खट्टर की बॉन्ड नीति के विरोध में मेडिकल छात्र उतरे संघर्ष पर

खट्टर की बॉन्ड नीति के विरोध में मेडिकल छात्र उतरे संघर्ष पर
November 13 09:55 2022

करनाल/ रोहतक/ नूंह (म.मो.) ‘जब बोलो झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो, जोर-जोर से झूठ बोलो’ संघ के इसी गुरूमंत्र को आत्म-सात कर चुके इसके पूर्व प्रचारक मनोहर लाल खट्टर इसका पूरी बेशर्मी से इस्तेमाल कर रहे हैं। राज्य के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले जो छात्र पहले 80 हजार रुपये वार्षिक के हिसाब से साढ़े चार साल के कोर्स के लिये 3 लाख 60 हजार रुपये बतौर फीस अदा करते थे अब खट्टर सरकार उनसे 10 लाख रुपये वार्षिक के हिसाब से 45 लाख फीस मांग रही है।

अपने-आप को बहुत चतुर और नीट द्वारा चयनित मेडिकल छात्रों को बेवकूफ समझने वाले खट्टर, सीधे-सीधे 10 लाख फीस न कह कर 80 हजार बतौर फीस और 9 लाख 20 हजार बतौर बॉन्ड मनी मांग रहे हैं। योग्यता एवं मेरिट के आधार पर चयनित छात्र जब दाखिला लेने खट्टर के पांच कॉलेजों में पहुंचे तो उनसे कहा गया कि वे पहले 10-10 लाख जमा करायें, तभी उनसे आगे की बात की जायेगी। छात्रों ने इस पर असमर्थता जतायी तो उन्हें 15 दिन का समय दे दिया गया। लेकिन छात्र इसके लिये भी तैयार नहीं हैं और वे इस नीति के विरुद्ध संघर्ष पर उतर गये हैं।

समझने वाली बात यह है कि यहां पर बॉन्ड शब्द का इस्तेमाल ही गलत किया जा रहा है। बॉन्ड का अर्थ होता है कि डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद बने डॉक्टरों को हरियाणा सरकार की नौकरी अनिवार्य रूप से करनी होगी। इसका उल्लंघन करने वाले डॉक्टरों को बॉन्ड मनी सरकार को देना होगा। यानी कि खट्टर सरकार की नौकरी करने से इनकार करने की स्थिति में ही बॉन्ड मनी के रूप में पूरे 45 लाख सरकार को देने होंगे। इस शर्त को मानने के लिये सभी छात्र तैयार हैं लेकिन खट्टर नहीं मान रहे क्योंकि उनके पास डॉक्टरों के लिये रिक्त स्थान तो बहुत हैं परन्तु वे इसके वेतन पर अपना पैसा ‘बर्बाद’ नहीं करना चाहते।

समझने के लिये ईएसआई कार्पोरेशन के मेडिकल कॉलेजों के बॉन्ड को देखा जा सकता है। यहां पर एक लाख वार्षिक के हिसाब से पूरे कोर्ष की फीस मात्र 4 लाख 50 हजार है। बॉन्ड के मुताबिक यहां से निकलने वाले डॉक्टरों को एक साल तक ईएसआई कॉर्पोरेशन की नौकरी करनी होगी। उल्लंघन करने की स्थिति में 10 लाख रुपये कॉर्पोरेशन में जमा कराने होंगे। इसके चलते लगभग तमाम छात्र बॉन्ड के अनुसार बल्कि बॉन्ड अवधि से भी अधिक समय तक कॉर्पोरेशन की नौकरी कर रहे हैं।

अपनी इस घोर जन विरोधी नीति को उचित ठहराने के लिये वे एक से एक मूर्खतापूर्ण तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। वे कहते हैं कि राज्य में 28 हजार डॉक्टरों की जरूरत हैं जबकि यहां केवल 6 हजार कार्यरत हैं। इसके लिये उन्हें राज्य के हर जि़ले में मेडिकल कॉलेज खोलने के लिये पैसे की जरूरत है, इसलिये वे मेडिकल छात्रों से यह ‘बॉन्ड मनी’ वसूलने जा रहे हैं।
यहां सवाल यह उठता है कि खट्टर सरकार ने बीते आठ साल में कितने मेडिकल कॉलेज बनाये? एक भी नहीं । छांयसा के निकट मोठूका स्थित अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज बीते चार-पांच साल से इनके कब्जे में है, जो इन्हें बना-बनाया कौडिय़ों के भाव मिल गया। उसी को चलाने में इनके मुंह से झाग निकल रहे हैं। खट्टर पर सवाल यह भी बनता है कि बीते आठ साल में जो दो लाख करोड़ का कर्ज उन्होंने राज्य के सिर पर चढ़ा दिया है, उससे कहां गुलछर्रे उड़ाये?

