क्या आप ……. इस खाली स्थान वाले लोगों को जानते हैं? दिल्ली का रास्ता इस खाली स्थान से गुजऱता है

क्या आप ……. इस खाली स्थान वाले लोगों को जानते हैं? दिल्ली का रास्ता इस खाली स्थान से गुजऱता है
March 04 05:13 2024

विवेक कुमार
क्या झारखंड के रहने वाले देवीलाल मंडल को आप जानते हैं? नहीं, पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को तो जरूर जानते होंगे। अच्छा, मैं पूछूं कि क्या आप अफ्रीका मूल की लियो को जानते हैं तो जवाब होगा नहीं, पर आप अपने जि़ले के एसपी साहब को तो जानते ही होंगे। चलिए बताइए कि क्या आप बीसीएफ को जानते हैं, जाहिर है नहीं जानते होंगे, पर बीएसएफ शब्द तो सुना ही होगा। भाजपा सरकार में बुलडोजर जमीन खाली कैसे करवा रहा है ये तो देख ही रहे हैं पर सीपीम की सरकार में जमीन कैसे ख़ाली होती थी आप जानते हैं? अच्छा एक और आखिरी सवाल, 1757 प्लासी की लड़ाई में रॉबर्ट क्लाइव ने सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल कब्जा लिया, लड़ाई के समय वहांं की जनता क्या कर रही थी क्या आप जानते हैं? या तो आप कहेंगे कि हां जानते हैं या कहेंगे कि नहीं जानते।

एक बड़े प्रगतिशील प्रोफेसर पुरषोत्तम अग्रवाल ने दिल्ली प्रेस क्लब मीडिया कार्यक्रम में चुनाव पर कहा कि “भारत की जनता इतनी समझदार हो चुकी है कि अब वो खुद अपना विनाश चाहती है”। वहां बैठे लोगों ने उनकी बातों पर साधुवाद दिया। यानी उन्होंने जनता को ही दोषी बना दिया। मैं बेशक उनसे सहमत नहीं, लेकिन बुद्धिजीवी लोगों की माक्र्स, लेनिन, गांधी, भगत सिंह, सावरकर, अमेरिका, रूस, भगवान राम, पैगंबर, ईसा मसीह, ऐसे बड़े-बड़े मुद्दों और विमर्शों को छोडक़र मैं चाहूंगा कि पाठक आगे लिखी कुछ कहानियों-संस्मरणों से इसे समझें। तो शुरू करते है :-

झारखंड वासी 55 वर्षी देवीलाल एक पूर्व डीजीपी (आईपीएस) के घर में कई वर्षों से खानसामे का काम उम्दा तरीके से करते आए हैं। 45 वर्षों से डीजीपी साहब के परिवार से जुड़े देवीलाल ने दो वर्ष पहले अपने बेटे की शादी की, शादी की बाद पैदा हुई बेटी के पहले जन्मदिन की खुशियां मनाने वे 20 दिन की छुट्टी लेकर जनवरी 19 को अपने गांव नारायणपुर, जिला जामताड़ा गए। वापस दिल्ली आने के कुछ रोज पहले उनके पढ़े-लिखे बेरोजगार बेटे ने बताया कि उसकी पत्नी तीन महीने की गर्भवती है। बेरोजगारी की दशा में अभी वह दूसरा बच्चा नहीं चाहते सो दोनों अबॉर्शन करवाना चाहते हैं। न चाहते हुए भी देवीलाल ने बेटे-बहू की बात मान ली। नारायणपुर तहसील के झोलाछाप डॉक्टर ने गर्भपात किया जिसमें गड़बड़ी होने पर बहू की जान चली गई। मायके वालों ने हत्या का आरोप लगाया और देवीलाल, बेटे, पत्नी, बेटी, दामाद और देवीलाल के समधी को आरोपी बना दिया। पुलिस की एफआईआर में भ्रूण सात महीने का लिखा गया। ज्ञात हो कि 26 माह यानी 6 महीने से अधिक का भ्रूण को कानूनन नहीं गिराया जा सकता। देवीलाल, पत्नी, बेटा गिरफ्तार हैं और झोलाछाप डॉक्टर फरार है।

