फरीदाबाद (म.मो.) सरकार का कायराना चरित्र समझने के लिये बदमाश, नशा व्यापारी लाला उर्फ बिजेन्द्र के अवैध कब्जों को हटाने के तरीके से देखा जा सकता है। लाला के जीते जी सरकार की हिम्मत नहीं पड़ी कि उसके द्वारा कब्जाई गई केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग की ढाई एकड़ जमीन को उसके कब्जे से खाली करा सकती। इस ज़मीन पर दसियों वर्ष पूर्व उसने तीन मकान व 18 दुकाने तथा तीन बड़े गोदम आदि बना रखे थे।
करीब आठ माह पूर्व संदिग्ध हालात में हुई लाल की मौत के बाद प्रशासन ने उक्त कार्रवाई करने की हिम्मत जुटाई। दर्जनों अफसरों के अलावा बड़ी संख्या में पुलिस बल को ऐसे तैनात किया गया था जैसे कि बहुत बड़े खुंखार आतंकवादी गिरोह से पुलिस का मुकाबला होने वाला है। थाना मुजेसर के मछली मार्केट क्षेत्र से लाला अपना नशे का थोक व्यापार चलाता था। स्थानीय एवं सीआईए पुलिस वालों का वहां आना-जाना लगा रहता था। अक्सर वहां एक पीसीआर जिप्सी भी तैनात रहती थी। इस सबके बावजूद उसका धंधा खूब फल-फुल रहा था।
पुलिस के द्वारा पकड़े जाना, जेल जाना व छूट कर आना उसके लिये आम बात थी। अपने पुलिस मित्रों के सहयोग से उसने कानून के साथ एक खिलौने की तरह खेलना अच्छी तरह सीख लिया था। इसी के चलते उस पर विभिन्न धाराओं में 32 मुकदमे दर्ज थे जिनकी उसे कोई परवाह न थी। अपने काम को बढावा देने के लिये उसने अपने भाई कन्हैया जिस पर 21 मुकदमे, साली पुजा पर सात, पत्नी पर तीन तथा मां पर भी एक मुकदमा दर्ज करा कर, अपने धंधे में जोड़ रखा था।
जिस बेखौफ ढंग से वह अपराध जगत में खुल कर खेल-कूद रहा था और पूरा शासन-प्रशासन उसके सामने नतमस्तक रहा उसके चलते कोई भी जनसाधारण उसके विरुद्ध मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था। उसी के चलते वह लगातार एक के बाद एक अवैध कब्जे करने में जुटा रहा। क्या उस समय किसी सरकारी कर्मचारी अधिकारी को वह सब नजर नहीं आ रहा था?
जाहिर है कमजोर प्रशासन के चलते किसी की हिम्मत उसे छेडऩे की नहीं पड़ती थी। दिनांक 27 सितम्बर को जितने बड़े लाव लस्कर के साथ प्रशासन ने उसके अवैध कब्जों को ध्वस्त किया है उसने वास्तव में ही यह साबित कर दिया है कि सारा प्रशासन उससे कितना खौफ खाता था।