फरीदाबाद (म.मो.) सैनिक कॉलोनी निवासी तरुण चोपड़ा ने करीब दो वर्ष पहले सेक्टर 16ए स्थित मैट्रो अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा की गई लापरवाही की शिकायत जि़ला नेग्लिजेंस बोर्ड को की थी। जि़ले के सिविल सर्जन की अध्यक्षता में बनाये गये इस बोर्ड में चार सरकारी व चार प्राईवेट डॉक्टर होते हैं। इस बोर्ड का कत्र्तव्य है कि किसी भी डॉक्टर अथवा अस्पताल द्वारा, किसी मरीज़ के साथ की गई लापरवाही से सम्बन्धित शिकायतों को सुन कर दोषियों के विरुद्ध उचित कार्यवाही करे। बीते चार साल में आई इस तरह की 88 शिकायतें सुनने का नाटक इस बोर्ड ने किया है। हैरानी की बात है कि इस बोर्ड को किसी भी शिकायत में कभी कोई डॉक्टर या अस्पताल दोषी नहीं मिला। बेशक समय-समय पर इस बोर्ड के चेयरमैन व सदस्य आदि बदलते रहे हैं लेकिन सभी का रवैया एक जैसा रहा है, यानी किसी को भी कभी कोई दोषी नहीं मिला। इस बोर्ड द्वारा शिकायतकर्ता को बार-बार बुलाया जाता है जबकि आरोपित की ओर से यदा-कदा ही कोई उपस्थित होता है। पांच-सात चक्कर काटने के बाद जब शिकायतकर्ता थक चुका होता है तो यह बोर्ड उसे कोई रिपोर्ट देने की बजाय बताता है कि रिपोर्ट सीधे चंडीगढ़ मुख्यालय भेज दी गई है। कुछ दिन चक्कर काटकर वह थक-हार कर बैठ जाता है।
लेकिन तरुण चोपड़ा थक-हार कर बैठने वालों में से नहीं थे। उनके कड़े तेवर एवं पैरवी के चलते बोर्ड ने उनके पांच चक्कर लगवाने के बाद मुख्यालय को लिख भेजा कि बोर्ड इस लायक नहीं है कि इस शिकायत का निवारण कर सके। इस पर यह मामला दिनांक 3.1.2022 को मेडिकल कॉलेज रोहतक को भेज दिया गया। वहां से 28.2.2022 को रिपोर्ट सिविल सर्जन $फरीदाबाद को भेज दी गई। इस रिपोर्ट में बड़ा स्पष्ट, बिंदुवार, संबंधित डॉक्टरों की लापरवाही का ब्योरा दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद सिविल सर्जन विनय गुप्ता दोषियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। इस बाबत चोपड़ा द्वारा मुख्यालय में शिकायत करने पर, वहां से डायरेक्टर जनरल हेल्थ डॉक्टर वीणा द्वारा तीन पत्र सिविल सर्जन को लिखे जा चुके हैं, लेकिन ढाक के वही तीन पात।
गुड गवर्नेंस का ढोल पीटने वाली खट्टर सरकार पर सवाल बनता है कि कोई भी अधिकारी ऐसे कैसे किसी रिपोर्ट पर कुंडली मार कर बैठ सकता है? यदि कोई अधिकारी ऐसा करता भी है तो उसके वरिष्ठ अधिकारी क्यों नहीं उसका संज्ञान लेकर उचित कार्यवाही करते?