क्या खाया था?

क्या खाया था?
March 04 03:42 2024

डॉ. रामवीर
अस्वस्थ होने पर जब चिकित्सक के पास जाते हैं तो डाक्टर का पहला प्रश्न यही होता है क्या खाया था ? यानि व्याधि का कारण प्राय: भोजन के गुण दोष में निहित होता है। भोजन यदि स्वच्छ, सुपाच्य, ताजा और पौष्टिक है तो व्याधि नहीं होगी और वही भोजन यदि दूषित, गरिष्ठ, बासी व अपौष्टिक है तो व्याधिजनक होगा। रोग दो प्रकार के होते हैं व्याधि और आधि। व्याधि शारीरिक रोग और आधि मानसिक रोग। क्या खाया था पूछ कर डाक्टर व्याधि को पहचान लेता है और तदनुसार दवाई बता देता है।

आधि अर्थात् मानसिक रोग की पहचान चिकित्सक क्या पढा था/क्या सुना था/क्या देखा था आदि प्रश्नों से कर सकता है। यहां मानसिक रोग से अभिप्राय स्किजोफ्रीनिआ या बाई पोलर जैसे गम्भीर मनोरोगों से नहीं सामान्य मानसिक असन्तुलन से है। उन्माद और विक्षिप्तता असामान्य मनोदशा के दो स्तर हैं, पहली प्रारम्भिक और दूसरी एडवांस्ड।

कुछ दिन पूर्व एक घटना सामने आई थी, उसकी अब कोई चर्चा नहीं है – न कोई पूछ रहा न कोई बता रहा कि आगे क्या हुआ। कारण समझा जा सकता है कि ऐसी घटनाओं की चर्चा से उन लोगों को असुविधा होती है जिन्हें ऐसी घटनाओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कारण कहा जा सकता है। मुम्बई के निकट चलती ट्रेन में आर पी एफ के ऑन ड्यूटी जवान चेतनसिंह ने चार लोगों को सर्विस राइफल से शूट कर दिया। पहले अपने ही वरिष्ठ अधिकारी मीणा साहब को और फिर भिन्न कम्पार्टमेन्ट में जा कर तीन मुस्लिम यात्रियों को। मीणा साहब को इस लिए कि उनसे बहस करते हुए (बहस के विषय का अनुमान किया जा सकता है) वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा और अन्य तीन यात्रियों की बढी दाढ़ी और वेशभूषा ही चेतनसिंह के लिए उन्हें वध्य मानने के लिए काफी थी। कपड़ों से पहचानने की बात मोदी जी कह चुके हैं। अब यदि चेतनसिंह के मोबाइल को ईमानदारी से चैक किया जाए (जो किया भी गया है पर फाइंडिंग्स को बताने में एहतियात बरती गई है, आखिर है तो वह उन्ही का सहकर्मी जिन पर खोजने और बताने का उत्तरदायित्व है) तो वह उन सब भडक़ाऊ वीडियो/ऑडियो से भरा पाएगा जिन्हें लोग बिना सोचे विचारे फोर्वार्ड करते रहते हैं। इनमें अधिकांश फेक होते हैं जिनका उद्देश्य ही जहर फैलाना होता है। तो क्या पढ़ते/सुनते/देखते हो के उत्तर में यदि फेक वीडियोज का पता चले तो उन्हें ही असामान्य घृणा और तज्जनित मानसिक असन्तुलन का कारण मानना चाहिए। घृणा कहीं भी हो घृणित हत्याएं करवाएगी ही।
8 फरवरी 2024 के मुखपृष्ठ पर पहला समाचार है ‘अमेरिका में 38 दिनों में 7 भारतीय छात्रों की मौत, अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं’। ये मौतें अधिकतर ओहिओ, इंडियाना और कनैक्टिकट आदि उन राज्यों में ज्यादा हुई हैं डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी हावी है। भारत में घृणा की जिस राजनीति में भाजपा को भविष्य दिखाई देता है, अमेरिका में घृणा की उसी राजनीति के शिकार हो रहे हैं भारतीय छात्र। डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकन भक्तों को भारतीय उनकी नौकरी छीनने वाले दिखते हैं।

