फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) अभी कोहरा शुरू भी नहीं हुआ और उत्तर रेलवे ने 62 ट्रेनों को लगभग तीन महीने तक पूर्णतया रद्द करने का फरमान सुना दिया। रोजाना चलने वाली 30 ट्रेनों के दिन भी घटाए गए हैं, आठ अन्य ट्रेनों का संचालन भी प्रभावित रहेगा।
केंद्र सरकार ने जब से रेलवे को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय लिया है किसी न किसी बहाने ट्रेनों की संख्या में कटौती, किराए में बढ़ोतरी की जा रही है। यात्रियों के लिए सरकारी रेलों के विकल्प कम किए जा रहे हैं ताकि वे मजबूर होकर निजी या प्रीमियम कही जाने वाली महंगी ट्रेनों का टिकट खरीद कर यात्रा करें। उत्तर रेलवे ने इस बार कोहरे का बहाना बना कर लंबी दूरी की 62 ट्रेनों का तीन महीने संचालन पूरी तरह रोकने का निर्णय लिया है। लंबी दूरी की 22 डिब्बों की ट्रेन (उदाहरणार्थ नई दिल्ली-पुरी, पुरुषोत्तम एक्सप्रेस) से रेलवे को एक फेरा लगाने में औसतन 43.60 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। तीन महीने के लिए रद्द की गई ट्रेनों का औसत फेरा यदि 40 लाख रुपये भी मान लिया जाए तो रेलवे को होने वाली राजस्व हानि के नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है यात्रियों को जो परेशानी होगी वो अलग। मोदी के इशारे पर नाचने वाले रेलवे के अधिकारियों के फरमान से इन ट्रेनों में दो-दो माह पहले टिकट बुक कराने वाले यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचने के दूसरे विकल्प तलाशने होंगे। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश गोयल तीन महीने तक ट्रेनें रद्द किए जाने के निर्णय को सरकार के रेलवे का निजीकरण किए जाने की नीयत से देखते हैं। उनके अनुसार रेलवे का रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) इस तरह के उपकरण बना चुका है जिनकी मदद से ट्रेन कोहरे में 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ सकती हैं। ट्रेन के इंजन में लगने वाले इन ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) आधारित उपकरणों की कीमत कुछ लाख रुपये ही है। रद्द करने के बजाय यदि इंजनों को इन उपकरणों से लैस कर दिया जाए तो हमेशा के लिए समस्या सुलझ सकती है लेकिन सरकार की नीयत रेलवे को बेचने की है। बताते हैं कि कोरोना काल में सरकार ने बहुत सारी ट्रेनों का संचालन तो बंद कर दिया था लेकिन इसी दौरान बहुत सी प्रीमियम यानी निजी ट्रेनें चलाई गईं। इन ट्रेनों को वह टाइम टेबल और रूट अलॉट किया गया जिसमें कमाई करने वाली सरकारी ट्रेनें चलती थीं। निजी ट्रेनों को बढ़ावा देने के लिए रेलवे ने नया टाइम टेबल बनाने का भी प्रयास किया था जिसमें सरकारी ट्रेनों की जगह निजी ट्रेनों का मुनाफे वाला समय और रूट दिया जाना था लेकिन रेलवे के सभी मंडलों में कर्मचारी यूनियनों के विरोध के कारण रेलवे को झुकना पड़ा। वह कहते हैं कि पिछली सरकारों में भी कोहरा रहता था लेकिन कभी न तो इतने बड़े पैमाने पर ट्रेनें रद्द की जाती थीं और न ही इतने लंबे समय तक के लिए। कोहरा बढऩे पर कुछ ट्रेनों का संचालन ही रोका जाता था न कि पहले से ही उनका संचालन बंद किया जाता था।
तीन महीने ट्रेनें बंद करने के बाद सरकार रेलवे को घाटे में दिखाएगी इससे उसे पद घटाने और निजीकरण करने का बहाना मिलेगा, और धर्म की चाशनी चाट कर बेहोश पड़ी जनता चुपचाप सरकार के हर कारनामों को देखती रह जाएगी।
जिस तरह अदूरदर्शिता दिखाते हुए मोदी ने नोटबंदी और लॉकडाउन की घोषणा की थी उसी तरह सरकार जब चाहे जितनी चाहे ट्रेनों का संचालन बंद करवा रही है, उसे आम जनता और यात्रियों की परेशानी से कोई मतलब नहीं है। जिन यात्रियों ने दो-दो महीने पहले टिकट बुक कराए हैं सरकार को चाहिए कि उनकी ट्रेन रद्द होने की हालत में उसी तारीख में दूसरी ट्रेन में उनका टिकट कन्फर्म किया जाए लेकिन इसके विपरीत यात्रियों को अपनी पैसे वसूल करने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं। एजेंट द्वारा बुक कराए गए टिकट का कमीशन काटने के बाद यात्री को आधी अधूरी रकम ही हाथ लगेगी। यदि सरकार को एक रुपया वसूलना होता है तो 12 प्रतिशत ब्याज लगाती है, रेलवे को भी ट्रेन रद्द किए जाने पर इन यात्रियों का धन ब्याज के साथ लौटाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया जाता, क्योंकि अब सरकार कल्याणकारी नहीं व्यापारी हो गई है।