ठीक उसी दिन केंद्र सरकार की ईडी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया। विधानसभा में विश्वास मत पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि “क्योंकि वह जंगल से निकलकर अब सदन में उनके बराबर में बैठ गए जो इन सवर्ण मानसिकता की बीजेपी को बर्दाश्त नहीं हो रहा”। ऐसा कह कर उन्होंने पूरे पिछड़े-आदिवासी समाज की बात कही। जेल में वे किस दशा में होंगे उम्मीद है सब जानते होंगे और जमानत पर देर सबेर बाहर भी आएंगे। देवीलाल को जमानत कई महीनों में भी नहीं मिलेगी।
अफ्रीका से दिल्ली आई 40 साला लियो कैंसर की मरीज़ है। अपोलो अस्पताल में इलाज करवा रही लिओ जसोला के एक होटल में रहती हैं। क्योंकि रामराज आ चुका है तो रोज रात में डीजे पर मोहल्ले वाले गाने बजाकर सबको बता रहे हैं। लियो ने मुझसे कहा कि कई रातों से वह इस कानफाड़ू डीजे के शोर से सो नहीं पाई है। कई बार शिकायत करने पर भी शोर बंद नहीं होता जबकि पुलिस वाले वहीं खड़े होते हैं। उसने पूछा क्या तुम्हारे यहां कोई कानून नहीं है इसके लिए? मैंने कहा कानून तो है पर सबके लिए लागू नहीं होता उसके लिए एसपी साहब होना पड़ेगा।

एक रिटायर आईपीएस अफसर जिनके काम की शानदार तूती हरियाणा सूबे में बजा करती थी। उनकी पत्नी ने एक दिन लंच पर इसी रामराज की घोषणा रूपी लाउडस्पीकर के शोर आने पर एक संस्मरण सुनाया। 1998 में उनके बेटे के दसवीं के इम्तिहान के समय पास के मंदिर वाले जोर-जोर से आरती करते थे, जिससे बेटे की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था। तंग आकर उन्होंने जिले के डीसी से कहकर मंदिर का लाउडस्पीकर ही उतरवा लिया। यह बताते हुए उन्होंने एक मार्के की बात कही कि उन्होंने नॉइस पॉल्यूशन एक्ट लागू करवा कर ऐसा किया। इसी एक बात ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक के तथाकथित महान भारत के सच को खोल कर सामने रख दिया। एक्ट राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से बनता जरूर है पर उसका लागू होना सिपाही के मूड ओर समझ पर निर्भर करता है।

मेरे परम मित्र ने जो पेशे से एक प्रोफेसर रहे, एक घटना का जिक्र किया। बात तब की है जब बंगाल में सीपीएम पार्टी की सरकार थी। उन दिनों एक मशहूर बंगाली एक्टर ने एक अनाथालय को दान दी हुई अपनी पुश्तैनी जमीन को खाली करवाने के लिए अपनी ऊंची मन्त्रालयी पहुंच का सहारा लिया। मंत्री के आदेश से पुलिस अनाथालय संचालक को उठा ले गई। शाम होते-होते कुछ पर्चियों पर थाने में बंद लोगों के नाम लिखे गए। जिन कैदियों के नाम गुलाबी पर्ची पर लिखे थे उनकी पिटाई करवाने के लिए बाहरी व्यक्ति को बुलाया गया था। जब अनाथालय संचालक की बारी आई तो उन्हे देखकर पिटाई करने वाले को याद आया कि यही व्यक्ति है जिसने 20 वर्ष पहले बांग्लादेश से भाग कर आने पर उसे अपने अनाथालय में शरण दी थी। इसके बाद उस व्यक्ति ने उन्हें नहीं पीटा और जमानत होने तक अपने दो लोगों को थाने में अनाथालय संचालक की सुरक्षा में लगा दिया। उस दिन से नास्तिक संचालक की आस्था भगवान में जाग गई। यानी तब से लेकर आज तक काफी कुछ भगवान के ही हाथ में है न कि प्रशासनिक विचारधारा के।

अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय उत्तर प्रदेश के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस भी रह चुके हैं। अपने कप्तानी के दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि सुल्तानपुर में बतौर एसपी उनकी तैनाती थी। चुनाव के दिन जब वे कानून व्यवस्था की स्थिति देखने के लिए अपने सरकारी आवास से निकले तो देखा कुछ बीएसएफ की बोर्ड लगी गाडिय़ां धूल उड़ाती जा रही हैं। गौर से देखा तो उन पर बीएसएफ नहीं बीसीएस लिखा था। एक जीप में अमेठी के राजा और कांग्रेसी नेता संजय सिंह जिन पर अंतरराष्ट्रीय बेडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की हत्या का इल्जाम है, बैठे थे। बीसीएफ का अर्थ था “बूथ कैपचरिंग फोर्स”। थोड़ा आगे गए तो देखा चुनाव स्थल के सभी कर्मी डब्बे समेटे जा रहे थे यानी चुनाव 11 से पहले 11:00 तक मात्र 2 घंटे में संपन्न हो चुका था।

अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली में आधुनिक इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर सलीम मिश्रा ने बातों बातों में बताया कि 1757 की प्लासी की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी जब नवाब सिराजुद्दौला को हराकर मुर्शिदाबाद की तरफ जा रही थी तो खेतों में काम करने वाले लोगों की संख्या अंगरेजी फौज से कहीं अधिक थी। फिर भी किसान उन्हें उत्सुकतावश बस देख रहे थे। शहर में दाखिल होने पर हजारों की भीड़ बस उन्हें देखने आई थी। जबकि अंग्रेजी सेनापति रॉबर्ट क्लाइव का कहना था कि उनकी संख्या इतनी थी कि यदि वे केवल एक-एक पत्थर भी वे मार देते तब भी सभी 900 के लगभग अंग्रेज मारे जाते। इस बात से मुझे भी याद आया कि बाबरनामा में बाबर लिखता है कि अपने राजा के प्रति इतनी अधिक उदासीनता उसने केवल हिंदुस्तान में ही देखी। यहां राजा मारा जाए तो उसके दरबारी युद्ध विजेता के वफादार बनने को तैयार रहते थे। जबकि आमजन को इससे फर्क ही नहीं पड़ता कि कौन जीता और कौन हारा।

आप सोचेंगे कि यह सारी बातें यहां पर क्यों बताई जा रही है। यह सब घटनाएं इसलिए बताई जा रही हैं ताकि हम-आप और वे सब, जो इस बात से चिंतित हैं कि फासीवादी सरकार में सब बदलने वाला है और देश का क्या होगा इत्यादि-इत्यादि याद रखें कि ये सब कुछ बहुत पहले से होता आ रहा है। अगर पहले से ही कुछ बदलता तो आज इस फासीवादी बदलाव तक आने की नौबत आई न होती।

हेमंत सोरेन जब खुद जेल पहुंचे तो उन्हें याद आया कि आदिवासियों के साथ बहुसंख्यक समाज क्या करता है। जबकि देवीलाल मंडल और उसके परिवार पर हुए मुकदमे की फर्जी शिकायत का निर्देशन हेमंत सोरेन की पुलिस ने ही किया। एफआईआर पढ़ते ही देखा जा सकता है कि पुलिस ने ही मायके पक्ष को उकसाया है कि 7 महीने का भ्र्रूण गिराना कानूनन अपराध है तो 3 महीने को 7 महीना कर दो। ऐसे केस मजबूत बनता है और पुलिस को इसी बात के पैसे मिल जाएंगे। इसके इतर ठाणे दायर ने बेटी, समधी और दामाद का नाम एफआईआर से निकालने के लिए प्रति व्यक्ति 1 लाख रुपये की मांग की। ऐसे फर्जी केस ही बीजेपी शासित राज्यों में भी दर्ज होते हैं। देवीलाल कि बहू का गर्भपात झोलाछाप डॉक्टर सभी सरकारों में करते रहे हैं तो क्या ऐसे झोलाछाप के हाथों गरीबों को मरने का अभिशाप देवीलाल ने दिया है? मायके पक्ष के साथ अन्याय सच में देवीलाल ने किया या सरकारों ने? तो फिर आपकी सरकार फासीवादी सरकार से भिन्न कैसे है? कैसे देवीलाल को फर्क़ पड़े कि कौन सी सरकार झारखंड की सत्ता में आए? तो क्या आदिवासी मुख्यमंत्री होने से आदिवासी समाज को कॉलोनियल कानून और उसकी प्रैक्टिस से मुक्ति मिली? जवाब है नहीं। सडक़ बंद कर जागरण, नमाज, जुलूस और हुड़दंग से मुक्ति एक मरीज को ठीक वैसे ही नहीं मिली जैसे कभी इम्तिहानों में मंदिरों-मस्जिदों-गुरद्वारों के शोर से आम विद्यार्थियों को नहीं मिली। पर पहले भी एसपी साहब की पत्नी के कहने से ही स्पीकर उतरता था ठीक वैसे ही जैसे आज भी एसपी साहब के कहने स्पीकर उतर जाएगा।

