फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। सूरजकुंड दिवाली मेले का उद्घाटन करने आए प्रदेश के पर्यटन एवं शिक्षामंत्री कंवरपाल गूजर ने ऐलान किया कि प्रदेश का हैप्पीनेस इंडेक्स बढ़ाने के लिए सूरजकुंड में हर साल तीन मेले लगाएंगे। सत्ता का सुख भोग रहे कंवरपाल गूजर भूल गए कि जनता को खुशी मेले लगाने से नहीं बल्कि महंगाई कम करने, रोजगार देने और सामाजिक सुरक्षा देने से मिलती है। हैप्पीनेस इंडेक्स किन मानकों पर तय होता है अगर शिक्षामंत्री को यह पता होता तो संभवता वो इस तरह की जुमलेबाजी नहीं करते, लेकिन संघ-भाजपा की रीति-नीति कि काम नहीं करो, बस काम का ढिंढोरा पीटो की तर्ज पर वह भी अपने गाल बजा कर चले गए।
मोदी-शाह के ‘कुशल नेतृत्व’ में भारत अंतरराष्ट्रीय हैप्पीनेस इंडेक्स की सूची में 150 देशों में बीते वर्ष से दस पावदान लुढक़ कर 146 वें स्थान पर पहुंच चुका है। 2020 के भारत के पहले हैप्पीनेस इंडेक्स में हरियाणा 10 में 3.36 अंक के साथ सत्रहवें स्थान पर था। यह स्थिति अभी भी बहुत बेहतर नहीं है। सावन के अंधे को सब हरा दीखता है कहावत को चरितार्थ कर रहे शिक्षा मंत्री को महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक असुरक्षा, लैंगिक भेदभाव-उत्पीडऩ और सांस्कृतिक आतंकवाद जैसी बुराइयां नजर ही नहीं आ रहीं, तभी तो उन्हें लगता है कि जनता की गाढ़ी कमाई लुटा कर मेला लगाओ और ढिंढोरा पीटो कि जनता खुश हो रही है। हैप्पीनेस इंडेक्स का पहला कारक प्रति व्यक्ति आय है। ऑक्सफेम इंडिया के जून 2023 के आंकड़ों के अनुसार दस प्रतिशत से कम नागिरकों के पास देश की 62 फीसदी से ज्यादा संपत्ति है। जबकि पचास फीसदी जनता के बीच महज तीन प्रतिशत संपत्ति का बंटवारा है। जिस देश में आबादी का लगभग साठ फीसदी हिस्सा यानी अस्सी करोड़ लोगों को जिंदा रहने के लिए मुफ्त के सरकारी राशन की जरूरत हो दूसरी ओर अरब पतियों की संख्या 2020 में 102 से बढक़र 2022 में 166 हो जाए वहां कौन खुश है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यमुना नगर के रेत एवं बजरी माफिया से राजनेता बने कंवरपाल कहते हैं कि हमारे पास पैसा है, बड़ा मकान है लेकिन खुशी नहीं है इसलिए मेले लगाए जाने चाहिए, समझा जा सकता है कि वो जनता के किस तबके की हैप्पीनेस की बात कर रहे थे।
एक अन्य कारक औसत आयु है जो बीते 25 वर्षों में हरियाणा में बढक़र 67 वर्ष हो गई थी लेकिन बढ़ते प्रदूषण के कारण बीते दो तीन वर्षों में प्रदेश में औसत आयु में एक साल की कमी हुई है। बिजली, पेयजल, सडक़ जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी झेेल रही जनता प्रदूषण की मार से भी जूझ रही है लेकिन कंवरपाल की नजर में सब चंगा है।
तीसरा कारक सामाजिक सौहार्द है जो कि खट्टर सरकार में छिन्नभिन्न हो चुका है। हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भडक़ाया जा रहा है। सरकार जातियों के बीच नफरत फैलाने वालों को समर्थन दे रही है। समाज में असुरक्षा और भय का माहौल फैला कर सत्ता पर कब्जा रखने का संघ-भाजपा का खेल जारी है, और मंत्री कंवरपाल इसे हैप्पीनेस इंडेक्स के पर्दे में छिपा रहे हैं। चौथा कारक स्वास्थ्य सेवाएं हैं। प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत इसी से समझी जा सकती है कि टीबी के मरीजों को महीनों से दवाएं नहीं मिल रही हैं। सरकारी अस्पतालों में आधारभूत दवाओं का अभाव रहता है। यूएचसी, पीएचसी, सीएचसी और जिला अस्पतालों में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं न पैरा मेडिकल स्टाफ। सीएम खट्टर द्वारा घोषणा किए गए मेडिकल कॉलेज भी हवा हवाई ही हैं। अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज इसका उदाहरण है जो आज तक ठीक से नहीं चल सका और उस पर नेशनल मेडिकल काउंसिल की तलवार लटक रही है।
