लूट कमाई के लिये पंचायत चुनाव में भारी खर्च

लूट कमाई के लिये पंचायत चुनाव में भारी खर्च
December 05 01:43 2022

फरीदाबाद (म.मो.) राजनीति अब पूरी तरह से एक ब्यवसाय बन चुकी है। लोकसभा का चुनाव लडक़र सांसद बनना हो या विधानसभा का चुनाव लडक़र विधायक बनना हो अथवा ग्राम पंचायत का चुनाव लडक़र सरपंच बनना हो, लक्ष्य एक ही रहने लगा है, लूट कमाई। कुछ दशकों पूर्व तक लूट कमाई के लिये केवल सांसद अथवा विधायक ही सक्षम माने जाते थे, परन्तु अब तो सरपंच का पद भी अच्छी-खासी लूट कमाई का पद माना जाने लगा है।

सरपंच बनने के लिये अब लोग करोड़ों रुपये खर्च करने में नहीं हिचक रहे। किसी गांव द्वारा सर्वसम्मति से सरपंच बनाये जाने पर उसे सरकार द्वारा पांच लाख रुपये की विशेष ग्रांट देने की घोषणा की गई थी। इसके जवाब में कई गांवों से निर्विरोध सरपंच बनाये जाने पर लोगों ने अपने पल्ले से करोड़ों रुपये पंचायत फंड में दान करने की घोषणा तक कर डाली।
पलवल जि़ले के गांव दीघोट में इस पद के लिये तिकोना मुकाबला हुआ। दो उम्मीदवारों ने 10-15 लाख तक खर्च किये और हार गये। लेकिन ललित के भाई प्रवीन हवलदार ने एक करोड़ से ऊपर खर्च करके अपने भाई को सरपंच चुनवा लिया।

प्रवीन मेवात जि़ले में हरियाणा पुलिस का हवलदार है। गांव में दोनों भाइयों की अच्छी-खासी खेती-बाड़ी भी है, लेकिन इतनी भी नहीं कि करोड़ों रुपये चुनाव पर खर्च कर दिये जायें। जो आदमी पल्ले से इतनी बड़ी रकम खर्च करेगा तो वह ब्याज सहित इसकी वसूली भी तो इसी पद से करेगा। जाहिर है ग्रमीण विकास के लिये आने वाली सरकारी धन में वह पूरी सेंधमारी करेगा। वास्तव में इस तरह की सेंधमारी का प्रचलन खुलेआम देखा जा रहा है जिससे प्रेरित होकर अधिक से अधिक धन खर्च करके लोग इस पद को पाने की होड़ में जुट जाते है।

गौरतलब है कि इस तरह की सेंधमारी अथवा लूट कमाई कोई भी सरपंच अकेला अपने बूते नहीं कर सकता। इसमें जहां एक ओर वीडियो से लेकर चंडीगढ़ में बैठे डायरेक्टर तक सभी अधिकारी शामिल रहते हैं तो वहीं दूसरी ओर विधायक से लेकर मंत्री व मुख्यमंत्री का भी पूरा संरक्षण रहता है। दरअसल राजनेता इस प्रकार से सरकारी पैसे के बल पर अपने राजनीतिक समर्थक पालते हैं। सरकारी धन में सेंधमारी करके अपराधी बन चुके ये लोग किसी भी मुद्दे पर सरकार का विरोध नहीं कर सकते बल्कि सरकार के समर्थक बने रहने में ही अपनी भलाई मानते हैं।

पूरे राज्यभर में गिनती के चंद गांव ही ऐसे होंगे कि जहां के सरपंच पूरी ईमानदारी के साथ काम करने के लिये चुने गये होंगे और इन लोगों ने चुनाव पर कोई पैसा भी खर्च नहीं किया होगा। यह काम मतदाता के सोचने समझने का है कि जो व्यक्ति चुनाव जीतने के लिये इतना भारी-भरकम खर्च कर रहा है तो क्यों कर रहा है? मतदाता को समझ लेना चाहिये कि वह इस खर्चे की भरपाई तो उन्हीं की जेब काट कर करेगा।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles