क्या नरेंद्र मोदी रिलायन्स को ईस्ट इंडिया कंपनी बनाने के लिए ‘अग्निपथ’ पर देश को धकेल रहे हैं?

क्या नरेंद्र मोदी रिलायन्स को ईस्ट इंडिया कंपनी बनाने के लिए ‘अग्निपथ’ पर देश को धकेल रहे हैं?
July 13 19:06 2022

विवेक कुमार
रविश कुमार की फेसबुक पोस्ट अग्निवीर को लेकर मेरी एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर से बात हुई लगभग दो वर्ष पुरानी बातचीत को याद दिला दिया जिसके सिरों को जोडऩे पर इस योजना के वे सभी जवाब मिलते दिखाई दे रहे हैं। जिन्हें सरकार डिफेन्स फोर्सेस की साख की आड़ में छुपाने का प्रयास कर रही है।

अग्निवीर योजना को लेकर पक्ष और विपक्ष के लगभग सभी बयान, प्रेस कॉन्फ्रेंस में तर्कों और दावों को सुना। रविश कुमार के प्राइम टाइम में थोड़ा बहुत जो दिखाया उसे छोड़ दें तो कहीं भी उस बात की सुगबुगाहट नहीं सुनाई दी जिसके तार इस लेख में जोड़े जाने का प्रयास किया गया है।

वर्ष 2020 जून 17 को मैं दिल्ली में डीजीपी की पोस्ट से सेवानिवृत हुए भारत के एक नामी सीनीयर आईपीएस अफसर के घर ठहरा हुआ था। नाश्ते की मेज पर उन्होंने बताया कि एक जूनियर आईपीएस का फोन आया है जो एक सिक्युरिटी एजेंसी जिसका नाम कैवलेरी सिक्युरिटी ट्रेनिंग कंपनी है को ज्वाइन कर रहा है और इसी सिलसिले में मुझसे भी आग्रह किया गया है कि मैं भी बतौर कौन्सिल मेंम्बर ज्वाइन करूँ। इसी सिलसिले में एक-आध दिन बाद मीटिंग है।

बात आई गई हो गई, कुछ दिनों बाद फिर मिलना हुआ तो डीजीपी साहब ने बताया कि उस सिक्युरिटी कंपनी को उन्होंने ज्वाइन नहीं किया क्योंकि वो तो सरासर एक फ्रॉड है। कैसे? उन्होंने बताया कि कैवेलरी सिक्युरिटी एजेंसी ने दावा किया है कि अपनी ट्रेनिंग अकादमी में वो जिन लोगों को ट्रेन करेंगे उनको 100 प्रतिशत रोजगार भी उपलब्ध होगा। कैसे होगा, कंपनी के चेयरमैन इंदरजोत ओबेरॉय ने कहा कि उनकी इस सरकार में अच्छी पैठ है, जहां भविष्य में यह नियम बन सकता है कि जिन्हें भी सिक्युरिटी गार्ड रखने होंगे उन्हें एक खास किस्म के सर्टिफिकेट होल्डर्स को ही गार्ड के रूप में रखना होगा और वही सर्टिफिकेट हम अपनी अकैडमी में इन गार्ड्स को देंगे।

मीटिंग में शामिल एक अन्य पूर्व आईपीएस ने पूछा कि अकैडमी को चलाने का खर्च आप कैसे वहन करेंगे तो ऑबराय ने बताया कि ट्रेनिंग प्रक्रिया में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों से प्रति अभ्यर्थी 75 हजार रुपये की फीस ली जाएगी जिसमे आर्मी से सेवानिवृत हुए अफसरों की बतौर ट्रेनर्स तनख्वाह, और अन्य खर्चे उठाए जाएंगे। इसी के साथ जिला, ब्लॉक और आंचलिक लेवल पर भी कैवेलरी के सेंटर खोले जाएंगे और साथ ही लोगों को इसकी फ्रेंचाईसी भी दी जाएगी और उनसे भी अपना शेयर लिया जाएगा। अपने प्रोजेक्ट को बताते हुए इंदरजोत ऑबरॉय ने अति उत्साह में यह भी कहा कि अगर कुछ नहीं हुआ तो हमारे पास इतना डाटा इक_ा हो जाएगा जिसे हम रिलाइन्स और दूसरे कॉर्पोरेट्स को बेच सकते हैं। (विदित हो कि आज ही अदानी को आंध्र प्रदेश में डाटा सेंटर बनाने की मंजूरी मिली जिसमे वह 14 हजार करोड़ से अधिक इन्वेस्ट करेंगे)

इसके बाद डीजीपी साहब ने मेरे आगे एक पूरा मेल और कंपनी का प्रोस्पेक्टस रख दिया और कहा कि तसल्ली से पढ़ लेना। जब खोजबीन की तो कई तथ्य सामने आए जिन्हे आज दो साल बाद अग्निवीर से जोड़ा जाए तो हम पाएंगे कि यह तथ्य दो ब्लॉक की तरह आपस में एकदम सटीक बैठते हैं। इन तथ्यों को कुछ छुपाये हुए तथ्यों के साथ मिलाकर देखने पर असल तस्वीर बनती है। इसी क्रम में एक और जानकारी जरूरी है।

17 अगस्त वर्ष 1998 को रिलायन्स ने एक कंपनी का गठन किया जिसका नाम है ग्लोबल कॉर्पोरेट सिक्युरिटी जिसके तहत एक अकादमी का गठन हुआ, रिलायन्स सिक्युरिटी एण्ड रिस्क मैनेजमेंट अकेडेमी। इस सिक्युरिटी कंपनी ने अपनी अकादमी में सुरक्षा अधिकारी तैयार करने शुरू किये और हर वर्ष इसमें 60 अधिकारी तैयार किये गए। प्रारम्भिक रूप से इस ट्रेनिंग प्रोग्राम को चलाने का जिम्मा कैप्टन वी.वी. भट्ट को दिया गया और बाद में अन्य सैकड़ों सैन्य अफसरों ने अपनी सेवाएं दीं। इस अकादमी में शामिल होने के लिए अभ्यर्थी के पास एनसीसी का सर्टिफिकेट सी या बी होना जरूरी है, अन्यथा राज्य या राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी होना जरूरी है। इस अकैडमी में भर्ती के लिए पुरुषों की लंबाई 5 फुट 9 इंच और महिलाओं की 5 फुट 6 इंच होनी अनिवार्य है, साथ ही स्नातक 50 प्रतिशत अंकों से किया हो। जीसीएस की साइट पर बताया गया है कि ट्रेनिंग के दौरान ही सालाना 3.75 लाख रुपये का मानदेय इन 60 अधिकारियों को दिया जाएगा। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद इन्हें रिलायन्स की ही साइट्स पर ड्यूटी अफसर के तौर पर तैनाती का प्रावधान है। यह अकैडमी महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के एक पेट्रोकैमिकल प्लांट में चलाई जाती है जो रिलायन्स का ही है।

अब यहाँ तक तो ऐसी कोई आपत्तिजनक बात नहीं दिखती है पर क्या अफसरों को तैयार करने वाली इस रिलायंस को अब उसके अधीन काम करने वाले सिपाही भी चाहिए? कडिय़ों को जोड़े और सेना के आचरण को जानने वाले जानते होंगे कि सेना में आदेश की पालना एक बढ़ा फैक्टर है। आदेश अफसर का होता है पालना सिपाही को करनी है। इसी क्रम में ऐसा दिखता है कि अफसर तो रिलायन्स ने अपने मिजाज के तैयार किये और सिपाही तो खैर सिपाही है, आदेश मानने की ट्रेनिंग फौज से अधिक कहीं और नहीं दिलाई जा सकती। मतलब आदेश रिलायन्स का होगा पालना सिपाही करेगा, पर आदेश क्या होगा ये भविष्य के गर्भ में है।

कैवेलरी सिक्युरिटी कंपनी के मॉडल में अभ्यर्थियों को अपनी ही ट्रेनिंग के लिए 75 हजार रुपये जमा कराने थे जो योजना शायद सिरे न चढ़ सकी। तो क्या उस खर्च को खुद पर न आने देने के लिए पूँजीपतियों ने अपनी कंपनियों के लिए सिपाही का खर्च सरकार पर डाल कर अपने प्लान की इतिश्री कर ली है? और सरकार इन्ही पूँजीपतियों के लिए अग्निवीर की आग के धुएं में सब छुपाने का प्रयास कर रही है?

जनरल वी.के. सिंह ने कहा कि फौज कोई रोजगार कार्यक्रम नहीं है। इस बात से पूर्णतया सहमत होते हुए वी.के. सिंह से पूछा जाना चाहिए तो फिर इस योजना को सरकार ला ही क्यों रही है? जिन 46 हजार लोगों को सरकार प्रशिक्षित करेगी उनपर सेना बजट का अच्छा-खासा पैसा खर्च होगा? तो क्या महज 4 साल के लिए सेना अपनी ऊर्जा और बजट खर्च करके पूँजीपतियों के हाथ अपने सैनिक बेच देगी? क्या यह भी मजह इत्तेफाक है कि श्री श्री रविशंकर, रामदेव सरीखे बाबा जो असल में उद्योगपति ही हैं इस योजना के समर्थन में विरोधियों को देशद्रोही बता रहे हैं। क्या महिंद्रा, टाटा, और देश के अन्य उद्योगपतियों ने केवल मोदी समर्थन के लिए इस योजना का समर्थन कर दिया है?

कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने कहा कि “मोदी खुद को डॉ. डैंग समझते हैं और जनता को चूहा जिसमें सूई लगा कर देखते हैं कितना उछलेगा। सुन कर बात पर हंसी या सकती है पर मोदी इतने बेवकूफ नहीं जो केवल चूहे की उछाल देखने के लिए सूई पर खर्च कर दें, साथ ही विदित हो कि सेना में जाने वाले मोदी का असल वोट बैंक भी हैं। तो मोदी इतने कच्चे व्यापारी नहीं जो सौदा इतना महंगा करें और हासिल कुछ नहीं। उनके खून में व्यापार है, इसका दावा खुद मोदी कर चुके हैं।

मेरी इस बात पर एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि तो क्या 46 हजार को रिलायन्स में भर्ती किया जा सकेगा, ऐसा संभव तो नहीं दिखता। इस वाजिब सवाल को एक बार फिर पूंजीवादी गणित से ही समझा जा सकता है। एक दौर आया था जब इस देश में इंजीनीयर बनाने के लिए कॉलेज कुक्कुरमुत्ते की तरह उग आए थे पर क्या सच में इतने इंजीनीयर किसी कंपनी या कुल मिलाकर कंपनियों में खपे? जवाब है नहीं, तो किसलिए ये इंजीनीयर बनाए जा रहे थे? दरअसल बेंचस्ट्रेन्थ एक शब्द है जो मैदान में खड़े खिलाड़ी पर दबाव बनाने का माध्यम है। आपके पास कम से कम 5 गुना की अगर नगरी सिर्फ इस ताक में खड़ी है कि कब किसी को निकाला जाए तो मुझे मौका मिले तो ये नफरी किसी कंपनी या संस्था को इसी बात की बढ़त देती है कि बेटा तुम नहीं तो कोई और। काम करना है तो मेरे तय दाम पर काम करो अन्यथा बाहर तुम जैसे बहुत खड़े हैं। यही बात काम करने वाला भी जानता है और अपने अधिकारों की पुडिय़ा कुएं में डालने के बाद ही बड़ी-बड़ी कंपनियों में इंजीनीयर का पद वफादारी से संभालता है। अग्निवीर तो फिर भी अनुशासन सीख कर आएगा तो उसे तो शायद यह दबाव भी महसूस न हो।

हमारे देश में भावनाएं आहत होने का फैशन है जिसके तहत भाजपा नेता विजयवर्गीय की बात जिसमे उन्होंने ‘अग्निवीरों को भविष्य का भाजपाई चौकीदार बताया है’ बेशक विरोध झेल रही है पर उस बात में 100 प्रतिशत सच्चाई है। इसमें ऐसी कोई भी बात नहीं जो भविष्य के गर्त में छुपी है, साफ-साफ दिखाई देने वाली चीज भी अगर साफ न दिखाई दे वह भी तब जब सरकार का नेता ही दिखा रहा हो तो उसमे दोष आँख का नहीं अक्ल का है।

पूरे प्रकरण में केवल एक बार चौंकाने वाली और शर्मनाक है और वह है डिफेन्स अधिकारियों का डिफेन्स की इज्जत को मटिया मेट करना। रक्षा अधिकारियों ने अपनी रीढ़ को केचुए में तब्दील करते हुए न केवल भाजपा का प्रवक्ता बनने की शर्मनाक हरकत की बल्कि इसी क्रम में नौजवानों को धमका कर गुंडई का भी नमूना पेश किया। जबकि एक आत्मसम्मानी सैनिक के रूप में सेना के अधिकारियों को सरकार से दो टूक कहना चाहिए था कि पॉलिसी लेवल की बात को सेना कैसे जस्टीफाई कर सकती है और क्यों करे? जबकि रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय और रक्षा सचिव को इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के सामने बोलना चाहिए और प्रधानमंत्री को या रक्षा मंत्री को जनता के सामने। इसी क्रम में आज एक नए सिपाही एनएसए अजीत दोभाल को मोदी ने मैदान में उतार दिया।

खैर, सब कडिय़ों को मिला कर देखने पर इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि राज्य सभा में या रिलायन्स जैसी कंपनियों की टॉप मोस्ट पोस्ट पर सेवानिवृत होने के बाद सेना से या अन्य सरकारी विभागों से लोगों को क्रीम पोस्टिंग नहीं दी जाएगी। खास तौर पर पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई के राज्य सभा जाने के बाद तो इस बात की संभावना प्रबल ही है। जबकि अग्निवीरों के पास सेना की हरी वर्दी के बाद गार्ड की नीली वर्दी पहनने की मजबूरी और रिलायन्स से लेकर महिंद्रा, बाबा रामदेव और श्रीश्री तक के पास सुनहरा अवसर है कि वे बिना पैसा लगाए ट्रेंड मैन पावर हथियाएंगे। बचे-खुचे भारत के पास डर है कि ईस्ट इंडिया कंपनी रिलायन्स की शक्ल में तो नहीं आ जाएगी?