पांचवां कारक सामाजिक सुरक्षा है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगाने वाली खट्टर सरकार में सबसे ज्यादा असुरक्षित बेटियां ही हैं। महिला जूनियर एथलेटिक कोच के यौन उत्पीडऩ के आरोपी राज्यमंत्री संदीप सिंह को खट्टर ने पूरा संरक्षण दिया और पीडि़ता पर दबाव बनाने के लिए उसे ही निलंबित कर दिया। जूनियर खिलाडिय़ों का यौन उत्पीडऩ करने का आरोपी केंद्रीय मंत्री ब्रजभूषण सिंह आज भी खुलेआम घूम रहा है जबकि दिल्ली में धरने पर बैठी महिला पहलवानों से सरकार के इशारे पर पुलिस और प्रशासन ने जमकर अभद्रता की। हक की मांग कर रहे किसानों को कुचलने का पूरी तरह प्रयास किया गया। नौकरी मांगने वाले छात्र-छात्राओं पर इसी खट्टर सरकार में लाठियां चलवाई गईं। मंत्री कंवरपाल के हैप्पीनेस इंडेक्स में यह घटनाएं नहीं आतीं क्योंकि उनकी सरकार में ‘रामराज’ है।
सबसे महत्वपूर्ण कारक भ्रष्टाचार है। खट्टर की बीते नौ सालों की सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच चुका है। इतना जरूर हुआ है कि रिश्वत के दाम दोगुने चौगुने हो गए। आईएएस जैसे आला अधिकारियों ने भी भ्रष्टाचार की सीमाएं इस कदर उलांघ दीं कि खट्टर सरकार को न चाहते हुए भी उनकी गिरफ्तारियां करनी पड़ीं। कुछ एक आईएस ऑफिसर ऐसे हैं जो आकाओं-मंत्रियों को चढ़ावे की आड़ में बचते घूम रहे हैं। समझा जा सकता है कि जब आला अफसर भ्रष्ट होंगे तो निचले स्तर के कर्मचारियों को भ्रष्टाचार करने से कौन रोक सकेगा। परिवार पहचान पत्र हो, राशन कार्ड बनवाना या पेंशन बंधवानी हो बिना मु_ी गर्म किए आम जनता का काम कहीं नहीं होता।
हैप्पीनेस सिर्फ कहने से या मेला लगाने से नहीं आ जाती। जब आम जनता के पास रोगजार होगा, परिवार को जरूरी आवश्यकताएं पूरी करने के बाद बचत होगी तभी आम आदमी मेला देखने जाएगा, खाली पेट और खाली जेब मेले नहीं सूझते बल्कि निकम्मी सरकार के प्रति रोष ही पनपता है।
दुकानदारों की तो हैप्पीनेस छिन गई दिवाली मेले में बड़ी कमाई और हजारों की भीड़ का सुनहरा ख्वाब दिखा कर सूरजकुंड मेले में बुलाए गए दुकानदारों की खुशी ग्राहक न आने से काफूर गई है। मेला प्रबंधन और प्रशासन पर झूठ बोलने और घोखा देने का आरोप लगाते हुए इन दुकानदारों का गुस्सा सोमवार को फूट पड़ा। इन दुकानदारों का कहना था कि अधिकारियों ने बताया था कि मेले में प्रतिदिन कम से कम पंद्रह हजार लोग आएंगे वीक एंड पर तो यह संख्या दो गुनी हो सकती है लेकिन इसके उलट पांच दिन बीत गए ग्राहक दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। मेले में जितने स्टॉल लगे हैँ उतने तो दर्शक भी नहीं आ रहे ग्राहक कहां से बनेंगे। कुछ युवा आते हैं तो वो खरीदारी करने नहीं बल्कि चौपाल के सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने और मौज मस्ती करने। दुकानदारों का कहना है कि स्टॉल का किराया छोड़ भी दिया जाए तो सामान लाने में जितना भाड़ा खर्च हुआ वो भी नहीं निकल पाया है। रोजाना का खर्च अलग से हो रहा है ऊपर से मेला प्रबंधन ने तीस रुपये का टिकट लगा रखा है जिससे भी लोग परिवार के साथ आने से कतरा रहे हैं। ग्राहक नहीं आने के कारण अधिकतर दुकानदार आठवें दिन ही सामान समेट का चलते बने।