खोरी प्रकरण: सुप्रीम कोर्ट में खट्टर सरकार की बार-बार फजीहत, लातों के भूत बातों से नहीं मानते

खोरी प्रकरण: सुप्रीम कोर्ट में खट्टर सरकार की बार-बार फजीहत, लातों के भूत बातों से नहीं मानते
October 02 01:20 2021

फरीदाबाद (म.मो.) खोरी मामले को लेकर 20 सितम्बर को फरीदाबाद नगर निगम सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ। इनके वाहियात जवाब व अक्रमण्यता को देख कर सर्वोच्च अदालत ने जम कर फटकार लगाते हुए अगले सप्ताह फिर से अवैध निर्माणों की पूरी लिस्ट और उन पर की गयी कार्यवाही का पूरा ब्योरा पेश करने को कहा। दरअसल नगर निगम के अधिकारी इतने हरामखोर व भ्रष्ट हो चुके हैं कि वे काम करने की बजाय टरकाने में ज्यादा भरोसा करते हैं अपनी इस गंदी आदत को वे सुप्रीम कोर्ट में भी त्यागने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इनके साथ अधिक सख्ती से पेश आना चाहिये। इसके लिये यदि 2-4 अफसरों को जेल भेज दिया जाये तो काम में बिजली जैसी फुर्ती आ जायेगी।

दूसरी समझने वाली बात यह है कि नगर निगम हो या ‘हूडा, इनके अस्त्र-शस्त्र गरीबों पर पूरी तेज़ी से चलते हैं। खोरी इलाके में गरीबों के दसियों हज़ार घर उनके स्कूल व धार्मिक स्थल उजाडऩे में इन्हें कोई देर नहीं लगी, परन्तु सैंकड़ों फार्म हाउसों, भव्य आश्रमों, शैक्षणिक भवनों व बड़े होटलों आदि की ओर इनकी झांकने तक की भी हिम्मत नहीं पड़ती। इन्हें बचाये रखने के लिये तरह-तरह की नौटंकी व नये-नये तर्क खोजे जा रहे हैं। ड्रोन से सर्वे करा कर यह पता लगाया कि अवैध निर्माण कहां-कहां व कितने हैंं; लेकिन इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती। वैसे काम करने की यदि नीयत हो तो ड्रोन सर्वे जैसी किसी नौटंकी की जरूरत नहीं है। सारे वन विभाग व नगर निगम को खूब अच्छे से पता है कि कहां क्या अवैध बना हुआ है।

अब एक तर्क गैर मुमकिन पहाड़ का भी उछाला जा रहा है। इसमें यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि गैरमुमकिन पहाड़ जंगलात यानी वन क्षेत्र नहीं होता और पीएलपीए कानून के तहत संरक्षित वन क्षेत्र नहीं है। इसकी आड़ लेकर सरकार अपने लग्गुए-भग्गुओं की आलीशान इमारतों को बचाने का रास्ता खोज रही है। लेकिन हकीकत यह है कि सारा अरावली पहाड़ गैर मुमकिन में आता है सिवाय उन क्षेत्रों के जहां ग्रामीण खेती करते हैं और पटवारी-गिरदावर हर फसल का लेखा-जोखा जमाबंदी में चढाते हैं। इसके अलावा जंगलात विभाग के पास संरक्षित वन क्षेत्र के एक-एक इंच का लेखा-जोखा मौजूद है। इसके लिये न तो किसी ड्रोन सर्वे की आवश्यकता है और न ही मुमकिन या गैर मुमकिन की बहस में पडऩे की।

वास्तव में हुआ यह है कि समय-समय पर आई गयी राज्य सरकारों ने अपने चहेतों को संरक्षित क्षेत्र में घुसने व कब्जे करने के लिये मार्ग प्रशस्त किया। उनके सीएलयू किये व नक्शे आदि पास करके उन निर्माणों को नियमित किया। कांत एन्क्लेव इसका बेहतरीन उदाहरण है। राज्य में समय-समय पर आये मुख्यमंत्रियों ने कांत एन्क्लेव को बसाया। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अहमदी ने इसमें सहयोग दिया था। लेकिन इस सबके बावजूद गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने इस बनी-बनाई कॉलोनी को ध्वस्त करा दिया।  उसी तर्क के आधार पर वन क्षेत्र, चाहे वह मुमकिन हो या गैरमुमकिन तमाम निर्माण जो वन क्षेत्र  की परिधि में आते हैं ध्वस्त किये जा सकते हैं।

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Mazdoor Morcha
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