विमल भाई फरीदाबाद में 123 इलाके पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम 1990 (पीएलपीए) के अंतर्गत आते हैं। किंतु ऐसा क्या कारण है कि बार-बार सिर्फ और सिर्फ खोरी गांव के लोगों पर ही नगर निगम फरीदाबाद हमले कर रहा है? जितने भी फार्म हाउस तोडऩे के नाम पर खानापूर्ति करके छोड़े दिए गए। उनको नगर निगम ने अपने कब्जे में क्यो नहीं लिया? माना कि काफी लोग सर्वोच्च न्यायालय की ओर भी गए हैं क्योंकि वह बहुत राजनीतिक रसूख और पैसे वाले लोग हैं। जबकि कुछ हरियाणा सरकार ने इस अधिनियम में परिवर्तन करने की मांग सर्वोच्च न्यायालय में डाल रखी है।
पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम 1900 में तत्कालीन पंजाब सरकार द्वारा अधिनियमित किया गया था। यह उप-जल के संरक्षण और/या कटाव के अधीन पाए जाने वाले या कटाव के लिए उत्तरदायी क्षेत्रों में कटाव की रोकथाम के लिए प्रदान करता है। खोरी गांव की ओर से पुराने कई मुकदमे चालू हैं। नगर निगम फरीदाबाद बनाम खोरी गांव वेलफेयर एसोसिएशन तथा सरीना सरकार बनाम हरियाणा सरकार वाले मुकदमें सर्वोच्च न्यायालय में पहले से चालू है।
रेखा, पिंकी व पुष्पा बनाम भारत सरकार वाले मुकदमे में जो कि 22 जुलाई को तोडफ़ोड़ शुरू होने के बाद डाला गया इसमें उजाड़ की पूरी प्रक्रिया पर प्रश्न उठाया गया। इसके बाद ही सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्वास कि मामले की ओर देखा। अदालत के दबाव पर नगर निगम एक तथाकथित पुनर्वास नीति लाई। जिसमें डबुआ कॉलोनी और बापू नगर के पुराने टूटे-फूटे सीमेंट के डिब्बों को पुनर्वास के नाम पर 377000 में बेचने की बात हुई। सरकार ने पात्रता के लिए 1 जनवरी 2021 से पहले का बिजली का बिल, वोटर कार्ड और परिवार पहचान पत्र मांगे गए। एक तरफ जंगल की जमीन जो बताई गई वहां पर बिजली का बिल और वोटर आईकार्ड कैसे हो सकता था? खोरी गांव में परिवार पहचान पत्र बनना ही जनवरी 2021 में चालू हुआ था।
सर्वोच्च न्यायालय में इस तथाकथित पुनर्वास नीति को WP (C) 1023/2021 “शांति देवी, अनिता, बीना ज्ञान, सरोज पासवान व बब्बो बनाम भारत सरकार व अन्य वाले मुकदमे में चुनौती दी थी। सर्वोच्च न्यायालय को लोगों की पात्रता सिद्ध करने के 32 दस्तावेजों की सूची दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने उस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। सिर्फ और सिर्फ नगर निगम फरीदाबाद को सच माना गया। यहां सर्वोच्च न्यायालय ने तथ्यों के अध्ययन के लिए कोई कमेटी नही बनाई।
दूसरी तरफ नगर निगम सर्वोच्च न्यायालय के 7 जून, 2021 के आदेश का पालन दिखाकर खोरी गांव के लोगों को कब्जेदार का झूठा नाम देकर, उनकी खरीदी हुई जमीन पर मेहनत से खड़े किए गए मकानों और उनकी संपत्ति को जमीदोज करता गया। लोगों को गरीब बनाने में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पूरा इस्तेमाल किया गया।
22 नवंबर,2021 को इस मुकदमे पर फैसला आया और पात्रता की कोई शर्त बिना बदले आधार कार्ड को जोड़ते हुए और पात्रता सिद्ध होने पर 6 महीने का रूपए 2000 के हिसाब से आर्थिक सहायता देने का आदेश हुआ। बाकी सब नगर निगम पर ही छोड़ दिया गया। अदालत ने नगर निगम की आर्थिक स्थिति को देखते हुए दो हजार की रकम तय की थी। इन्हीं मुकदमों की वजह से नगर निगम को एक ई पोर्टल जारी करना पड़ा। जहां पर 5011 लोग अपने दस्तावेज जमा करा पाए। स्थानीय स्तर पर बनी टीम साथी लगातार इस मुकदमों से जुडक़र लोगों के सहयोग में खड़ी नजर आई। ई पोर्टल भरवाने से लेकर सरकार तक लोगों की शिकायतें पहुंचाने का काम भी किया। हजारों की संख्या में पत्र ईमेल से भेजें। अफसोस कभी कोई जवाब नहीं मिला।
