फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) डबल इंजन की सरकारों में महंगाई-बेरोजगारी के दौर से गुजर रहे नाई, कुम्हार, माली, धोबी, चटाई बुनने, झाड़ू बनाने जैसे छोटे हुनर रखने वाली महिला कारीगरों को रोजगार शुरू करने से पहले नगर निगम के बेहिस अधिकारियों की बेरुखी झेलनी पड़ रही है। पीएम विश्वकर्मा योजना का लाभ पाने के लिए सैकड़ों महिलाओं को सोमवार को कड़ी धूप में ऑपरेटर का घंटों इंतजार करना पड़ा। केंद्र पर इन महिला अभ्यर्थियों के लिए न तो पंखे की व्यवस्था की गई थी न पीने के पानी की।
काम नहीं काम का ढिंढोरा पीटने में विश्वास रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथ का हुनर रखने वालों को स्वरोजगार दिलाने के नाम पर 17 सितंबर 2023 को पीएम विश्वकर्मा योजना की घोषणा की थी। राजनीतिक जानकारों के अनुसार मोदी ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर छोटे और बेरोजगार कारीगरों का लुभाने के उद्देश्य से ही की थी। इस योजना में हाथ का हुनर रख कर रोज खाने कमाने वाले 18 प्रकार के कारीगरों को रखा गया था। समझने वाली बात ये है कि इस योजना में कुम्हार को बर्तन बनाने, लोहार को लोहे का सामान व औजार बनाने, नाई को बाल काटने-दाढ़ी बनाने, माली को फूलों की माला बनाने, धोबी को कपड़े धोने की यानी जो पहले से ही अपने काम में पारंगत हैं उन्हें ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की गई थी। पंद्रह दिन के प्रशिक्षण में अभ्यर्थी को पांच सौ रुपये प्रतिदिन दिया जाता है। औजार खरीदने के लिए 15,000 रुपये देने का प्रावधान है।
इस स्कीम का लाभ पाने के लिए नगर निगम की ओर से अभ्यर्थियों से आवेदन मांगे गए थे। सोमवार को महिला अभ्यर्थी नगर निगम के एनआईटी पांच स्थित सामुदायिक सेवा केंद्र में बनाए गए कार्यालय में फार्म जमा करने सुबह नौ बजे से पहुंचने लगी थीं। दस बजते बजते सौ से अधिक महिला अभ्यर्थी इकट्ठा होकर लाइन में लग गईं लेकिन फार्म जमा करने के लिए न तो वहां कोई अधिकारी आया और न ही कोई कर्मचारी, या कंप्यूटर ऑपरेटर। महिलाएं धूप में अधिकारी के आने का इंतजार करती रहीं। केंद्र में पानी पीने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी इसलिए महिला अभ्यर्थियों को प्यासे ही परेशान होना पड़ा।
सवा बारह बजे एक समाजसेवी वहां पहुंचे और धूप में तपती महिलाओं को देख कर उन्होंने सोशल मीडिया पर वहां की दुर्दशा का वीडियो वायरल कर दिया और नगर निगम के कौशल रोजगार के नोडल अधिकारी द्वारका प्रसाद को मैसेज कर समस्या से अवगत कराया। बताया जाता है कि इसके बावजूद करीब डेढ़ बजे एक कर्मचारी पहुंचा और उसने फार्म जमा करने शुरू किए। हर फार्म में वह इतने सवाल जवाब कर रहा था कि एक एक फार्म जमा करने में चार से पांच मिनट लग जाते। इस दौरान महिलाएं गर्मी और प्यास से बेहाल होते हुए अपनी बारी का इंतजार करने को मजबूर रहीं।
दरअसल, निगमायुक्त मोना ए श्रीनिवास हों या द्वारका प्रसाद जैसे निगम अधिकारी, ये सब वातानुकूलित कमरों में बैठ कर काम करते हैं इसलिए उन्हें धूप में खड़ी सैकड़ों बेरोजगार महिलाओं की गर्मी-प्यास और दर्द का अहसास नहीं होता। इन अधिकारियों को लगता है कि वो जनता को सेवा देने के लिए इस पद पर नहीं आए हैं बल्कि जनता पर शासन करने आए हैं।