फरीदाबाद (म.मो.) बीते करीब चार साल से मोठूका गांव स्थित अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज हरियाणा सरकार के कब्जे में है। इससे पहले इसका संचालन प्राइवेट हाथों में था। उस वक्त यहां करीब 1200-1500 मरीज ओपीडी में आते थे। करीब 100-150 मरीज़ वार्डों में भर्ती भी रहते थे। आपातकालीन सेवायें भी उपलब्ध थीं।
हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर बीते करीब दो सालों से इसे चलाने की लोक-लुभावनी घोषणायें करते आ रहे हैं। अस्पताल तो आज तक भी चल नहीं पाया है लेकिन इससे क्षेत्र की जनता को होने वाले लाभ के स्वप्न जरूर दिखाये जा रहे हैं। लगभग यही काम बीते करीब 6 माह से संस्थान के डायरेक्टर डॉ. गौतम गोले कर रहे हैं। उन्होंने पूरे क्षेत्र में प्रोपेगेंडा करके ग्रामीणों को इलाज के लिये अपने यहां आमंत्रित किया। जो लोग इनके बहकावे में आ गये वे धक्के खाकर यहां से निराश लौट गये। संस्थान द्वारा उन्हें बीके अस्पताल जाने का रास्ता बताया गया जो वे पहले से ही जानते थे।
नियमानुसार किसी भी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के दाखिले केवल तभी किये जा सकते हैं जब 300 बेड के अस्पताल में कम से कम 180 मरीज़ दाखिल हों। इसी नियम के आधार पर शहर के सबसे बड़े एवं नव निर्मित मां अमृतमयी अस्पताल ने अभी तक कॉलेज शुरू करने के लिये आवेदन तक नहीं किया है। जाहिर है कि यह आवेदन तभी किया जायेगा जब ओपीडी व दाखिल मरीज़ों वाली शर्त पूरी हो जायेगी।
सरकार के उक्त संस्थान को इस आवश्यक शर्त से मुक्त करके चिकित्सा शिक्षा के साथ खतरनाक खिलवाड़ किया जा रहा है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार उस संस्थान में अभी तक न तो कोई आपातकालीन सेवायें हैं और न ही किसी भी प्रकार के मरीजों को देखने की कोई व्यवस्था है। दवाओं, शल्य चिकित्सा तथा एक्सरे आदि की तो बात करना ही फ़िज़ूल है। भरोसेमंद सूत्रों की माने तो इस संस्थान में बिजली पानी की भी कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। दिन भर में तीन-चार घंटे बिजली का गायब रहना आम बात है। बीते सप्ताह तो बिजली का कोई खंभा टूट जाने से करीब दो दिन तक बिजली ठप्प रही। ऐसे में वहां तैनात डॉक्टर साहिबान काफी परेशान नजर आ रहे हैं। उनकी परेशानी के और भी कई कारण हैं। उन्हें न तो रहने के लिये आवास दिया जा रहा है और न ही आवास भत्ता। ग्रामीण क्षेत्र भत्ता जो खानपुर मेडिकल कॉलेज में 30 प्रतिशत तथा मेवात मेडिकल कॉलेज में 25 प्रतिशत मिलता है, यहां नहीं दिया जा रहा। और तो और पहली तारीख को मिलने वाला वेतन भी 10-15 तारीख तक मिल पाता है।
जानकार बताते हैं कि इन हालात के चलते यहां तैनात तमाम डॉक्टर अपने-अपने स्तर पर नई नौकरी ढूंढने में लगे हुए हैं। कुछ लोग अम्मा के अस्पताल जाने की तैयारी कर रहे हैं तो कुछ यूपीएससी तथा अन्य माध्यमों से कहीं न कहीं और निकल भागने के प्रयास में जुटे हैं। यदि सरकार ने समय रहते इस ओर उचित ध्यान न दिया तो शीघ्र ही तमाम डॉक्टर भी यहां से पलायन कर जायेंगे।