करनाल । मधुमेह लाइफस्टाइल डिसऑर्डर उपजा हुआ रोग है। इस रोग का निदान भी दिनचर्या नियंत्रण में ही छिपा है। अनुशासित जीवन शैली और नियमित योग मधुमेह से न सिर्फ छुटकारा दिला सकता है, बल्कि इसे होने से भी रोक सकता है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में शक्कर का जमा होना मधुमेह के लक्षण हैं। मधुमेह हो जाने पर यदि इसका उचित इलाज न हो, तो यह जानलेवा भी हो सकता है। इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं। यह बात हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने मधुमेह के विभिन्न पहलुओं पर आयुर्वेद और योग के विशेषज्ञ डॉ. अमित पुंज अंगिरस से रेडियो ग्रामोदय के आयोजन ग्रामोदय लाइव में चर्चा के दौरान कही। डॉ. चौहान ने कहा कि मधुमेह अब घर-घर में पाया जाने वाला आम रोग बन चुका है। यहां तक कि अब भारत मधुमेह की राजधानी बनता जा रहा है। इसका मुख्य कारण हमारी बदलती जीवन शैली है। इसके अलावा आनुवंशिक कारणों से भी मधुमेह होता है। आयुर्वेद और एलोपैथी में इसके उपचार के तरीकों में थोड़ी सी भिन्नता है। इसका सबसे अच्छा उपचार आत्मसंयम और दिनचर्या में बदलाव है।
चर्चा में भाग ले रहे योग विशेषज्ञ डॉ. अमित पुंज अंगिरस ने बताया कि शरीर में इंसुलिन का न बनना डायबिटीज का मुख्य कारण है। ग्रहण किए गए भोजन से शरीर में तैयार होने वाले शुगर को रक्त संचार के माध्यम से शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुंचाने का काम इंसुलिन ही करता है। इंसुलिन न बनने से ग्लूकोज विभिन्न कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाता और परिणामस्वरूप शरीर के अलग-अलग हिस्सों में यह जमा होने लगता है। इसे टाइप वन डायबिटीज कहते हैं। मानव शरीर में इंसुलिन का निर्माण पैंक्रियाज करता है। इस प्रकार डायबिटीज का सीधा संबंध पैंक्रियाज से है।
डॉ. पुंज ने बताया कि जल्दी-जल्दी प्यास लगना और बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा डायबिटीज के प्रारंभिक लक्षण हैं। इस बीमारी में आयु मायने नहीं रखता। बुजुर्गों से लेकर नवजात बच्चों में भी मधुमेह के लक्षण देखे जाते हैं। मधुमेह मुख्यत: दो प्रकार का होता है– टाइप वन और टाइप टू। इंसुलिन का न बनना टाइप वन डायबिटीज है, जबकि लाइफस्टाइल डिसऑर्डर से उत्पन्न होने वाली बीमारी टाइप टू डायबिटीज कहलाती है। इसे दिनचर्या में बदलाव से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यदि टाइप टू डायबिटीज का उचित इलाज न हो, तो यह टाइप वन डायबिटीज में परिवर्तित हो सकता है। आनुवंशिक मामलों में परिवार के किसी सदस्य को जिस श्रेणी का मधुमेह होता है, दूसरे सदस्य को भी उसी प्रकार का मधुमेह होने का खतरा रहता है।
डॉ. पुंज ने कहा कि चिकित्सा के दौरान उन्होंने कई ऐसे मरीजों को देखा है जिन्हें आयुर्वेद और योगके की सहायता से मधुमेह से पूर्ण छुटकारा मिला है और पिछले 5-10 साल से बिना कोई दवा लिए मधुमेह से मुक्त हैं। उन्होंने बताया कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में मधुमेह होने पर सर्वप्रथम मीठा का सेवन बंद करवाया जाता है। इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट की आपूर्ति करने वाले गेहूं, चावल और मैदे का उपभोग भी तत्काल बंद करवाया जाता है। मरीजों को मक्की, ज्वार, बाजरा आदि खाने की सलाह दी जाती है। टाइप-टू डायबिटीज को दिनचर्या में बदलाव से नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन टाइप वन डायबिटीज हो जाने पर दवा ही एकमात्र विकल्प है। डायबिटीज का असर आंखों और किडनी समेत शरीर के अन्य अंगों पर पड़ता है। इसे रोकने के घरेलू नुस्खों में जामुन की गुठली, नीम, गिलोय आदि फायदेमंद साबित होते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि इनका निर्धारित मात्रा से ज्यादा सेवन करना भी खतरनाक है। सबसे अच्छा तरीका यह है कि डायबिटीज की नियमित जांच के लिए घर में मशीन रखी जाए।
सीधा टाइप-वन डायबिटीज के शिकार हो रहे बच्चे मधुमेह से बचाव के लिए क्या क्या सावधानियां बरती जाएं, डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान के इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ. अमित पुंज ने बताया कि मधुमेह के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है। टॉफी, चॉकलेट, आइसक्रीम और पिज़्ज़ा-बर्गर का अत्यधिक इस्तेमाल करने से अब छोटे बच्चों में भी टाइप वन डायबिटीज के मामले बढ़ते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर थकावट और प्यास ज्यादा महसूस होने लगे, मांसपेशियों में दर्द रहने लगे, तो व्यक्ति को अपने खून की जांच तुरंत करवानी चाहिए। डायबिटीज की सही पहचान के लिए एचबीए 1सी की जांच जरूरी है। यह शुगर लेवल की जांच की एक विश्वसनीय प्रणाली है जिससे तीन महीने के औसत शुगर स्तर की जानकारी मिलती है। सामान्य जांच में खाली पेट रक्त की जांच करवाने पर शुगर लेवल 100 के भीतर और खाना खाने के बाद अधिकतम 150 या इससे कम होना चाहिए। इसके अलावा रक्त में शुगर की जांच के लिए एक जीजीटीए टेस्ट भी किया जाता है।