फरीदाबाद में मज़दूरों के संषर्ष के एक नए औज़ार का उद्भव

फरीदाबाद में मज़दूरों के संषर्ष के एक नए औज़ार का उद्भव
October 02 01:04 2022

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा : एक रिपोर्ट

फऱीदाबाद के मज़दूरों के संघर्षों का एक गौरवशाली इतिहास है. 1970 तक, फरीदाबाद, देश में एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था. विकास के द्वंद्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद के नियमानुसार, उसके साथ ही शुरू हो गया था, पूंजीपति और सर्वहारा के संघर्ष का दौर. ये ऐतिहासिक लड़ाई 1975 के आपातकाल के दौरान परवान चढ़ी, और उसके बाद से कभी तेज़ कभी धीमी, कभी सतह पर और कभी सतह के नीचे लगातार ज़ारी है. लाल झंडे के तले, फरीदाबाद के मज़दूरों की क़ुर्बानियों की उल्लेखनीय दास्ताँ इस तरह हैं.

जून 1977 में मज़दूरों की एक व्यापक हड़ताल हुई, जिसकी लपटें छोटे-बड़े सभी कारखानों में पहुँचीं. लाखों मज़दूर अपने औजार रख सडकों पर आ गए. पुलिस दमन शुरू हुआ, लेकिन उससे मज़दूर पीछे नहीं हटे, बल्कि आग और भडक़ी. 30 जून 1977 को पुलिस ने मज़दूरों के लोकप्रिय नेता कॉमरेड हरनाम सिंह को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन्हें बुरी तरह मारा और मज़दूरों से हड़ताल वापस लेने की अपील करने को कहा. हरनाम सिंह ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. पुलिस टार्चर बढ़ता गया. रात में, ज़ालिम पुलिस वालों ने उन्हें मार डाला. लेकिन उनके और मज़दूरों के हौसले को वे नहीं डिगा पाए, (इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली न 28, 1977). अपने प्रिय कॉमरेड की पुलिस द्वारा हत्या ने, मज़दूरों के क्रोध को और भडक़ा दिया. 1977 में मज़दूरों के अनेक संघर्ष हुए. हेरिग इण्डिया कंपनी में मालिक+पुलिस और मज़दूरों के बीच तीखी झड़पें हुईं, इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली, 44, 1979 ने 1978 व 79 में मज़दूरों पर पुलिस दमन की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की.

एस्कॉर्ट्स, फोर्ड, गेडोर, थोमसन प्रेस के मज़दूरों ने अनेक उल्लेखनीय आन्दोलन किए. 1980 और उसके बाद के दशकों में ईस्ट इंडिया टेक्सटाइल मिल, अतुल ग्लास और एस्कॉर्ट्स के मज़दूरों ने बेहतर सेवा शर्तों के लिए लगातार संघर्ष किए. फरीदाबाद से प्रकाशित ‘मज़दूर समाचार’ और मज़दूर मोर्चा ने मज़दूरों के संघर्षों को कवर करने के लिए वैकल्पिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इस सम्बन्ध में कॉमरेड शेर सिंह तथा कॉमरेड सतीश कुमार की अनुकरणीय भूमिका को मज़दूर कभी नहीं भूल पाएँगे. इसके आलावा, अपनी मज़दूर बस्तियों को उजडऩे से बचाने के लिए भी एसी नगर, आज़ाद नगर, तिलक नगर- ऑटो पिन झुग्गी के मज़दूरों ने ऐतिहासिक लड़ाईयाँ लड़ीं जो अभी तक बदस्तूर ज़ारी हैं. हाल के दिनों में पहले फरवरी माह में व्हर्लपूल कंपनी के ठेके के मज़दूरों की अघोषित, अनैतिक और गैरकानूनी वेतन कटौती का आन्दोलन और अगस्त महीने में आज़ाद नगर की गुडिय़ा की नृशंस हत्या के विरोध में उठे जन-आक्रोश से उभरे जन-आन्दोलनों के दौरान, मज़दूरों को एक पीड़ादायक अनुभव हुआ. किसी भी जन-आन्दोलन की नब्ज़ जानने और जन-उभाड़ को पढक़र, उसके अनुरूप संघर्ष की दिशा और रणनीति तय करने में भी अगर स्थानीय संघर्षरत कार्यकर्ताओं से ज्यादा, दूर बैठी ‘हाई कमांड’ या ‘सीसी’ जानने-समझने का दावा करती है, और उनका फतवा ज़ारी होने तक, इन्तज़ार करने को बाध्य करती है, तो इसका परिणाम संघर्ष के पंक्चर या एबॉर्शन होने में होता है. यही वज़ह है कि ये तथाकथित ‘सेंट्रल कमेटियां’ अपने-अपने बैनरों को अपने कलेजे से लगाए बैठी हैं और अधिकतर के पास सिफऱ् बैनर ही बचे हैं.