बेरोजगारी बढ़ाना लक्ष्य बना लिया है सरकार ने केवल रोजगार पैदा करने के लिये कोई योजना अथवा प्रोजेक्ट बनाना किसी भी सरकार का लक्ष्य नहीं हो सकता। लक्ष्य तो जनता को कुछ सेवायें उपलब्ध कराने के लिये योग्य अभ्यार्थियों को भर्ती करना होता है। परन्तु यह सरकार आवश्यक सेवाओं के लिये भी भर्तियां नहीं कर रही है।

इसका निकृष्टतम उदाहरण हरियाणा सरकार का ईएसआई हेल्थकेयर विभाग है। इसमें आज के दिन डॉक्टरों व अन्य स्टा$फ सहित दस हजार पद रिक्त पड़े हुए हैं। ईएसआई कार्पोरेशन की नियमावली में लिखे नियमों के अनुसार प्रति दो हजार बीमाकृत मज़दूरों पर एक डॉक्टर तथा पांच अन्य स्टा$फ की सेवायें उपलब्ध कराने का नियम है। इसके विपरीत हरियाणा के 25 लाख 10 हजार बीमाकृत मज़दूरों के साथ सरकार क्या कर रही है, जानना जरूरी है।

डॉक्टर होने चाहिये 1250, जबकि डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पद ही 200 हैं इनमें से भी आधे यानी कि 100 पद रिक्त पड़े हुए हैं। इसी तरह एक डॉक्टर के साथ पांच अन्य स्टा$फ के $फार्मूले के अनुसार 6250 अन्य स्टा$फ होना चाहिये। लेकिन इसके विपरीत स्वीकृत पद ही केवल 600 हैं और इनमें से भी आधे यानी 300 पद खाली पड़े हुए हैं। लब्बो-लुआब यह निकला कि 1250 डॉक्टरों की जगह तो मात्र 100 डॉक्टर तथा 6250 अन्य स्टा$फ की जगह मात्र 300 से ही बीमाकृत मज़दूरों को चिकित्सा सेवा देने के नाम पर बरगलाया जा रहा है।

उक्त स्थिति तो है डिस्पेंसरियों की; अब आइये इस विभाग के चार अस्पतालों की ओर। इन अस्पतालों के लिये विषेषज्ञ डॉक्टरों के कुल 43 पद स्वीकृत हैं इनमें से 16 पद रिक्त हैं यानी कुल उपलब्ध विशेषज्ञ 27 हैं और इनमें से भी अधिकांश को साधारण मेडिकल अ$फसर की सीट पर बैठा रखा है। मेडिकल अ$फसरों के कुल स्वीकृत पद 49 हैं जिनमें से 14 रिक्त पड़े हैं। नर्सों के 89 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 22 रिक्त पड़े हैं। पैरामेडिकल के 169 पद में से मात्र 86 पद भरे हुए हैं यानी कि 73 पद खाली पड़े हैं। यहां एक खास बात यह भी है कि स्वीकृत पद ही कुल जरूरत के एक चौथाई ही हैं और ये भी पूरे भरे नहीं हैं। ऐसे में पृथला डिस्पेंसरी में जहां 22 हजार बीमाकृत मज़दूर दर्ज हैं वहां केवल एक ही डॉक्टर नियुक्त है जबकि होने चाहिये 10। हिसार में जहां 1 लाख बीमाकृत हैं वहां 50 डॉक्टरों की जगह केवल 11 ही उपलब्ध कराये गये हैं।

यहां विशेष गौरतलब बात यह भी है कि इस स्वास्थ्य सेवा को चलाने के लिये ईएसआई कार्पोरेशन मज़दूरों से उनके वेतन का चार प्रतिशत हर महीने वसूल करती है। इस वसूली के बदले उसने मज़दूरों को जो सेवायें देने का करार अपनी नियमावली में लिख रखा है यहां उसकी खुली अवहेलना हो रही है। उक्त पदों पर होने वाली नियुक्तियों का भुगतान कार्पोरेशन अपने खजाने में भरे बैठी है। मज़दूरों को वांछित सेवायें न देने के चलते आज कार्पोरेशन के खजाने में 1 लाख 41 हजार करोड़ रुपये की रकम जमा हुई पड़ी है। इसके बावजूद भी भर्तियां न करके सरकार यह स्पष्ट संदेश दे रही है कि उसका असल उद्देश्य जहां एक ओर बेरोजगारी बढ़ाना है वहीं दूसरी ओर मज़दूरों को चिकित्सा सेवाओं से वंचित रखना भी है।

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