सीपीमएम की सरकार जो वामपंत की विचारधारा की झंडावाहक है के कार्यकाल में जमीन खाली कराने और ताकतवर के साथ खड़े रहने का पुलिसिया बर्ताव ठीक वैसा ही था जैसा कि आज भी ताकतवर के कहने से बुलडोजर गरीबों और कमजोरों के घरों को नित्सो नाबूत करता है। सुल्तानपुर में 40 साल पहले कांग्रेसी संजय सिंह बीसीएफ फोर्स से वही काम कर रहा था जो काम चंडीगढ़ में चुनाव में पीठासीन अधिकारी ने किया। रॉबर्ट क्लाइव को बस निहारते रहने वाली जनता ने कभी मुगलों और उसके बाद आए मुर्शिद कुली खान या अलीवर्दी खान को और फिर सिराजुद्दौला को भी वैसे ही आते और जाते देखा जिस उदासीनता से उसने सीपीम को जाते और टीमसी को आते देखा। तबसे लेकर आज तक जनता में शासक के राज के प्रति भरोसा नहीं बना तो इसमे जनता की क्या कमी है? गुलाम भारत के पंजाब प्रांत के किसान नेता सर छोटू राम ने कहा था कि ब्रिटिश कानून बेशक सबके लिए बना दिया गया हो पर इस कानून से न्याय प्रक्रिया में जनता की भागीदारी अब समाप्त हो गई। अब यह वकील जज और पुलिस की मेहरबानी के ही कानून बन गए हैं।

मोदी ने 2014 के चुनाव में कहा कि वह आए तो वीआईपी कल्चर समाप्त करेंगे। और उनके ज्यादातर वादों की ही तरह यहां भी ठीक इसके उल्टा हुआ। ताजा उदाहरण अयोध्या के राम मंदिर में दिखा जिसमें वीआईपी ही वीआईपी शामिल थे। वह भी सब बाहर से आए अभिनेता और पूंजीपति। जबकि अयोध्या की आम जनता का इस इवेंट में कहीं कोई नाम लेवा भी नहीं दिखा, ना उनका कोई नामोनिशान भी दिखा। कोटा में हर कुछ दिन में सुनाई देता है कि दबाव के चलते बच्चे ने आत्महत्या कर ली। हमें फर्क नहीं पड़ता जिस दिन हमारा बच्चा आत्महत्या करता है तो औरों को भी फर्क नहीं पड़ता। ठीक इसलिए सरकार को भी फर्क नहीं पड़ता। और यह सब लंबे वक्त से चला आ रहा है और चला जा रहा है । इन सारी यहां-वहां की कहानियों को आप किसी भी रूप में गढ़ा हुआ या सच मान सकते हैं। पर आप यह नहीं कह सकते कि आप नहीं जानते कि ऐसा भी होता है जबकि ऐसा ही होता है।
अब पुरषोत्तम अग्रवाल जैसे लोग और विपक्षी दल बताएं कि क्यों बीजेपी को हराकर लोग कांग्रेस या अन्य किसी पार्टी को ले आयें? क्यों बीजेपी पैसे से विपक्ष की सरकार गिराती है तो लोग प्लासी की लड़ाईके बाद वाली जनता की तरह ही गुमसुम अपने घरों में रहते हैं? क्यों नहीं वे सडक़ को जाम करके गुंडे प्रवृत्ति के अनैतिक व्यवहार वाले नेताओं का घर से निकलना मुहाल कर देते? क्योंकि वह जानते हैं कि नागनाथ को हटा कर जिसे वे लाते हैं वो सांपनाथ ही होता है। तो क्यों इसके लिए अपनी जिंदगी में तबाह करें। इसका सीधा उदाहरण है दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार जिससे गोबरपट्टी की पार्टियों को सबक लेना चाहिए। यही जनता लोकसभा में भाजपा को जिताती है पर विधानसभा चुनाव में आम आदमी भाजपा का सुपड़ा साफ कर रही है। क्योंकि उसने जनता को बाकियों से अलग एक बेहतर प्रशासनिक मॉडल दिया है। यह अलग बात है कि भविष्य में शायद वह भी कांग्रेस और भाजपा का ही रूप ले ले।

