पलवल (म.मो.) जिस देश में हजारों-लाखों करोड़ के गबन एवं घोटाले हो रहे हों, वहां 50 करोड़ का तो कोई खास महत्व नहीं रह जाता। यह घोटाला तो अकेले पलवल जि़ले का है; न जाने ऐसे कितने घोटाले अन्य जिलों में हो रहे हैं। जानकारों के मुताबिक कोरोना काल के दो वर्षो में राज्य भर में लगभग 950 करोड़ रूपए इस मद में डकार लिये गये है। मौजूदा मामले में हथीन ब्लॉक की अधिकारी रेणुलता, जेई सचिन कुमार तथा हुड़ीथल गांव के सरपंच को लोकपाल की ओर से नोटिस दिया गया है।
इस मामले में एक विशेष बात गौरतलब यह है कि इससे सम्बन्धित 16 अन्य कर्मचारी इस्तीफा देकर स्वत: फारिग हो चुके हैं। ये तमाम कर्मचारी ठेकेदारी में काम करते थे। यानी ये सरकार के पक्के कर्मचारी नहीं थे। लिहाजा किसी भी घोटाले एवं गबन में इन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यही वह असली खेल है जिसे रेणु लता जैसे भ्रष्ट अधिकारी खेलते हैं। इन कच्चे एवं ठेकेदारी के कर्मचारियों के माध्यम से सरकारी खजाने को लूटने का खेल खेला जाता है। यदि वे कर्मचारी भी पक्के होते तो वे रेणु लता के भ्रष्टाचार का विरोध कर सकते थे। यदि भ्रष्टाचार में शामिल होते तो वे इतनी आसानी से नौकरी छोडक़र नहीं भाग सकते थे।
दूसरा बड़ा सवाल जि़ले के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी), डीडीपीओ (डिस्ट्रिक डवलपमेंट एवं पंचायत ऑफिसर) तथा अतिरिक्त उपायुक्त पर भी बनता है। जब सरकारी खजाने में यह सेंधमारी कई महीनों तक चलती रही तो ये अधिकारी कहां सो रहे थे? क्या इन्हें भी इस लूट में हिस्सेदार न समझा जाये?
मामले की गहराई से जांच करने पर पाया गया कि कोरोना के दो वर्षों 2020 व 2021 के दौरान जब देश भर में सब काम ठप्प थे तो सरकार की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत 26,26 करोड़ रुपये दोनों वर्षों के लिये पलवल जि़ले में आये। यह रकम जि़ले के 6 विकास खंडों के द्वारा 260 गांवों में खर्च की गयी।
यह पैसा कोई दान में अथवा भीख में बांटने के लिये सरकार द्वारा नहीं भेजा गया था, बल्कि इसलिए कि इसके द्वारा जरूरतमंद ग्रामीणों को काम पर रख कर उनसे कुछ विकास कार्य कराये जायें।
लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों ने यह सारा पैसा खुद ही बांट कर खा लिया। लूट में गांव का सरपंच, उसका सचिव, जेई, खंड विकास अधिकारी व सीईओ तक सीधे तौर पर शामिल रहे हैं। जिले के अतिरिक्त उपायुक्त, उपायुक्त तथा मंडलआयुक्त परोक्ष रूप से शामिल हैं। सूत्र बताते हैं कि अधिकारियों ने सरपंचों के द्वारा ग्रामीणों को एक-एक किलो चीनी या कहीं-कहीं दारू की बोतल देकर फर्जी हाजिरी कागजों पर अंगूठे-दस्तखत करा लिये और सारा पैसा डकार लिया। यह काम अकेले पलवल में न होकर राज्य भर के तमाम जि़लों में खुल कर हुआ है। राज्य का प्रशासनिक इतिहास बताता है कि कोई कितनी भी लूट कर ले, उसका कभी कुछ बिगड़ता नहीं। जांच-पड़ताल चलती रहती है, मुकदमे दर्ज होते रहते हैं, लेन-देन के दौर चलते रहते हैं।
अंत में सब रफा-दफा हो जाता है। किसी से न तो कभी कोई वसूली होती है और न ही कभी किसी को कैद होती है। इसी से प्रोत्साहित होकर घोटालों का यह कार्यक्रम बेखौफ चलता रहता है।
मौजूदा मामले में तमाम 260 सरपंच अपने-अपने विधायकों के घरों पर डेरा डाले बैठे हैं। ये लोग अपने नेताओं से जांच बंद कराने के लिये दबाव डाल रहे हैं। वोटों के भूखे एवं भ्रष्ट विधायक भी अपनी ओर से, इस मामले को रफा-दफा कराने के लिये पूरा जोर लगा रहे हैं।