विश्व के इतिहास का अध्ययन अनेक दृष्टि से किया जा सकता है। किस युग में किस कारण कहां क्या हुआ पर दृष्टि डालें तो समयविशेष और स्थानविशेष में सकारात्मक या नकारात्मक मनोभावों की प्रबलता मुख्य कारण देखी जा सकती है। स्वर्ग नरक/ हैवन हैल/ जन्नत जहन्नुम जैसी धारणाओं के प्राबल्य काल में स्वर्गकामी और नरकभीरु धर्मगुरुओं ने तरह तरह के कर्मकाण्डों में मानव जाति को लगाए रक्खा। कर्मकाण्डों की अवांछनीयता दिखी तो बुद्ध जैसे महामानव आए और करुणा केन्द्रीय विचार के रूप में उभरी। करुणा की सहचरी है अहिंसा, करुणा अर्थात् हिंसा का अभाव।

अयोग्य शासकों से निराशा और बौद्धिक जागृति के परिणामस्वरूप हुई फ्रांसिसी क्रान्ति का व्यापक प्रभाव हुआ।
दास प्रथा और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर अमेरिका ने गृहयुद्ध झेला। शोषण और असमानता के विरोध में साम्यवाद का उदय। इन सभी युगान्तरकारी घटनाओं का मूल किसी एक मनोभाव में खोजा जा सकता है किन्तु आज विश्व में जो कुछ अप्रिय घटित हो रहा है उस के पीछे प्रमुख रोल प्रायोजित घृणा का है यह सब नहीं देख पा रहे, कुछ देखते हुए भी नहीं देख रहे (पश्यन्नपि न पश्यति)। अभी तो अन्यों से घृणा के विकृत आनन्द में मजा आ रहा है, अगला दौर होगा जब घृणा की आदत पड जाएगी और घृणापात्र नहीं मिलेंगे तो ट्रैंड हेटर्स/घोषित संस्कारी हिन्दू अपने ही भाईयों में सोफ्ट टारगेट ढूंढने लगेंगे। तब तिलकधारियों को बिना तिलक वाला धर्मद्रोही दिखेगा। पडोस में यह हो चुका है जब जिया उल हक ने अहमदियों को नोन मुस्लिम घोषित करा कर काफिर कटगरी में डाल दिया था।

पंचतन्त्र की गंगदत्त मण्डूक कथा याद आती है। गंगदत्त मेंढक कूए में रहता था, भाई बन्धुओं से दु:खी हो कर एक सांप को बुला लाया और कूए की खोकर में बसा दिया। समझौता यह हुआ था कि सांप को रोज एक मेंढक मिलेगा, गंगदत्त उसी मेंढक को खाएगा जो गंगदत्त का दुश्मन है, गंगदत्त के परिवार वालों को नहीं। धीरे धीरे गंगदत्त के सारे दुश्मन सांप ने खा लिए, अब भूखा सांप क्या करता – एक दिन बोला गंगदत्त अब मुझे अपने वालों में से भी एक एक दे क्योंकि तू ही मुझे यहां लाया है। आखिर में गंगदत्त को अपना घर (कूआ) छोड कर भागना पडा। माना कांग्रेस ने मुस्लिमों का तुष्टीकरण किया, गलत किया नहीं करना चाहिए था, पर भाई ये जो तुम हिन्दुओं का दुष्टीकरण कर रहे हो ये भी काउंटर-प्रोडक्टिव हो सकता है। ऐसा न हो कल को ये ब्रेनवाश्ड हिन्दू पूछें कि और बताओ अब किस से घृणा करनी है और तुम अपने कम्परेटिव कम प्रिय हिन्दुओं की ओर इशारा करने लगो-इन इन से। हरियाणा में जाट नोन जाट-पैंतीस वर्सस एक जैसा घृणित खेल दिखा कर तुम उचित-अनुचित-विवेक-शून्यता का परिचय दे चुके हो।

दूरदर्शिता और व्यापक हित में होगा कि धर्म विशेष या जाति विशेष से घृणा सिखाने के बजाय घृणा से घृणा करना सिखाया जाए। यही भारतीय संस्कृति का सार है, वेदव्यास जी का कथन है -‘गुह्यं ब्रह्म तदिदं ते ब्रवीमि न हि मानुषाच्छ्रेष्ठतरं हि किंचित’ (The secret of truth I unfold to you that there is nothing higher than man).

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Mazdoor Morcha
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