर है यह सब बड़े अफसरों की मिलीभगत एवं हिस्सेदारी में ही संभव हो सकता है। ठेके की कड़ी शर्तों के अनुसार यूनीपोल का डाया यानी 350 एमएम घेरे का स्टेनलैस स्टील का खम्बा खड़ा करके उसके ऊपर दिये हुए आकार-प्रकार से अपना विज्ञापन लगायेगा। तय अवधि के बाद यह पोल निगम की सम्पत्ति होगा। लेकिन कोई भी ठेकेदार न तो पूरा घेराव रखता है और न ही तय स्टील, आकार-प्रकार भी वह अपनी मनमर्जी का रखता है। इन शर्तों का उल्लंघन करने से आंधी-तूफान में इनके टूटने व उडऩे से दुर्घटानायें होती रहती हैं। यूनीपोलों की संख्या, स्थान व एक दूसरे के बीच फासला भी निश्चित किया गया है। लेकिन ठेकेदार किसी भी नियम का पालन न करके शर्तों का खुला उल्लंघन करते हैं। विज्ञापन देखने के चक्कर में सम्भावित दुर्घटनाओं को रोकने के मद्देनज़र राष्ट्रीय राजमार्ग टी प्वायंट व घरों की छत व बिजली के खम्बों पर विज्ञापन नहीं लगाये जा सकते। लेकिन इन सभी शर्तों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। अनेकों टी प्वायंट व हजारों बिजली खम्बों पर विज्ञापन लगे हैं। अनेकों छतों पर भी विज्ञापन देखे जा सकते हैं।
नीलम रेलवे ओवर ब्रिज से अजरोंदा की ओर जब उतरते हैं तो राजमार्ग के करीब, दोनों सडक़ों को कवर करता एक ऊंचा विज्ञापन नज़र आता है। इसे गेंट्री कहा जाता है। नियमानुसार गेंट्री के विज्ञापन की चौड़ाई चार फीट होनी चाहिये लेकिन ऐसी तमाम गेंट्री आठ फीट से ऊपर हैं। इनमें एक खतरनाक बात इन पर लगी तेज़ लाइटें हैं जो रात में वाहन चालकों को चुंधिया देती हैं। इससे कभी भी दुर्घटना हो सकती है।
शर्तों का उल्लंघन करके विज्ञापन लगाने वालों को नोटिस देने व उन्हें तोडऩे-हटाने के लिये भी कुछ कर्मचारी तैनात हैं। ये लोग नोटिस न देने या देर से देने एवं तोडऩे-हटाने में देरी व टाल-मटोल के नाम पर भी ठीक-ठाक कमाई कर लेते हैं। ये बहुत छोटे स्तर के कर्मचारी होते हैं। मोटे माल तक तो इनकी पहुंच हो नहीं पाती तो ये बेचारे छुटमुट से ही काम चला लेते हैं। ऐसा ही एक कर्मचारी दस हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथों पिछले दिनों गिरफ्तार भी किया गया था।
जानकारों की मानें तो इस ढंग से मौजूदा विज्ञापन लगाये जा रहे हैं, उससे निगम को कम से कम 50 करोड़ वार्षिक आय हो सकती है जबकि वसूली बमुश्किल 12 करोड़ की ही हो पाती है। मतलब स्पष्ट है कि शेष 38 करोड़ की सेंधमारी हो रही है। अफसरों व राजनेताओं की मिलीभगत एवं हिस्सेदारी इस बात से ही सिद्ध हो जाती है कि जब निगम के एक ईमानदार कर्मचारी दीपक गोदारा ने इस घोटाले को अफसरों के सामने उजागर किया तथा आरटीआई के माध्यम से सूचनायें मांगी तो अधिकार नाराज हो गए और मियाद पूरी होने के बाद उसे काम से ही हटा दिया गया। इतना ही नहीं हाईकोर्ट के आदेश केे बावजूद उसे काम पर नहीं लिया जा रहा। दरअसल दीपक को यह गलत फहमी थी कि उच्चाधिकारियों को इस घोटाले की खबर नहीं है। उसे मालूम नहीं था कि यह सारा घोटाला हो ही उनकी मिलीभगत से रहा है। तभी तो कहते हैं कि सोते हुए को तो जगाया जा सकता है जागते हुए को नहीं।