खट्टर तय नहीं कर पा रहे कि सेक्टरों में पांच मंजिला मकान बनें या नहीं, फिलहाल इन पर रोक लगा दी चंडीगढ़ (मज़दूर मोर्चा) अपनी घर की अक्ल हो नहीं पर दूसरों से ले न सके तो वही होता है जो सीएम खट्टर के साथ हो रहा है। अब कोई पूछे खट्टर जी से कि जब योजनाकारों ने सेक्टरों में ढाई मंजिला मकान बनाने की सीमा निश्चित की थी तो कुछ सोच-समझ कर ही तो की थी। उसी हिसाब से सडक़ें, सीवर व पेयजल लाइने डाली गई थीं, उसी हिसाब से बिजली आपूर्ति की व्यवस्था की गई थी लेकिन खट्टर जी को अचानक न जाने क्या सूझी अथवा किसी बिल्डर लॉबी ने क्या लालच दे दिया कि ढाई मंजिल की जगह पांच मंजिला मकान बनाये जा सकते हैं। खट्टर जी में यह सोचने-समझने की क्षमता तो है नहीं कि जो सीवर एवं पेयजल व्यवस्था ढाई मंजिला मकानों का बोझ सह नहीं पा रही वह पांच मंजिला मकानों में बसने वाली आबादी का बोझ कैसे उठा पायेगी?
दरअसल दूर दृष्टि से वंचित एवं धन-लोभी सलाहकारों ने खट्टर को मोटी कमाई का आसान रास्ता दिखाते हुए पांच मंजिला मकानों के नक्शे पास करने की सलाह दे दी। खट्टर को इस सलाह से मोटी धन उगाही तो नजर आई लेकिन यह नहीं दिखाई दिया कि जो सीवर लाइन पहले से ही चोक हुई पड़ी हैं वे लाइनें अतिरिक्त भार कैसे वहन कर पायेगी? जो पेयजल आपूर्ति पहले से ही कम पड़ रही है, वह अतिरिक्त बढ़ी हुई आबादी को पेयजल कैसे दे पायेगी?
खट्टर की इस नई पॉलिसी की घोषणा होते ही बिल्डर बड़े पैमाने पर सेक्टरों के बने-बनाये मकान खरीदने को निकल पड़े। जाहिर है कि इससे उनके दामों में अच्छा-खासा उछाल आया और बने-बनाये मकान टूटने लगे, उनकी जगह पांच मंजिला मकान बनने लगे, गलियों में ईंट, रोड़ी, बजरी, रेत आदि के ढेर लगने लगे। आना-जाना दूभर होने लगा। ऊंची इमारतें बनने से अनेकों घर धूप से वंचित होने लगे। इस तरह की समस्या को लेकर पंचकूला के कुछ लोग हाई कोर्ट तक भी गये थे लेकिन उन्हें मिली राहत केवल उन्हीं तक सीमित होकर रह गई, हाईकोर्ट ने इस समस्या की गम्भीरता को न समझते हुए कोई व्यापक आदेश जारी नहीं किया।
राज्य विधानसभा के मौजूदा अधिवेशन के दौरान विपक्षी विधायकों द्वारा खट्टर को इस मामले पर घेरे जाने के बाद उन्होंने इस योजना पर तुरन्त प्रभाव से रोक लगा दी। अपने आदेश में वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि जिनके नक्शे पास हो चुके हैं वे तो पांच मंजिला मकान बना सकते हैं, नये नक्शे पास नहीं किये जायेंगे। अपनी मंद बुद्धि का प्रदर्शन करते हुए खट्टर ने हाउस में यह भी कहा कि नक्शे पास करने पर यह प्रतिबंध स्थाई होगा या अस्थाई, इसका निर्णय उनके द्वारा गठित एक समिति द्वारा लिया जायेगा? है न बुद्धिहीनता का गजब नजारा। इससे भी गजब नजारा तब सामने आया जब पूर्व सीएम हुड्डा ने पूछा कि यह समिति कब गठित होगी और इसका निर्णय कब तक आयेगा? खट्टर ने फरमाया कि 15 दिन भी लग सकते हैं और पांच साल भी। है न गजब, फैसला करने की क्षमता।
साधारण समझ रखने वाला आम आदमी भी समझ सकता है कि सेक्टरों व मुहल्लों में भीड़ बढ़ाने से क्या-क्या दिक्कतें वहां रहने वालों को आ सकती हैं। इतनी मामूली सी बात खट्टर को बताने के लिये कमेटी का गठन किया जायेगा, वह खट्टर को यह सब कब तक समझा पायेगी कोई नहीं जानता। जाने तो कोई तब न जब कोई वास्तव में ही समझना चाहता हो। यहां तो केवल टाइमपास करने की बात हो रही है।
संदर्भवश यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि सेक्टरों के बने बनाये मकानों को तोड़ कर पांच मंजिला मकान बनाने की क्या तुक है? क्या नये सेक्टर बनाने के लिये ज़मीन खत्म हो गई है? पुराने बने-बनाये सेक्टरों में घुचड़-मुचड़ करने की क्या जरूरत है? यदि आवासीय क्षेत्र की कमी पड़ रही है तो क्यों नहीं नये सेक्टरों का निर्माण किया जाता? नये बनने वाले सेक्टरों में सरकार पहले दिन से ही अपनी एक स्थाई नीति घोषित करके बता सकती है कि मकान ढाई मंजिला होंगे या पांच मंजिला होंगे या दस मंजिला होंगे। उसी के अनुरूप सारी व्यवस्थायें बनानी चाहिये।