(22 अक्टूबर 1900-19 दिसंबर 1927) के जन्मदिन पर
प्रस्तुति : ईश मिश्रा अपने क्रांतिकारी साथी राम प्रसाद बिस्मिल की तरह अशफाक भी क्रांतिकारी कविताएं लिखते थे। अपने क्रांतिकारी विचारों और काम से अंग्रेज शासकों को इतना खौफजदा कर दिया कि औपनिवेशिक शासन की अदालत ने मात्र 27 साल की उम्र में इन्हें फांसी की सजा सुना दी और ये अपने साथी विस्मिल के साथ क्रांतिकारी गीत गाते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए। उनकी एक कविता —
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से, तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का, चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे। परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की, है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे।
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे, तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।
सीखा है नया हमने लडऩे का यह तरीका, चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे। दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं, ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।
मुसाफिऱ जो अंडमान के, तूने बनाए ज़ालिम, आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।
शहीद अशफाकुल्ला खान की शहादत को सलाम!