तीन मुख्यमंत्री चौटाला, हुड्डा, खट्टर : अरावली दोहन को संरक्षण फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए) की धारा चार और पांच का उल्लंघन कर 13.6 एकड़ में बनाई गई जिस मानव रचना यूनिवर्सिटी को अवैध होने के कारण ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए था, सरकार ने उसे पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी है। मंज़ूरी संशोधित वन संरक्षण कानून के तहत दी गई है। एक निजी संस्था को स्वीकृति मिलने के बाद पीएलपीए का उल्लंघन कर बनाए गए सत्तापक्ष के नेताओ, दलालों, भू-माफिया के फार्म हाउस, मैरेज हॉल आदि को भी मान्यता मिलने का रास्ता खुल जाएगा। वन मंत्रायल का नाम बदल कर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय कर जनता के बीच पर्यावरण संरक्षण का ढोंग करने वाले मोदी और उनके सहयोगी खट्टर की डबल इंजन सरकार अकूत प्राकृतिक संपदा निजी हाथों को सौंप बर्बाद करने पर तुली हुई है।
दिल्ली-एनसीआर के खराब होते पर्यावरण के संरक्षण और प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से अरावली भूमि और वनों को पीएलपीए 1900 के तहत संरक्षित घोषित किया गया था। इसकी धारा चार और पांच के तहत अधिसूचित जमीन को वन भूमि कहा गया और इस पर किसी भी तरह की गैर वानिकी गतिविधि को पूर्णतया प्रतिबंधित कर दिया गया। बावजूद इसके धनबल और सत्तारूढ़ सरकार में बैठे मंत्री, विधायकों को उपकृत कर बिल्डर, भूमाफिया ने इस ज़मीन पर निर्माण, अवैध कब्जे जारी रखे। इनमें से एक मानव रचना यूनिवसिर्टी भी है। 1997 में सूरजकुंड-बडख़ल रोड पर पीएलपीए संरक्षित वन क्षेत्र के छह एकड़ से ज्यादा जगह में कॅरियर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट के नाम से शिक्षण संस्था खोली गई। कांग्रेस मुख्यमंत्री भूपेद्र हूडा की सरकार में 2004 में इसका नाम मानव रचना कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग हुआ, साथ ही इसका विस्तार करीब नौ एकड़ तक कर लिया गया था।
क्योंकि यह निर्माण अवैध था इसलिए वन विभाग ने 2008 में सर्वोच्च न्यायालय में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें आवेदन किया गया था कि वन भूमि पर बने इंजीनियरिंग कॉलेज की इमारत सहित अन्य अतिक्रमण ढहा दिए जाने चाहिए। न्यायालय ने इस पर आदेश जारी किया लेकिन अन्य पक्षों के रिव्यू पिटिशन लगाए जाने से कार्रवाई टल गई। इस दौरान 2014 में कॉलेज प्रबंधन ने इसे विश्वविद्यालय घोषित किया। तब से अब तक यह विश्वविद्यालय 13.6 एकड़ में फैल चुका है। पीएलपीए संरक्षित इलाके में अवैध रूप से बनाए गए विश्वविद्यालय को हर तरह की आंच से बचाने के लिए प्रबंधन केंद्र से लेकर राज्य सरकार और न्यायपालिका को उपकृत करने में जुटा रहता। व्याख्यान के नाम पर सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस, तो राज्यों के राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री आदि को बुलाकर कार्रवाई से बचने के लिए न्यायपालिका और प्रशासन पर दबाव बनाया जाता, साथ ही इन हस्तियों को उपकृत कर अपनी ज़मीन बचाने के उपाय किए जाते रहे।
