मज़दूर मोर्चा ब्यूरो ब्रिटिश दवा कम्पनी एस्ट्राजेनेका द्वारा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से जो कोविड रोधी वैक्सीन तैयार की गई थी, उसके विरुद्ध वहां की अदालत ने फैसला सुना दिया है। मजे की बात तो यह है कि दवा कम्पनी ने अपना दोष स्वीकार भी कर लिया है।
इस घटना को लेकर ब्रिटेन में भले ही कोई सियासी हलचल न हुई हो लेकिन भारत में भारी हंगामा शुरू हो गया है। मोदी के अंधभक्त इसे लेकर बहुत परेशान हैं। उनका कहना है कि ब्रिटेन का यह फैसला क्या इसी वक्त आना जरूरी था? जाहिर है कि इसके पीछे मोदी द्वारा कोविशील्ड को लेकर मचाया गया वह उत्पात है जिसके जरिये लोगों को जबरण वैक्सीन लगवाने के लिये मजबूर किया गया था। वैक्सीन न लगवाने वालों को प्रताडि़त करने का कोई प्रयास छोड़ा नहीं गया था। यहां तक कि रेल एवं हवाई यात्रा की टिकट पाने के लिये यह टीका लगवाना जरूरी कर दिया गया था।
विदित है कि पूना स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एस्ट्राजेनेका के साथ एक अनुबंध करके इस टीके का उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया था। इसकी सैंकड़ों करोड़ डोज बहुत तेज़ी के साथ, मोदी सरकार के सहयोग से देशभर में वितरित कर दी गईं थीं। इसके वितरण को लेकर मोदी ने बहुत नौटंकी की थी। कभी वैक्सीन की कीमत 500 तो कभी 200 तो कभी कितनी ही रख दी जाती थी। मजबूरी में फंसे लोगों ने 1500 रुपये तक देकर भी ये टीके लगवाये थे। टीका लगने के प्रमाणपत्र पर भी मोदी का चित्र होता था। इतना ही नहीं कोरोना से मरने वालों के मृत्यु प्रमाणपत्र पर भी मोदी का चित्र अनिवार्य रूप से होता था। मोदी इसे लेकर फूले नहीं समाते थे।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार सीरम इंंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मालिक आधार पूनावाला से मोदी के घनिष्ठ सम्बन्ध थे, टीका बनने में अपना योगदान प्रदर्शित करने की नीयत से मोदी सीरम इंडिया संस्थान में भी एक दिन जा बैठे थे मानो कि वैक्सीन की खोज एवं उत्पादन का काम मोदी महान ने ही किया है। संस्थान द्वारा भाजपा को चंदे के रूप में करीब 52 करोड़ रुपये तो एक नम्बर में दिये गये हैं। परन्तु दो नम्बर का कोई हिसाब नहीं है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि मोदी द्वारा रोज-रोज बढ़ती चंदे की मांग से तंग आकर आधार पूनावाला भारत छोड़ कर ब्रिटेन चला गया था।
वैक्सीन की थोड़ी-बहुत भी समझ रखने वाले लोग जानते हैं कि कोई भी वैक्सीन तुर्त-फुर्त तैयार नहीं हो जाता, जबकि यह वैक्सीन एक साल से भी कम समय में तैयार होकर मार्केट में उतर गया था और मोटी लूट कमाई कर गया। लूट कमाई तो हुई सो हुई, इसे लगवाने वालों को जान के भी लाले पड़ गये। इस टीके से लोगों को होने वाली परेशानियों एवं बीमारियों का विधिवत लेखा-जोखा रखने की कोई व्यवस्था इस देश में नहीं है। केवल मरने वालों के ही कुछ मामले सामने आ पाते हैं।
पीडि़तों की संख्या को छुपाये रखने में गोदी मीडिया भी मोदी सरकार का पूरा सहयोग करता आया है। लेकिन ब्रिटेन जैसे विकसित देश में इस तरह के आंकड़ों से खिलवाड़ करना सम्भव नहीं जिसके चलते दवा कम्पनी शिकंजे में फंस गई और उसका ताप मोदी पर चढऩा तो आवश्यक था ही क्योंकि टीके का श्रेय लेने में केवल मोदी ही तो सबसे आगे थे। इस वैक्सिनेशन को लेकर ‘मज़दूर मोर्चा’ में 14-20 मार्च 2021 को ‘कोविशील्ड के टीके के बाद भारत में अब तक दर्जनों मौतें’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया गया था।