शेष जो चार कॉलेज ये चला भी रहे हैं वे भी फैकल्टी एवं साजो सामान के आभाव में चलने की बजाय घिसट भर ही रहे हैं। 90 प्रतिशत सरकारी सहायता से चलने वाला अग्रोहा मेडिकल कॉलेज अब भी पहले की तरह ही दो लाख वार्षिक $फीस ले रहा है। विदित है कि पूरी तरह से शिक्षा ब्यापारियों द्वारा चलाये जा रहे मेडिकल कॉलेज मात्र 12 लाख वार्षिक फीस लेते हैं जबकि जमीन खरीदने से लेकर बिल्डिंग बनाने तक का सारा खर्चा उन्हें अपने पल्ले से करना पड़ता है।

दूसरा सवाल ये बनता है कि राज्य में जब 22 हजार डॉक्टरों की कमी वे खुद मान रहे हैं तो उन्हें इसे दूर करने के लिये डॉक्टरों की भर्ती करने में क्या तकलीफ है? यदि उनकी नीयत सा$फ हो तो प्रति वर्ष उनके कॉलेजों से निकलने वाले 600 डॉक्टरों को वे भर्ती कर सकते हैं। परन्तु इसके लिये तो उनके पास पैसा ही नहीं र्हैं, कर दाता का सारा पैसा तो घोटालों व अय्याशियों की भेंट चढ़ जाता है।

पीजी छात्रों से भी साढ़े सात लाख वार्षिक मांगे
विदित है कि एमबीबीएस करने के बाद पीजी (पोस्ट ग्रेजुएशन) के लिये नीट द्वारा अति मेधावी छात्रों को चुना जाता है। ये डॉक्टर पढ़ाई के साथ-साथ अपने प्रोफेसरों की निगरानी में डॉक्टरी का अभ्यास भी करते हैं। पढाई और डॉक्टरी में लगे इन डॉक्टरों की स्थिति लगभग बंधुआ मज़दूरों जैसी हो जाती है। इसके लिये इन्हें बाकयदा एक लाख से अधिक वेतन भी मिलता है। अब खट्टर जनाब इन पीजी छात्रों से भी साढे सात लाख रुपये वार्षिक वसूलने की फिराक में हैं, मानो इसी से अपना खजाना भरेंगे।

इतना ही नहीं एमबीबीएस के जो छात्र दूसरे, तीसरे, व चौथे वर्ष में चल रहे हैं उनसे भी खट्टर इसी हिसाब से फीस मांग रहे हैं। खट्टर की इस नीति के विरोध में राज्य के तमाम सरकारी कॉलेजों में दाखिला प्रक्रिया ठप्प हुई पड़ी है। तमाम कॉलेजों में छात्र सडक़ों पर उतर कर प्रदर्षन कर रहे हैं।

इस सबके बावजूद अपनी हठधर्मी के चलते राज्य के रोहतक स्थित स्वास्थ्य विश्वविद्यालय में पांच नवम्बर को हुए दीक्षांत समारोह में जा पहुंचे। इसके लिये खट्टर ने पुलिस बल के द्वारा छात्रों पर लाठी चार्ज करवाया, पानी की बौछार करवाई और तो ओर रात को ढाई बजे तमाम प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राओं को पुलिस हिरासत में करवा दिया। इसके बावजूद भी तमाम छात्रों के हौंसले बुलंद हैं। उन्हें तमाम सामाजिक एवं राजनीतिक सगठनों की ओर से पूरा सहयोग एवं समर्थन मिल रहा है। इसका एक परिणाम स्पष्ट दिख रहा है, खट्टर पूरी मेडिकल पढ़ाई का सत्यानाश करने पर तुले हैं।

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Mazdoor Morcha
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