फरीदाबाद (म.मो.) काले कौवे पर सफेद पेंट कर देने से वह हंस नहीं बन जाता। लेकिन खट्टर महाशय अपने दीन-हीन स्थिति में पड़े स्कूलों के बाहर ‘मॉडल संस्कृति स्कूल’ का फट्टा लगाकर ऐसी ही कुछ बाजीगरी कर रहे हैं।
सरकार द्वारा प्रति छात्र, प्रति माह 4500 रुपये से अधिक खर्च करने के बावजूद, व्यापक भ्रष्टाचार के चलते, स्कूलों की स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि इनके स्कूल का चपरासी भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना पसंद नहीं करता, अध्यापकों की बात तो छोड़ दीजिये। स्कूलों में न तो पर्याप्त कमरे हैं और न ही पढ़ाने को अध्यापक। इन हालात में जब बच्चे स्कूल छोड़ जाते हैं तो, बच्चों की कमी का बहाना लेकर सरकार स्कूल ही बंद कर देती है। बीते पांच वर्षोंं में सरकार ने हजारों स्कूल बंद कर दिये हैं।
पड़ोस में स्थित दिल्ली के सरकारी स्कूलों की बेहतरीन स्थिति को देख कर खट्टर महोदय को शायद थोड़ी-बहुत शर्म आ गई। झेंप उतारने के लिये इनके पास करने-धरने को, कुछ विशेष था नहीं लिहाजा ऐसे में काले कौवे पर सफेद पेंट करने की जुगत इनकी समझ में आ गई और धड़ाधड़ हर जि़ले के पांच-सात स्कूलों पर ‘मॉडल संस्कृति स्कूल’ के फट्टे लगा दिये। जनता को और भ्रमित करने के लिये इन स्कूलों को हरियाणा बोर्ड से हटा कर सीबीएससी (केन्द्रीय स्कूल शिक्षा बोर्ड) से सम्बन्धित कर दिया। इतना ही नहीं शिक्षा का माध्यम भी यहां अंग्रेजी घोषित कर दिया गया।
महंगे व्यापारिक स्कूलों से दुखी अभिभावक खट्टर के इस जाल में फंसने के लिये टूट पड़े। जनता की इस भेड़ चाल को अवैध कमाई का साधन बनाते हुए कुछ स्कूल प्राचार्यों ने थोक के भाव दाखिला फार्म छपवा कर 30-30 रुपये में बेच खाये। किसी स्कूल में योग्यता के आधार पर दाखिला देने का नियम बना तो कहीं लॉटरी द्वारा; जबकि सरकार कहती है कि किसी भी बच्चे को दाखिला देने से इनकार नहीं किया जा सकता। अजीब स्थित है। पूरी शिक्षा नीति को जैसे लकवा मार गया हो।
सीबीएससी नियमों के अनुसार एक कमरे में पांचवीं जमात तक के 30 बच्चे, छठी से आठवीं तक के 35 तथा इससे ऊपर 40 बच्चे बैठाये जा सकते हैं। खट्टर सरकार ने सीबीएससी का फट्टा तो लगा दिया लेकिन बच्चों को बैठाने व पढ़ाने के लिये एक चौथाई भी न तो कमरे हैं और न ही अध्यापक। नियमों की ऐसी उल्लंघना यदि कोई निजी स्कूल करे तो उसकी मान्यता तुरंत रद्द हो जाये, परन्तु ये ठहरे डबल इंजन वाली खट्टर सरकार के स्कूल, इन्हें भला कौन छू सकता है?
इन स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम तो बेशक अंग्रेजी घोषित कर दिया लेकिन वास्तविक स्थितियां इसके एक दम विपरीत हैं। न तो पढ़ाने वाले और न ही पढऩे वाले इसके लायक हैं। हां, यह सब करने से इन स्कूलों का आकर्षण जरूर बढ़ गया है। इस बढे हुए आकर्षण का लाभ उठाते हुए सरकार ने यहां श्रेणी अनुसार 200 से लेकर 500 रुपये तक मासिक फीस भी लगा दी है। इतना ही नहीं दाखिला फीस के तौर पर 500 रुपये से लेकर हजार रुपये तक वसूले जाते हैं। सालाना 1 लाख 80 हजार रुपये तक कमाने वालों को मासिक फीस में पूरी छूट दी गई है। लेकिन इस आय का प्रमाणपत्र लाना जनसाधारण के लिये आसान नहीं है।
कहने को तो परिवार पहचान पत्र से भी यह काम चल सकता है लेकिन लोगों को दुखी करने के लिये उन्हें उक्त प्रमाणपत्र के लिये तहसील के दलालों के चक्कर में फंस कर लुटना पड़ता है।