खुले में शौच मुक्त भारत बनाने का वादा पूरा करो

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March 13 16:41 2023

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जि़ंदाबाद
“जिस दिन महिलाएं अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी” – रोज़ा लक्ज़म्बर्ग

सत्यवीर सिंह
अपनी मुक्ति की ओर बढ़ते हुए, महिलाओं ने हर क़दम पर शानदार संघर्ष छेड़े हैं। गुलामी की कोई भी बेड़ी, उनकी गौरवशाली कुर्बानियों के बगैर नहीं टूटी। महिला आज़ादी और स्वाभिमान की जंग, यूँ तो लगभग उतनी ही पुरानी है, जितनी समाज के वर्ग विभाजन की उम्र है, लेकिन संघर्षों के मौजूदा दौर की शुरुआत, 8 मार्च 1857 को हुई, जब अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के कपड़ा उद्योग में काम करने वाली, 15,000 से भी अधिक महिलाओं ने मोर्चा निकाला था। ‘रोटी और गुलाब’ का नारा आकाश में गूंज उठा था। रोटी मतलब आर्थिक आज़ादी, और गुलाब मतलब, सम्मानजनक सेवा शर्तें; 16 घंटे की जगह 10 घंटे का काम का दिन, पुरुषों के समान वेतन, वोटिंग का अधिकार और बाल-श्रम पर सम्पूर्ण पाबन्दी। ज़ाहिर है, सम्मानपूर्ण जीवन के लिए, महिलाओं को जो भी हांसिल हुआ है, क़ुर्बानियों से ही हुआ है. स्त्री मुक्ति आंदोलन के दमन और उनके वीरतापूर्ण प्रतिकार की ये दास्ताँ, यूँ ही, क़दम दर क़दम आगे बढ़ती गई।

बीसवीं सदी की शुरुआत में, महिला मुक्ति आन्दोलन, एक अलग, उच्चतर दौर में दाखि़ल हुआ। 8 मार्च, 1857 को न्यूयॉर्क महानगर में प्रज्वलित हुई, स्त्री-मुक्ति आन्दोलन की मशाल, लाख दमन-उत्पीडऩ के बावजूद, महिलाओं ने कभी बुझने नहीं दी। 1904 में ये ज्वाला तेज़ी से भडक़ उठी, क्योंकि महिलाएं अब, दमन, उत्पीडऩ, अपमान और गैरबराबरी की जि़ल्लत, बर्दाश्त करने को बिलकुल तैयार नहीं थीं। ये वैश्विक मज़दूर आंदोलन, समाजवादी/ कम्युनिस्ट आंदोलन के उभार का दौर था. इसी आन्दोलन ने, दो महान महिलाओं को पैदा किया, जिनका नाम लिए बगैर स्त्री मुक्ति आंदोलन की दास्तां पूरी नहीं हो सकती। ये महिलाएं थीं, जर्मनी में पैदा हुईं; क्लारा जेटकिन और रोज़ा लक्ज़मबर्ग। अगस्त 1910 में, डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में, दूसरा विश्व समाजवादी सम्मलेन होना था। क्लारा जेटकिन के प्रयासों के परिणामस्वरूप, उस सम्मलेन के ठीक पहले, अंतर्राष्ट्रीय महिला समाजवादी सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें क्लारा जेटकिन ने, न्यूयॉर्क की बहादुर महिला आन्दोलनकारी महिलाओं के संघर्षों को सम्मान देते हुए, हर साल, 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा, जो सर्वसम्मति से पास हुआ।

ज़ाहिर है, ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’, महिला किट्टी पार्टी या फैशन परेड का विषय नहीं है, जैसा कि इसे मौजूदा मानवद्रोही बाज़ार-मुनाफ़ा संचालित निज़ाम ने बना डाला है। ये; शोषण- मुक्त समाज बनाने, सम्मानपूर्ण जीवन जीने और हर तरह की गैर-बराबरी के विरुद्ध, महिलाओं के शानदार संघर्षों को याद करने और इस जंग को मंजिल तक पहुँचाने के संघर्षों का नाम है। महिलाओं के मुक्ति संघर्षों को असली सम्मान, रूस में, 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद प्रस्थापित समाजवादी राज्य में मिला। समाजवादी सोवियत संघ की मज़दूरों की सरकार ने, महिलाओं पर गैर-बराबरी के, चाहें वे कार्य क्षेत्र में हों, समाज में हों अथवा परिवार में ही क्यों ना हों, सारे अन्यायपूर्ण क़ानूनों को पलट दिया पहली बार महिलाओं ने खुली हवा में साँस ली और महसूस किया आज़ादी होती कैसी है। शादी का मसला हो या तलाक का; महिलाओं के सम्मान व स्वाभिमान पर किसी भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष भेदभाव/ दबाव को मिटा डाला गया। महिलाएं रसोई और बेड रूम की चारदीवारी से भी आज़ाद हुईं। हर जगह समान वोट का अधिकार हो, मातृत्व अवकाश अथवा कार्यस्थल पर क्रैच की सुविधा हो, अपने महान नेता लेनिन और स्टालिन के नेतृत्व में, बोल्शेविकों ने, समाज से, महिला गैर-बराबरी के अवशेषों को खुरच-खुरच कर मिटा डाला। 1917 के निहायत पिछड़े, दकियानूसी रूस को, 1945 के महान शक्तिशाली, फ़ासीवाद का फन कुचलकर दुनिया को, जि़ल्लत भरे गटर में जाने से रोककर, दुनियाभर में लाल झंडे की आन-बान-शान बुलंद रखने वाले मुक्तिदाता, सोवियत संघ बनाने में, रुसी महिलाओं ने बहुत ही शानदार योगदान दिया। महिलाओं की मुक्ति की लड़ाई, शोषण पर टिकी और मुनाफ़े की हवस से संचालित पूंजीवाद को समूल उखाड़े बगैर संभव नहीं। हमारे महान शिक्षक लेनिन के अनुसार, “स्त्रियों के बगैर मेहनतक़श वर्ग और मेहनतक़श वर्ग के बगैर स्त्रियाँ मुक्त नहीं हो सकती।”

हमारे देश में, बदकिस्मती से, महिलाओं को ‘देवी’ बोलकर गुलाम बनाने का रोग बहुत पुराना है। क्या कोई सोच सकता है कि आज भी हमारे देश में पुरुष महिलाओं की ड्रेस तक निर्धारित करने के फतवे जारी करते रहते हैं। उन्हें कैसे बोलना है, कितना बोलना है, किस वक़्त घर से बाहर निकलना है, कब घर में घुस जाना है, किससे शादी करनी है; महिलाओं के ये सारे अधिकार मर्दों ने स्वयं अपने हाथ में ले रखे हैं। यहाँ तक कि विश्वविद्यालयों में उनके हॉस्टल को ताला तक लगा दिया जाता है, पुस्तकालयों तक में उनके बारे में बहुत पीड़ादायक गैर-बराबरी थोपी जाती है. इन सब बेडिय़ों को चकनाचूर करने के लिए महिलाऐं ज़बरदस्त संघर्ष कर रही है।

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Mazdoor Morcha
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