क्या बेटी बचाओ का नारा निरा पाखंड है?

क्या बेटी बचाओ का नारा निरा पाखंड है?
May 13 09:14 2023

ऋतु कौशिक

दिल्ली के जंतर-मंतर पर जहां हमारे देश की नामी महिला पहलवान 15 दिन से धरने पर बैठी हैं, एक दिन मैं रात को करीब 11.30 बजे घर पहुंची, मेरी 13 वर्ष की बेटी ने मुझसे पूछा कि ये लोग धरने पर क्यूं बैठी हैं? मैंने उसे कारण समझाया लेकिन फिर उसने अचानक से कहा कि ये लड़कियां पहलवान हैं और इतनी ताकतवर हैं, इन्हें धरने पर बैठने की क्या जरूरत थी, ये तो उस व्यक्ति को वहीं मार मार कर सीधा कर सकती थीं। पहले मैं थोड़ा मुस्कुराई फिर मैंने इस सवाल पर गहराई से सोचा कि जो महिलाएं इतनी ताकतवर हैं फिर भी वे देश में इतनी लाचार क्यों हैं?

आज चारों तरफ से एक ही सवाल सुनाई दे रहा है कि ये किस देश में जी रहे हैं हमलोग? हमारी बहन बेटियों की अस्मत लूटी जा रही है और सरकार अस्मत लूटनेवाले दरिंदों के साथ खड़ी दिखाई पड़ती है। देश के लिए पदक व सम्मान जीतकर लानेवाली महिला पहलवानों का यौन शोषण किया जाता है और उसपर कोई सुनवाई तक नहीं हो रही है। महिला पहलवान पिछले चार महीनों से न्याय की गुहार लगा रही है पर उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। पुलिस एफआईआर तक दर्ज करने के लिए तैयार नहीं हुई थी। आखिर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ही एफआईआर दर्ज हो पायी।
निर्भया आंदोलन के बाद जैसा आंदोलन देश भर में हुआ उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि अब शायद किसी महिला पर कोई अपराध नहीं होगा। जन आंदोलन के दबाव में हमारे देश में कानून बना था कि यौन हिंसा और अपराधों से संबंधित मामलों में एफआईआर तुरंत दर्ज करनी होगी, यदि दर्ज नहीं होती है तो संबंधित पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई होगी।

इसके बावजूद अपराधी पर कोई कार्रवाई तो दूर की बात, (सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले) एफआईआर तक दर्ज नहीं की गयी। क्यों? क्योंकि आरोपी बृजभूषण शरण सिंह भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं, पैसे और रसूख वाले हैं और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी हैं।

जैसा पहलवानों ने बताया कि 2012 में लखनऊ में कुछ महिला खिलाडिय़ों ने आगे आकर यौन उत्पीडऩ के मामले में एफआईआर दर्ज कराई थी लेकिन उन्हें रफा-दफा कर दिया गया। 2014 में महिला पहलवानों के एक कोच ने महिलाओं पर यौन दुर्व्यवहार के मामले को उठाया। लेकिन उन्हें और उनकी पत्नी जो पहलवान थी उन्हें खेल की दुनिया से बाहर कर दिया गया और उनका करियर खत्म कर दिया गया, दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जैसा विनेश फोगाट ने अपने बयान में कहा है कि चार महीने पहले भी कई सारे महिला पहलवानों ने देश के खेलमंत्री के पास जाकर अपने ऊपर हो रही ज्यादती के विषय में सब कुछ बयान किया। कहीं से न्याय नहीं मिलता देख, महिला पहलवानों ने जंतर मंतर पर आकर धरना देने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट में भी न्याय की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई तब जाकर बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

पीडि़त महिला पहलवानों में एक नाबालिग भी है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश में आरोपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो ऐक्ट (नाबालिग का यौन शोषण) के तहत भी मामला दर्ज किया गया। भारतीय कानून व्यवस्था के तहत यह नियम है कि पॉक्सो ऐक्ट लगनेवाले आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी होती है। पर यहां गिरफ्तारी तो दूर की बात, बृजभूषण भूषण शरण सिंह भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने तक के लिए भी तैयार नहीं हैं, और फूल मालाओं में लदकर घूम रहे हैं। क्या इस देश में कानून संविधान सब खत्म हो चुका है? क्या इस प्रकार से हमारे देश के संविधान, न्यायव्यवस्था और नैतिकता को कलंकित नहीं किया जा रहा है?

भारतीय जनता पार्टी या मोदी सरकार की ओर से एक बयान तक नहीं आया है। सबसे पहले होना तो यह चाहिए था कि सरकार की ओर से कोई नेता, मंत्री, अधिकारी जाकर हमारी यशस्वी महिला खिलाडिय़ों का दर्द सुनें, उनसे बातचीत करें। पर ऐसा तो हुआ ही नहीं, उलटे सरकार धरना स्थल से पानी बिजली की सप्लाई काटकर अमानवीय हरकत कर रही है। जंतर मंतर पर देश की बेटियां हैं, वहां बने शौचालय तक को भी साफ नहीं करवाया जाता है। इस सरकार ने सारी हदों को पार कर दिया है। इधर मन की बात करते हुए मोदी जी कह रहे हैं कि देश की बेटियों का सम्मान करना चाहिए। दूसरी तरफ अपने सम्मान, गरिमा और इज्जत के लिए लड़ रही देश की महिला खिलाडिय़ों के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। कितना पाखंड है ! यह हम कहां जा रहे हैं?

एक महिला बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले अपराधियों को जेल से रिहा कर दिया जाता है यह कह कर कि यह लोग संस्कारी हैं और जेल से निकलने पर इनको फूल मालाओं से सम्मानित किया जाता है। क्या यही दिन देखने के लिए हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी कुर्बानी देकर देश को स्वतंत्र करवाया था? महान मनीषियों, क्रांतिकारियों ने कहा था कि सिर्फ अंग्रेजों से मुक्ति से देश के लोगों को शोषण से मुक्ति नहीं मिलेगी, हमें फिर एक सामाजिक, सांस्कृतिक क्रांति करनी होगी और इसके लिए दीर्घकालीन जन आंदोलन निर्मित करना होगा।

लेकिन इस अंधकारमय दौर में रोशनी की किरण भी मौजूद है, देश के नामचीन खिलाड़ी, पत्रकार, बुद्धिजीवी, राजनेता, कलाकार सहित आम जनता बड़ी संख्या में हमारी बेटियों की न्याय की लड़ाई में साथ देने के लिए, समर्थन देने के लिए आ रहे हैं। आप जरा सोचकर देखिए, जो महिला खिलाड़ी देश के लिए पदक जीतकर ले आती हैं, अखबारों में जिनकी फोटो छपती है, प्रधानमंत्री जिन खिलाडिय़ों के साथ चाय पीते हैं, उनकी यदि इतनी दुर्दशा हो सकती है, और आरोपी बेखौफ घूम सकता है तो आम महिलाओं की क्या स्थिति होगी? इसलिए ये लड़ाई सिर्फ महिला पहलवानों को न्याय दिलाने की लड़ाई नहीं है, हमारे देश की सभी बेटियों के सम्मान और इज्जत की रक्षा का आंदोलन है। आइए हम सब मिलकर लड़ें और इस देश को बेटियों के लिए सुरक्षित जगह बनाएं।

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Mazdoor Morcha
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