कहीं कोई संगठन बनता नजऱ नहीं आता. खुद को मज़दूर वर्ग का प्रतिनिधि और ‘भावी शासक’ होने का दावा करने वाले सारे संगठनों के प्रभाव में, देश में सर्वहारा की कुल तादाद, लगभग 50 करोड़, का 1 प्रतिशत हिस्सा भी मौजूद नहीं है. जो संगठन मज़दूरों के पांव में बेडिय़ों का काम करे, उसकी ताबेदारी करने की क्या ज़रूरत?

उससे छुटकारा पाना एक रचनात्मक काम है. यही वज़ह है कि फरीदाबाद के मज़दूरों ने मज़दूरों के संघर्ष का अपना औज़ार, अपना निजी ‘बैनर’ बनाने का फैसला किया. रविवार 25 सितम्बर को चन्द्रिका प्रसाद मेमोरियल सामुदायिक केंद्र सेक्टर 24 की सभा के लिए फरीदाबाद की मज़दूर बस्तियों में मज़दूरों से मिलने और उन्हें समझने- समझाने का सघन अभियान चलाया गया. पिछले सप्ताह भर हुई बारिश में भी,अभियान बदस्तूर ज़ारी रहा. 25 सितम्बर को काफी तादाद में मज़दूर इकठ्ठा हुए और सभागार ठसाठस भर गया. मज़दूर वर्ग से प्रतिबद्धता रखने वाले अनेक अनुभवी तथा प्रतिष्ठित लोग सभा में सक्रीय रूप से उपस्थित रहे. सभा की अध्यक्षता ‘मज़दूर मोर्चा’ केसंपादक कॉमरेड सतीश कुमार ने की.
उनके अलावा मंच पर आसीन व्यक्ति थे; वैज्ञानिक, तकऱ्पूर्ण सोच आन्दोलन से जुड़े सर्व श्री रमेश श्योरान, न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन के संपादक एम एम चंद्रा, जन-आन्दोलनों से अन्तरंग रूप से जुड़े रामफल जांगड़ा, जन पत्रकार एवं लेखिका आरीफा जी, मज़दूर कार्यकर्ता सत्यवीर सिंह तथा नरेश. आज़ाद नगर में नृशंस हत्या की शिकार हुई गुडिय़ा का पूरा परिवार सभा में मौजूद था. सभी वक्ताओं ने, देश में मज़दूरों के मौजूदा हालात, सत्ता का फासीवादी हमला, मज़दूरों की बे-इन्तेहा कुर्बानियों की बदौलत मिले 44 अधिकार छीनकर, 4 लेबर कोड्स के विरुद्ध और मज़दूर बस्तियों को उजाडऩे के विरुद्ध चल रहे देशव्यापी संघर्ष के महत्त्व पर प्रकाश डाला. अभूतपूर्व मंहगाई, बेरोजग़ारी तो है ही, किस तरह सरकार मज़दूरों को इन्सान ही मानने को तैयार नहीं; इन बिन्दुओं को रेखांकित किया. मज़दूरों के संघर्षों के नए बैनर ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ की ज़रूरत पर विस्तार से चर्चा हुई, जिससे मज़दूरों के संघर्षों को अंजाम तक पहुँचाया जा सके.

सभा के अंत में एक सलाहकार मंडल चुना गया-कॉमरेड सतीश कुमार, रमेश श्योरान, एम एम चंद्रा, आरिफ़ा, अधिवक्ता राजेश अहलावत तथा अधिवक्ता एस के जोशी. साथ ही मज़दूर आन्दोलन को दिशा देने एवं सञ्चालन हेतु, एक नेतृत्वकारी टीम भी सर्वसम्मति से चुनी गई, जो इस प्रकार है—अध्यक्ष कॉमरेड नरेश, उपाध्यक्ष कॉमरेड रामफल जांगड़ा, महा सचिव कॉमरेड सत्यवीर सिंह, उप-सचिव कॉमरेड विजय कुमार एवं कोषाध्यक्ष कॉमरेड छोटे लाल. इसी टीम को ये अधिकार भी दिया गया कि आगे आन्दोलनों की जि़म्मेदारी संभालने के लिए एक कार्यकारणी भी चुने. जोशीले नारों के साथ सभा संपन्न हुई.

‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चे’ के सांगठनिक दस्तावेज़ के मुख्य बिन्दू इस तरह हैं:
उद्देश्य: मज़दूरों और मज़दूर वर्ग से प्रतिबद्धता रखने वाले सभी लोगों को, मज़दूरों और मज़दूर बस्तियों की समस्याओं के समाधान के लिए संगठित करना. संवेदनहीन और मज़दूर विरोधी प्रशासन की नजऱों में मज़दूरों और उनके आवास सम्बन्धी के सभी मुद्दों को लाना तथा उन पर अनुशासन बद्ध और शांतिपूर्ण तरीक़े से संघर्ष करना, जन आन्दोलन चलाना. साथ ही, शोषित-पीडि़त तबक़े में तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण व सोच का विकास करते हुए उनमें वर्ग चेतना प्रस्थापित करना. वर्ग शोषण के साथ-साथ, जातिवादी दमन-उत्पीडन का विरोध भी पूरी ताक़त से किया जाना.

सदस्यता की शर्तें: ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ मज़दूरों का एक जन संगठन है. इसका मानना है कि शोषित-पीडि़त वर्ग, जो कुल आबादी का 90त्न से भी अधिक है, की मुक्ति मार्क्सवाद-लेनिनवाद के रास्ते, समाजवादी क्रांति द्वारा ही संभव है. यह संगठन, हमारे देश- काल-परिवेश में, इस दर्शन की सही लाइन पर चलने के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन, ये कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है. अत: इसकी सदस्यता के लिए, हर सदस्य का किसी विशेष दर्शन- विचारधारा से प्रतिबद्धता होना आवश्यक शर्त नहीं है. धार्मिक विचार होना भी किसी को सदस्यता के लिए अपात्र नहीं ठहराता. हाँ, धार्मिक कट्टरता, धर्मान्धता, कट्टरवादी जातिवादी सोच होने पर और उससे छुटकारा पाने की तैयारी भी ना होने पर, सदस्यता रद्द कर दी जाएगी.
अनुशासन: किसी भी सदस्य के किसी असामाजिक अथवा मज़दूर-विरोधी गतिविधि में शामिल पाए जाने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी. लेकिन उसकी पद्धति जनवादी, अधिक से अधिक सदस्यों को उस प्रक्रिया में शामिल करते हुए और ‘न्याय के सभी नैसर्गिक नियमों’ जैसे आरोपी को अपना पक्ष किसी भी स्तर पर रखने के अधिकार का सम्मान करते हुए ही की जाएगी. संगठन में अधिक जि़म्मेदार पद पर कार्यरत व्यक्ति से अनुशासन के उच्च मापदंडों की अपेक्षा की जाएगी.

कार्य पद्धति: जन संगठन के आन्दोलनों में व्याप्त ‘हाई कमांड’ संस्कृति अथवा ‘सी सी आतंक’ से छुटकारा पाना और हर फैसले को जनवादी तरीक़े से लेते हुए, ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करते हुए आगे बढऩा, इस संगठन का मूल मन्त्र रहेगा. ‘जो व्यक्ति आन्दोलन स्थल के जितना नज़दीक है, वह उसकी हकीक़त उतनी ही ज्यादा जानता है. उसकी राय को सबसे ज्यादा सम्मान देते हुए, लिए फैसला ही सही फैसला होता है’; इस सच्चाई को मानते हुए कार्य करने की रवायत क़ायम करना, ‘नेतृत्वकारी’ टीम के काम करने के तरीक़े में नजऱ आएगा. इस सोच के साथ काम करने की ज़रूरत को रेखांकित किया जाना ज़रूरी है, जिससे जन-आन्दोलनों को उनके उरूज़ तक ले जाया जा सके. नेतृत्वकारी टीम एक वर्ष के लिए ही चुनी जाएगी.

हर साल शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के जन्म दिन वाले, सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में नई टीम का गठन अथवा पुरानी टीम का अनुमोदन किया जाया करेगा. साथ ही हर जन-आन्दोलन को, अन्य सम-विचारीय संगठनों के साथ संयुक्त रूप से चलाने को अत्यधिक महत्त्व दिया जाएगा.

कम्युनिस्ट पार्टी के महत्त्व के विषय में: ‘सही क्रांतिकारी विचारधारा के बगैर सही क्रांतिकारी पार्टी नहीं हो सकती और सही क्रांतिकारी पार्टी के बगैर क्रांति नहीं हो सकती’, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ सर्वहारा के महान नेता लेनिन के इस कथन को पूरी शिद्दत से मानता है.

आज देश में कोई भी सही क्रांतिकारी पार्टी नहीं है, ऐसा हमारा सोचना है. इसीलिए ये संगठन किसी भी कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध नहीं है. सही क्रांतिकारी पार्टी के गठन की प्रक्रिया में हो रही किसी भी ईमानदार चर्चा-डिबेट में ये जन संगठन पूरी ईमानदारी और लगन से शामिल रहेगा.

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Mazdoor Morcha
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