फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) हरियाणा सरकार का शिक्षा विभाग बच्चों को शिक्षा देने की बजाय इसके द्वारा लूट कमाई में जुटा हुआ है। सरकार अपने स्कूल तो एक के बाद एक बंद करने में जुटी है और निजी स्कूलों को हर तरह से लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। इस दिशा में स्कूलों को मान्यता देना एक बड़ा धंधा है। मान्यता अस्थायी हो या स्थायी इसका बार-बार नवीनीकरण केवल इसलिये कराना होता है ताकि सम्बन्धित अधिकारियों के माध्यम से राजनेताओं को लूट कमाई प्राप्त होती रहे।
किसी भी स्कूल को मान्यता देने के लिये जो शर्तें लिखी गई हैं उनमें से शायद ही कोई शर्त किसी सरकारी स्कूल द्वारा पूरी की जाती हो, यानी खुद मियां फजीहत और दूसरों को नसीहत। जो कुछ शर्तें पूरी भी की जा रही हैं उनमें केवल बड़े निजी स्कूल ही आते हैं। इसके बावजूद भी उन्हें इस या उस बहाने चक्कर में डाल कर वसूली करने के बाद ही मान्यता दी जाती है। इतना ही नहीं सरकार द्वारा दी गई इस मान्यता का समय-समय पर नवीकरण कराने के नाम पर फिर से भुगतान किया जाता है। मान्यता का यह धंधा अधिकारियों की काली कमाई का स्थायी स्रोत बन चुका है।
सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार राज्य भर में 4500 स्कूल ऐसे हैं जिनके पास कोई मान्यता नहीं है। इसके बावजूद भी कम से कम 15-20 लाख बच्चे इन स्कूलों में पढ़ रहे हैं। सवाल यह पैदा होता है कि विभागीय अधिकारियों को रिश्वत देकर मान्यता प्रमाणपत्र प्राप्त करने के बाद क्या इन स्कूलों में पढ़ाई का स्तर कुछ ऊंचा हो जाएगा? नहीं, सब कुछ ज्यों का त्यों ही चलेगा। दूसरा सवाल यह पैदा होता है कि अपनी धमकी के अनुसार सरकार इन स्कूलों को बंद कर दे तो इनमें पढऩे वाले लाखों बच्चे कहां जाएंगे? क्या सरकार ने इन बच्चों की पढ़ाई के लिये कोई बेहतर वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध करा रखी है? नज़र तो कहीं नहीं आती; जो सरकार लगातार अपने स्कूल बंद करने पर जुटी हो उससे ऐसी कोई अपेक्षा करना ही व्यर्थ है।
कुल मिलाकर समझने वाली बात यह है कि स्कूल तो बिना मान्यता के भी चलते रहेंगे, बंद करने की धमकी तो केवल उनसे वसूली करने के लिये दी जा रही है।