ऐसा भी नहीं है कि कुछ नहीं बदला, बिल्कुल बदला है। अब राजनेता बलात्कारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो जाते हैं। बलात्कारी हत्यारे नेता पहले भी थे पर वह छुपाते थे कि वह ऐसे हैं। जबकि अब ब्रिजभूषण सरीखे नेता खुलकर बताते हैं कि हमने इतने सारे बलात्कार और हत्या किये। कुल जमा, शर्म को रिप्लेस करके बेशर्मी ने आसन ले लिया है। भाजपा राज में शर्म को बेशर्मी ने ढक लिया तो उसका कारण वह हर बात में यही देते हैं कि कांग्रेस ने भी यह किया था पूर्व में, इसलिए हमारा करना भी जायज है। तो यह बात सच ही है कि आप जो कृत पहले करके आएंगे उसे रेफऱेंस के रूप में आपके वारिस इस्तेमाल तो जरूर करेंगे। तो फिर, जो हुआ सो हुआ, जब आपने ही सब पहले किया तो एक पहल और करिए। शर्मिंदा होइए और माफी मांगने की पहल के साथ जनता को इन कॉलोनियल कानून और कार्य प्रणालियों से मुक्ति दिलाने की शुरुआत विपक्ष अपने-अपने राज्यों से करे। एक कारण दीजिए कि हमें लगे कि हम आयें सडक़ पर। यदि यह कर सकें तो बेहतर।

इस बीच देवीलाल को अपने और अपने बेटे को जेल में सुरक्षित रहने के लिए 1100 रुपये प्रति व्यक्ति की दर से हर महीने पैसे देने पड़ रहे हैं जिसमे उसकी जमीन तक बिकेगी। और झारखंड में किसी फासीवादी की सरकार नहीं बल्कि एक आदिवासी की सरकार है, जिसकी खुद कैद की रात फाइव स्टार बिस्तर पर बीती होगी। तो देवीलाल और उसकी मरहूम बहु के घर वालों को सस्ते और त्वरित न्याय की जरूरत उनके जीवन में है, न कि भारत न्याय यात्रा के फोटोशूट में। एक जर्मन लघु कथा से अपनी बात समाप्त करता हूं ‘दूसरे विश्व युद्ध में जर्मन नाजी सेना पोलेंड के यहूदी गांव में घुसी तो घास खा रहे अपने घोड़े को यहूदी मालिक ने रस्से से पीटते हुए भागने को कहा। घोड़े ने कहा मैं क्यों भागू? यहूदी बोला नहीं भागा तो नाजी तुझपर बोझ लादेंगे और मारेंगे। घोड़ा बोला, तो तूँ मेरे साथ क्या करता है, और घास चरता रहा’? कमाल की बात है कि आज वही यहूदी इस्राइली नाजी बन चुके हैं।

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