‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ निगम सफाई कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन करता है

‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ निगम सफाई कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन करता है
October 30 10:14 2022

‘हरियाणा कौशल रोजग़ार निगम’ मज़दूरों के साथ धोखा है

सत्यवीर सिंह
‘हमारी सेवाओं को नियमित करो, समान काम-सामान वेतन लागू करो, 4000 रु ज़ोखिम भत्ता दो और हमें कौशल विकास निगम का झुनझुना नहीं चाहिए, कोरोना के दौरान जो सफ़ाई कर्मचारी ड्यूटी करते मारे गए उन्हें 50 लाख रु की मदद दो’, इन मांगों को पूरा कराने के लिए, हरियाणा में नगर निगम सफ़ाई कर्मचारी, अग्नि शमन कर्मचारी एवं अन्य नगर निगम कर्मचारी 19 अक्तूबर से हड़ताल पर हैं.नगर निगम दफ़्तरों के प्रवेश द्वारों में ताले लगे पड़े हैं.

हालाँकि, जल आपूर्ति और आपातकाल अग्नि शमन कर्मचारियों को ‘हरियाणा नगरपालिका कर्मचारी संघ’ ने हड़ताल से बाहर रखा है, जिससे अत्यावश्यक सेवाओं में बाधा ना आए. क्या कोई सोच सकता है कि नगर निगम के जो कर्मचारी पिछले 30 सालों से नियमित कार्य कर रहे हैं, वे भी अस्थाई ही हैं. मतलब, सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें नियमित कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाएँ, जैसे पेंशन आदि नहीं मिलने वालीं. प्रदेश के विभिन्न नगर निगमों में कुल 25,000 सफ़ाई कर्मचारी हैं, जिनमें मात्र 10,000 कर्मचारी ही नियमित कर्मचारियों की श्रेणी में आते हैं. 15,000 हमेशा अस्थाई ही रहेंगे!!

कर्मचारियों को स्थाई करने की बजाए, हरियाणा सरकार उन्हें ‘हरियाणा कौशल रोजग़ार निगम’ में लाना चाहती है. सफ़ाई कर्मचारी यूनियन इसका विरोध कर रही है और वह बिलकुल सही कर रही है.

‘हरियाणा कौशल रोजग़ार निगम’ की ‘सक्षम’ योजना 2016 में शुरू की गई थी. इसका घोषित उद्देश्य है, हरियाणा के युवकों को ‘कुशल’ बनाना, मासिक बेरोजग़ारी भत्ता देना साथ ही योग्य स्नातकोत्तर युवकों को, हरियाणा के विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, बोर्ड, सहकारी सोसाइटी तथा निजी उपक्रमों में, ‘मानदेय (honorarium)’ पर नोकरी देना. हरियाणा में डबल इंजन की सरकार है जो तेज़ी से विकास की आवश्यक शर्त है, ये ज्ञान साहिब-ए-मसनद हर सभा में चीख-चीखकर देते फिरते हैं. भाजपा सरकारों का नामकरण के बारे में जवाब नहीं!! बानगी देखिए; ‘कौशल निगम द्वारा युवाओं को ‘सक्षम’ नोकरी दी जाएगी. कुछ युवा ‘द्रोण’ मतलब ‘पथ प्रदर्शक (mentor) बनेंगे’!! ‘द्रोणाचार्य’ नहीं लिखा, कहीं एकलव्य का अंगूठा मांगने के अपराध के लिए, लोग दाना-पानी लेकर ही ना चढ़ जाएँ!! अगर जुमलों और लफ्फाज़ी से लोगों के पेट भर जाया करते, संस्कृत वाले नाम रखने से बे-रोजग़ारी मिट जाया करती, तो भारत सचमुच विश्वगुरु होता. विश्व भूख इंडेक्स में 107 वें नंबर पर अफगानिस्तान और सोमालिया-सूडान के साथ ना घिसट रहा होता. ‘कौशल निगम’ की वेब साईट खोलते ही, एक घड़ी तेज़ी से घूमकर इन आंकड़ों पर रुक जाती है; भर्ती- 1,14,146; प्रशिक्षण प्राप्त 1,01,469; मूल्यांकन- 57,255; प्रमाणपत्र जारी- 47,801; नियुक्ति 10,193. मतलब, 2016 से आज तक, 6 साल में कुल 10,193 युवाओं को, वह भी पक्की नोकरी नहीं, ‘मानदेय’ पर नोकरी दी गई!! ये है ‘कौशल निगम’ की लिक्षण कुशलता. पिछले 6 सालों में इस योजना के क़सीदे पढऩे में मंत्रियों-संत्रियों के काफिलों का, विज्ञापनों का और निगम के निगमायुक्त आदि पर कितना खर्च हुआ; ये ब्यौरा देने वाली घडी भी वेब साईट के पहले पेज पर ही दे दी गई होती, तो लोग जान पाते कौन सी घड़ी ज्यादा तेज़ दौड़ रही है!! छ: साल में दस हज़ार युवाओं को मानदेय पर नियुक्ति मिली; ये बात उस राज्य की है जहाँ सरकार का नारा, ‘नंबर 1 हरियाणा’, बेरोजग़ारी में पूरा हो चुका है. प्रदेश बेरोजग़ारी में देश में पहले नंबर पर है. सितम्बर में प्रकाशित सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (CMIE) आंकड़ों के अनुसार, अगस्त आखिर में हरियाणा में बे-रोजग़ारी दर 37.3 प्रतिशत रही जो देश के औसत 8.3 प्रतिशत से 4 गुना ज्यादा है.