अब जबकि डबुआ कॉलोनी के फ्लैट रहने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है। नगर निगम ने मात्र 1403 लोगों की पात्रता सूची जारी की। अदालत में नगर निगम के वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज जी ने कहा कि वादियों के वकील सीधे मुझे समस्या आने पर संपर्क करें। वादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पाररिख ने उनको लगातार पत्र भेजकर, फोन करके सहीस्थिति की जानकारी दी और मुलाकात भी की। डबुआ कॉलोनी जाना भी दोनों का तय हुआ है।
इसी संदर्भ में राधास्वामी पर 31 जनवरी तक लोगों से अपने शपथ पत्र दाखिल करने का तारीख बढ़ाई है। अब लोग उसके लिए भी पैसा खर्च कर रहे हैं। यह है पुनर्वास। 14 जुलाई से आज 28 जनवरी तक लगातार तोडफ़ोड़ के लिए सैकड़ों की संख्या में पुलिस, जेसीबी मशीनें, नगर निगम कर्मचारी तो आते रहते हैं। जिसमे लोग घायल हुए हैं। मकान के साथ संपत्तियां भी खत्म कर दी गई। अब 3 पर नामजद और दोस्तों पर बेनामी मुकदमा दर्ज किया गया है। खौफ का नया रूप है। मगर राधा स्वामी में लोगों के रहने खाने की व्यवस्था से लेकर के आज तक खोरी गांव के लोगों की स्थिति को समझने, उनके पुनर्वास के लिए नगर निगम ने पूरी तरह उपेक्षा ही की है। 7 जून से पहले किसी भी तरह का कोई सर्वे नहीं किया गया। अदालत में नगर निगम ने बताया कि उनके एक ड्रोन सर्वे में 6600 से ज्यादा मकान थे। 10,000 मकानों से ज्यादा की बात लोग कहते हैं। राजस्व विभाग के लिए यशी कंसलटेंसी ने जो सर्वे किया था उसमें भी हजारों परिवार गिने थे। तो मात्र 1403 परिवार की कैसे पात्रता में आए? बाकी क्या भूत हैं या एलियंस जो आए और गायब हो गए?
सर्वोच्च न्यायालय अपने आदेश में बार-बार कहता रहा कि जंगल की जमीन से पहले सब को हटाना चाहिए अफसोस की बात यह है कि 7 जून 2021 के पहले किसी भी मुकदमे में इस बात को नहीं उठाया गया कि यह जमीन जंगल की है भी या नहीं? दूसरा खोरी गांव को झुग्गी बस्ती स्वीकार कर लिया था। जो कि तथ्यात्मक रूप से ही गलत है। जबकि मामला बिल्कुल अलग है जैसे फार्म हाउस की जमीन अभी तय नहीं है कि वह पीएलपीए जमीन है भी या नहीं? इसी तरह खोरी गांव भी तय नहीं है कि वह पीएलपीए की जमीन पर है या नहीं? पूरा खोरी गांव, राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भूमाफिया द्वारा मेहनतकश गरीब मजदूरों को बेची गई जमीन पर बसा है। मगर इस भू माफिया के खिलाफ जांच में तेजी नहीं है। एक भी व्यक्ति अभी तक गिरफ्तार नहीं है। वह मामला ठंडा पड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय व बड़े राजनीतिक दल भी इस मुद्दे पर बिल्कुल चुप हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश ने काले चोगे में ढके हाथ से, काली स्याही से लोगों की अब तक की जिंदगी काली रात में तब्दील की है। अब प्रश्न यह है कि माननीय न्यायाधीश क्यों एकमात्र खोरी गांव के लोगों को बिना सर्वे, बिना कोई सहायता दिए उजाड़ कर बिखेर दिए जाने के जघन्य अपराध पर जांच करते? पीएलपीए पर बसे अन्य 122 इलाकों की तरह मुद्दा तय होने तक खोरी गांव के लोगों को ना उजड़ा जाए।