क्रांतिकारी वीरांगना दुर्गा भाभी के स्मृति दिवस पर ‘दुर्गा भाभी महिला मोर्चा’ ने सभा की

क्रांतिकारी वीरांगना दुर्गा भाभी के स्मृति दिवस  पर ‘दुर्गा भाभी महिला मोर्चा’ ने सभा की
October 25 17:04 2023

आज़ादी आंदोलन की गौरवशाली क्रांतिकारी धारा ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की बहुत अहम सक्रिय सदस्य दुर्गावती वोहरा, जिन्हें सारा देश बहुत अदब-ओ-एहेतराम के साथ ‘दुर्गा भाभी’ के नाम से जानता है, की मृत्यु 15 अक्टूबर 1999 को गाजिय़ाबाद में हुई थी। औपनिवेशिक लुटेरी अंग्रेज हुकूमत के साथ ही देश की मेहनतकश अवाम को आर्थिक शोषण और जि़ल्लत से आज़ादी दिलाने के लिए जिन वीरों ने अपनी जानें क़ुर्बान कर दीं उन्हें सम्मानपूर्वक याद करना और उनके बताए रास्ते पर चलने का अहद लेना हर विवेकशील देशवासी का कर्तव्य है, क्योंकि उन महान शहीद क्रांतिकारियों का मिशन अभी अधूरा है। अपने इसी फज़ऱ् को शिद्दत से निभाते हुए ‘दुर्गा भाभी महिला मोर्चा’ की फऱीदाबाद इकाई ने ‘दुर्गा भाभी’ के 24 वें स्मृति दिवस पर मज़दूर बस्ती, आज़ाद नगर में 15 अक्टूबर को 2 बजे एक शानदार सभा का आयोजन किया।

सभा में लगभग 60 महिलाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिसका संचालन स्कूली छात्रा स्वाती ने किया। इस सभा में महिलाओं ने क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के कार्यकर्ताओं साथी नरेश, सत्यवीर सिंह, मुकेश, चंदन, अशोक और बबलू को भी अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया था। दुर्गा भाभी महिला मोर्चा की अग्रणी कार्यकर्ताओं साथी रिम्पी, कविता, रेखा, बबंती, सुनीला ने क्रांतिकारी आज़ादी आंदोलन में दुर्गा भाभी के साहसिक और प्रेरणादायक योगदान को याद किया। गोरे अंग्रेज़ तो खदेड़ दिए गए, औपनिवेशिक गुलामी की जि़ल्लत से तो मुक्ति मिल गई लेकिन उन गोर अंग्रेज़ों की जगह भूरे रंग के देसी अंग्रेज़ों से जो मज़दूरों-मेहनतक़श किसानों का खून निचोडऩे में अंग्रेज़ों से भी कहीं आगे हैं पिंड छुड़ाना अभी बाक़ी है। अंग्रेज़ों को तो उनकी चमड़ी के रंग से दूर से पहचाना जा सकता था लेकिन आज के पूंजीपति लुटेरे और उनकी ताबेदार सरकारें चलाने वाले उनके मैनेजर तो बिलकुल हमारे जैसे ही दिखते हैं। इन्हें पहचानना बहुत मुश्किल है।

औपनिवेशिक-सामंती गठजोड़ सत्ता के शोषण से मुक्ति पाने के लिए जो राष्ट्र की भावना जागृत हुई थी, जिस राष्ट्रवाद के नारे से इतना विशाल देश इकठ्ठा हुआ था, मोदी सरकार पूरी निर्लज्जता के साथ राष्ट्र के उसी मुक़द्दस जज़्बे राष्ट्रप्रेम को अपने आक़ाओं अडानी-अंबानी की दौलत के पहाड़ और विशाल-विकराल करने में कर रही है। दरअसल, प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘मज़दूर मोर्चा’ में छपे लेख ‘देश की गौरवशाली महिला क्रांतिकारी वीरांगना, दुर्गा भाभी को लाल सलाम’ की प्रतियां महिलाओं ने आज़ाद नगर बस्ती में बांटी थीं। सभी को मालूम था कि सच्ची आज़ादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले जांबाज़ कौन थे और आज़ादी आंदोलन के हीरो के रूप में किन्हें प्रस्तुत किया जाता है।

इतना ही नहीं जिस हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अंग्रेज़ों की मुखबरी की, जिनके ‘वीरों’ ने बार-बार माफ़ीनामे लिखे, अंग्रेज़ों की पेंशन पाने के लिए उनकी गुलामी करने के वचन दिए, जिनका इतिहास शर्मनाक है, वे आज राष्ट्रवाद के विचारक होने की ऐंठ में देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांटते फिर रहे हैं।

सभा, मज़दूर बस्ती के बीच एक पुराने दरख़्त के नीचे हो रही थी जिसके चारों ओर मज़दूरों की छोटी-छोटी झोपडियां थीं, जिनमें पूरे के पूरे परिवार रहते हैं। वक्ताओं ने, इस हक़ीक़त को सामने लाते हुए कहा कि सुई से ज़हाज़ तक और अनाज से ताज तक सारे का सारा उत्पादन और निर्माण करने वाले मज़दूर ऐसे नरक में रहने को मज़बूर हैं। इन बस्तियों को भी तोड़ डालने के मंसूबे पाले जा रहे हैं। दूसरी तरफ़ इन्हीं मज़दूरों के श्रम को हड़प जाने वाले मुफ्तखोर, सरमाएदार लखानी-चोपड़ा एकड़ों तक फैले महलों में ऐश करते हैं। यहां मज़दूर एक-एक बूंद पानी को संघर्ष करते हैं और वहां निजी स्वीमिंग पूल हैं बड़े-बड़े गार्डन हैं। ये अन्याय भी एक दिन ये मज़दूर ही मिटाएंगे। कमेरों की असली आज़ादी उसी दिन आएगी जिस दिन पूंजी की गुलामी से मुक्ति मिलेगी, श्रम का सम्मान होगा। सारे के सारे उत्पादन पर उत्पादन करने वाले का अधिकार होगा।

महान क्रांतिकारी वीरांगना के विचारों और ज़ज्बे को मज़दूर नगरी फऱीदाबाद के कोने-कोने में ले जाने ‘दुर्गा भाभी महिला मोर्चे’ को मेहनतक़श महिलाओं के सम्मान और संघर्षों के औज़ार के रूप में मज़बूत करने के अहद और बुलंद क्रांतिकारी नारों के साथ सभा का समापन हुआ।

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