‘हरियाणा कौशल रोजग़ार निगम’ का असल मक़सद, दरअसल, बे-रोजग़ारों को कौशल विकास के नाम पर उलझाए रखना है. युवाओं में रोजग़ार मिलने की झूटी लालसा बुझनी नहीं चाहिए, यही इस उपक्रम का उद्देश्य है. वर्ना अगर हरियाणा सरकार को, युवाओं को नोकरी देनी होती, तो हरियाणा में स्कूल शिक्षकों के 38,000 से अधिक पद रिक्त ना पड़े होते, वहां भर्ती करने की बजाए स्कूलों को बंद या एक-दूसरे में मिलाने के बाद शिक्षकों के 20,000 पद समाप्त करने की क़वायद ना चल रही होती.

छोटे से राज्य में लाखों सरकारी पद रिक्त ना पड़े होते. ना सिर्फ रोजग़ार नहीं देना है बल्कि अगर कहीं देना भी पड़े तो उन्हें महज़ ‘मानदेय’ मिले, वेतन नहीं. वेतन कम भी हो, तो भी वह हक़ का पैसा होता है. ‘मानदेय’ का तो अर्थ ही होता है, जैसे किसी की कृपा से मिल रहा है. जिसे बढ़ाने को कहना भी अज़ीब लगता है.

साथ ही, मानदेय के साथ दूसरी सेवा सुविधाएँ नहीं होतीं. ना पेंसन, ना ग्रेचुटी, ना ईलाज सुविधा, ना छुट्टियाँ. सफ़ाई कर्मचारी समझदार हैं, इसी लिए, इस तरह मूर्ख बनने से इंकार कर चुके हैं. उनका आन्दोलन एकदम जायज़ है. कर्मचारी को सालों साल अस्थाई रखना, नियमित ना करना अन्यायपूर्ण है. ये उनके शोषण को अधिकतम करने की साजिश है. हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल द्वारा, सफाई कर्मचारियों की मांग पर चुप्पी साध लेना या उन्हें हरियाणा कौशल रोजग़ार निगम की योजना के तहत अस्थाई से भी ज्यादा अस्थाई बना देने का ऑफर देना जिसे कर्मचारी पहले ही ठुकरा चुके हैं, और बार-बार ‘लोगों को हो रही असुविधा’ के तहत हड़ताल वापस लेने की गुहार लगाते जाना एक चालाकी पूर्ण चाल है. इससे जन-मानस में कर्मचारियों के प्रति दुर्भावना पैदा होती है. जबकि हकीक़त ये है कि ये बिलकुल न्यायोचित मांग सफ़ाई कर्मचारी बार-बार उठाते रहे हैं. सरकार द्वारा उनकी मांग को अनदेखा करने पर ही उन्हें हड़ताल पर जाना पड़ा. समान काम का समान वेतन होना चाहिए, ये फैसला सुप्रीम कोर्ट दे चुकी है जिसे सरकार द्वारा ना लागू करना, सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है. इसलिए, हड़ताल से जन-मानस को हो रही असुविधा के लिए सफ़ाई कर्मचारी नहीं, बल्कि हरियाणा की संवेदनहीन सरकार जि़म्मेदार है.

केंद्र सरकार हो या कोई भी राज्य सरकार, उनकी रोजग़ार नीति बिलकुल सामान है. ‘कोई भी रिक्त पद ना भरो, रिक्त पदों को समाप्त करने के तरीक़े खोजो, अगर कुछ नियुक्तियां करनी भी पड़ें तो अस्थाई, तात्कालिक, ठेके पर, अतिथि की तरह करो, जिससे रोजग़ार दिए जा रहे हैं, ये आभास तो होता रहे लेकिन असलियत में युवा, ना बा-रोजग़ार रहे और ना बे-रोजग़ार. हाँ, अगर 50 करोड़ बे-रोजग़ारों में, 50 हज़ार को भी काम पर लिया जा रहा हो, तो भी उनके नियुक्ति पत्र ढोल-ढमाके के साथ, समारोहपूर्वक दो, उसके विज्ञापन महीनों तक चलाओ.’ लोगों ने अब इस छल-कपट में फंसने से इंकार कर दिया है. सफाई कर्मचारी संघर्षों के रास्ते पर चलते आए हैं. उन्होंने कई लड़ाइयाँ लड़ी और जीती हैं, इसे भी जीतेंगे. ‘क्रन्तिकारी मज़दूर मोर्चा, फरीदाबाद’ हरियाणा के नगर निगम सफाई कर्मचारियों के संघर्ष में उनके साथ है. हिसार जिले में पुलिस द्वारा, ठीक दिवाली के दिन 300 के कऱीब सफाई कर्मचारियों को गिरफ्तार करना, जिनमें अधिकतर महिलाऐं हैं; एक दमनकारी, अमानवीय कार्यवाही है जिसका तीखा प्रतिकार प्रदेश के सभी मज़दूरों ने मिलकर करना चाहिए, ये आह्वान करता है. समय आ गया है, जब संघर्ष कर रहे विभिन्न तबक़ों को एकजुटता क़ायम कर, एक संयुक्त मंच बनाना चाहिए.

मंहगाई और बे-रोजग़ारी के मुद्दों पर, शोषित-पीडि़त तबक़े की तहरीक को खंड-खंड कर कमजोर करने के सरकारी मंसूबों को नाकाम करते हुए राष्ट्रव्यापी, जन-आन्दोलन की एक प्रचंड लहर पैदा की जाए, जिससे इस मरणासन्न शोषणकारी, दमनकारी, आदमखोर पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था से हमेशा- हमेशा के लिए मुक्ति मिले.

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Mazdoor Morcha
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