सुधी पाठक जान लें कि पीएलपीए की संरक्षित भूमि में बनाए जाने के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने 2008 में कांत एंक्लेव, लेकवुड कॉलोनी का कुछ हिस्सा, सेक्टर 21 सी पार्ट तीन, अनखीर गांव का बड़ा हिस्सा तोडऩे के आदेश जारी किए थे। कांत एंक्लेव बिल्डर और इसमें रहने वालों ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ एक रिव्यू पिटिशन डाली थी, इस पिटिशन की आड़ में बाकी सब पर कार्रवाई भी रुकी हुई थी।
इस दौरान मानव रचना विश्वविद्यलाय में निर्माण जारी रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की तो अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कांत एंक्लेव के 33 मकान तोड़ डाले गए लेकिन प्रशासन ने पीएलपीए का उल्लंघन कर किए गए अन्य निर्माण पर कार्रवाई नहीं की, इसमें मानव रचना यूनिवर्सिटी भी शामिल है। 2022 में वन विभाग ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को जानकारी दी कि मानव रचना यूनिवर्सिटी की इमारत वन संरक्षण कानून का उल्लंघन कर बनाई गई है। यह भी जानकारी दी गई कि यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने 0.19 हेक्टेयर अतिरिक्त ज़मीन पर फिर अतिक्रमण कर लिया है। बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं की गई। दिसंबर 2023 में केंद्र सरकार ने वन संरक्षण कानून में संशोधन किया। इसका फायदा उठाते हुए यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने साल के अंत में पर्यावरण मंत्रालय में कार्योत्तर (पोस्ट फैक्टो) स्वीकृति दिए जाने का आवेदन किया। इस पर मंत्रालय ने सलाहकार समिति का गठन किया।
सलाहकार समिति के अध्यक्ष सीपी गोयल (विशेष सचिव एवं महानिदेशक वन), सदस्य रमेश कुमार यादव ( इंस्पेक्टर जनरल फॉरेस्ट), एसपी यादव (अतिरिक्त महानिदेशक वन), बिवाश रंजन (अतिरिक्त महानिदेशक वन) और डॉ. मेहराज ए शैख(उप आयुक्त एनआरएम) व तीन अन्य सदस्य ने विचार के बाद यूनिवर्सिटी को स्वीकृति दिए जाने की सिफारिश की। समिति की सिफारिशों के अनुसार क्योंकि यूनिवर्सिटी का प्रोजेक्ट शिक्षा देने के लिए बनाया गया था और वहां पर वन के अलावा कोई वैकल्पिक ज़मीन मौजूद नहीं थी इसलिए निर्माण किया गया। यूनिवर्सिटी जिस जगह बनी है वह जगह किसी नेशनल पार्क में नहीं आती, वन्य जीव अभ्यारण्य भी नहीं है, टाइगर या हाथी रिजर्व भी नहीं है। यूनिविर्सिटी के लिए ली गई जमीन बहुत ही कम है और इसकी आवश्यकता टाली नहीं जा सकती थी।
हां, समिति ने यह शर्त रखी कि स्वीकृति तब ही दी जाएगी कि जब यूनिवर्सिटी प्रबंधन उतनी ही गैर वन ज़मीन की पहचान कर उस पर प्रतिपूर्ति के लिए पौधरोपण करें। बताया जा रहा है कि स्वीकृति मिलने के बाद मानव रचना के मालिकान नारनौल और महेंद्रगढ़ में कौडिय़ों के दाम पर जमीन तलाश रहे हैं ताकि वहां उसे सौंप कर अरावली की इस बेशकीमती ज़मीन का कब्जा पक्का कर सकें। पर्यावरण प्रेमियों के अनुसार फरीदाबाद देश ही नहीं विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रहता है, ऐसे में यहां हुए पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई यदि नारनौल और महेंद्रगढ़ में की गई तो उससे इस शहर को कोई फायदा नहीं होगा। वन कानून होने के बावजूद अरावली के संरक्षित वनों पर भूमाफिया, नेता, नौकरशाह लगातार अतिक्रमण कर रहे थे, संशोधन होने के बाद अब उनका डर भी खत्म हो गया, इसकी आड़ में सभी अपने अवैध निर्माण की स्वीकृति करा लेंगे। सरकार पहले हुए अतिक्रमण, अवैध कब्जों को स्वीकृति दे रही है यह अरावली को समाप्त करने वाला संशोधन साबित होगा।