फरीदाबाद (म.मो.) सीवर के खुले मैनहोलों में गिरने की घटनायें थमने का नाम नहीं ले रही। जबकि बीते माह इस तरह की घटना में एक बैंक कर्मचारी की मौत भी हो चुकी है। ये घटनायें तब तक नहीं रुकेंगी जब तक इसके लिये जिम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज करके उन्हें जेल न भेजा जायेगा।
ताज़ा तरीन घटना शनिवार 30 अप्रैल की है जब डबुआ पाली रोड पर रात के अंधेरे में एक महिला खुले मैनहोल में गिर गई। यानी कि एक तो मैनहोल पर ढक्कन नहीं और दूसरे सडक़ पर लाईट नहीं। संदेश साफ है कि जिसे मरना हो मर ले और बचना हो बच ले, सरकार की कोई जिम्मेवारी नहीं है।
इस तरह के समाचार लगातार प्रकाशित होने पर निगम अधिकारी अब मैनहोल के ढक्कन खरीदने का टेंडर जारी करने की बात कर रहे हैं। ढक्कन की कीमत को लेकर भी विवाद बताया जा रहा है। ठेकेदार 2000 प्रति ढक्कन मांग रहा है तो निगम 1500 की बात कर रही है। आये दिन दुर्घटनाओं का शोर जब बढऩे लगा तो नगर निगम को उपाय के तौर पर टेंडर नजर आने लगा।
बड़ी अजीब बात है कि जब सीवर लाइन बनाने का टेंडर छोड़ा गया था तो क्या उसमें मैनहोल के ढक्कन शामिल नहीं थे? जरूर थे, बिना ढक्कन के सीवर लाइन पास ही कैसे हो सकती है, ठेकेदार को पेमेंट कैसे की जा सकती है? यह भी अपने आप में एक बहुत बड़ा घोटाला है। अपने बचाव में निगम के चोर अधिकारी कह सकते हैं कि ढक्कन तो लगवाये थे लेकिन वह चोरी हो गये या टूट गये। यहां सवाल पैदा होता है कि क्या ढक्कन चोरी होने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई गई थी? ऐसी शिकायत कभी दर्ज नहीं कराई जाती क्योंकि निगम कर्मियों की मिलीभगत से चोरी होती है। दूसरा बहाना ढक्कन टूटने का लिया जाता है। जाहिर है कि ठेकेदार को पैसा पूरा देकर ढक्कन घटिया क्वालिटी का खरीदा जायेगा तो वह टूटेगा ही।
अब नये ढक्कन खरीदने की बात चली है तो टेंडर जारी हो गया। लेकिन यह नहीं बताया जा रहा कि कुल कितने ढक्कन खरीदे जाने हैं। नगर निगम के पास कोई हिसाब-किताब नहीं है कि कहां-कहां और कितने ढक्कन लगने हैं? ढक्कन खरीदने व लगाने के दौरान कितने और ढक्कन चोरी होंगे या टूट जायेंगे।