फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। इस शहर में तैनाती के दौरान लूट कमाई करने के आरोपों में अनेकों आपराधिक मुकदमों में उलझे तत्कालीन सीनियर टाउन प्लानर सतीश पाराशर को चंडीगढ़ मुख्यालय के कोने में बैठा दिया गया था। लेन देन की कला में माहिर पाराशर ने वहां जुगाड़बाजी करके गुडग़ांव नगर निगम का चीफ टाउन प्लानर पद हासिल कर लिया। दस्तावेजों में तोड़ मरोड़ कर भू माफिया और प्रॉपर्टी डीलरों का फायदा पहुंचाने की उसकी कला के दीवाने स्थानीय राजनेता उसे दोबारा फरीदाबाद बुलाना चाह रहे थे लेकिन गुडग़ांव जैसे बड़े शहर की मलाई काटने की लालच में वह लौटना नहीं चाह रहा था। ऐसे में राजनेताओं ने बेहतर लूट कमाई का रास्ता निकालते हुए उसे नगर निगम फरीदाबाद का अतिरिक्त चार्ज दिलवा दिया। राजनेताओं के इस अहसान का बदला वह भ्रष्टाचार के अपने हुनर के जरिए उन्हें लाभ पहुंचा कर चुका सकता है।
राजनेता, भूमाफिया, प्रॉपर्टी डीलरों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये के वारे न्यारे करने में माहिर सतीश पाराशर का सरकारी रिकॉर्ड में हेरफेर, फर्जी दस्तावेज तैयार करने, नियमों को दरकिनार कर सीएलयू, प्लॉट अलॉट करने जैसे भ्रष्टाचार का काफी पुराना इतिहास है।
ओल्ड नगर निगम में संयुक्त आयुक्त पद पर रहने के दौरान वर्ष 2013 में उसने बसेलवा कॉलोनी में डेयरी के लिए हितेंद्र नाम के युवक को अलॉट प्लाट फर्जी जीपीए लगाकर मातहत महिला कर्मचारी सुनीता डागर के नाम ट्रांसफर कर दिया था। इस मामले में ओल्ड थाने में सतीश पराराशर के खिलाफ केस दर्ज किया गया।
इसी तरह उसने एसटीपी रहते हुए जनवरी 2014 में बिना किसी दस्तावेज के ही हार्डवेयर कंपनी की जमीन के नौ सीएलयू किए थे। जांच में पाया गया था कि सीएलयू के लिए जरूरी दस्तावेज जैसे रजिस्ट्री की प्रति, प्लॉट का रकबा व चौहद्दी निर्धारण और सबसे प्रमुख सीएलयू के लिए तहसीलदार का अनुमोदन पत्र कुछ भी नहीं लगाया गया था। विजिलेंस जांच में दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ अगस्त 2019 में केस दर्ज कराया गया था। इस मामले की जांच जारी है।
अपने कार्यकाल में सतीश पाराशर ने इस तरह के कई अन्य कार्य किए थे लेकिन वह अप्रैल 2018 में एक बार और फंसे थे। तब उन्होंने सूरजकुंड के प्रतिबंधित इलाके के पांच फार्म हाउस मालिकों को लाभ पहुंचाने के लिए लेटर ऑफ इंटेंट (एलओआई) यानी सशर्त सहमति पत्र जारी किया था। इस इलाके की जमीन का सीएलयू नहीं हो सकता था। ऐसे में सतीश पाराशर ने मोटा सुविधा शुल्क वसूलकर इन पांच फार्म हाउस मालिकों को एलओआई जारी कर दिया था। हालांकि यह मलाई उन्होंने अकेले नहीं खाई होगी लेकिन मामला सामने आने पर अधिकारियों और सरकार ने अपनी फजीहत बचाने के लिए उन्हें निलंबित कर मुख्यालय चंडीगढ़ अटैच कर दिया। विभिन्न पदों पर रहने के दौरान कमाई गई ढेर सारी संपत्ति का कुछ हिस्सा ऊपर खिसका कर उन्होंने गुडग़ांव के सीनियर टाउन प्लानर का अधिक कमाई वाला पद हासिल कर लिया।
फरीदाबाद रहते हुए उन्होंने दस्तावेजों में हेरफेर कर कई राजनेताओं के चहेतों के लिए सूरजकुंड-अरावली के प्रतिबंधित वन क्षेत्र में फार्म हाउस, बैंकट हॉल के लिए जमीन का बंदोबस्त किया था। यही नहीं कई बड़े बिल्डरों से मिलीभगत कर नगर निगम को करोड़ों रुपये राजस्व का चूना भी लगाया। इन्हीं राजनेताओं ने अपने चहेते बिल्डर, प्रॉपर्टी डीलर व भूमाफिया के लिए होनहार सतीश पाराशर को सीटीपी पद पर दोबारा बुलवाया है। फरीदाबाद नगर निगम में करीब एक दशक तक काम करने के कारण उन्हें यहां की परिस्थितयों की पूरी जानकारी है यानी कहां की सीएलयू के कितने रेट हैं, दलाल कौन हैं, किस अधिकारी तक कितना हिस्सा देना होता है।
माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार में डूबे नगर निगम की तरकश में एक और बेहतरीन तीर आ गया है जो अधिकारियों से लेकर नेताओं और भूमाफिया सबको साधने में महारत रखता है।